भगवान् के चपरासी
किसीपर फाँसीका मुकदमा लग जाय तो वह उससे छूटनेके लिये कितनी कोशिश करता है। कितनी खुशामद करता है और हर समय वकीलोंसे कानूनकी पुस्तक दिखानेकी चेष्टा करता है। ऐसे ही हमको संसारसे मुक्त होनेके लिये चेष्टा करनी चाहिये। हमलोगोंपर भी यमराजका मामला है। इसकी पैरवी करनी चाहिये। इस शरीरका नाश होना ही फाँसी है। भविष्यमें जन्म न हो, दु:खालय संसारमें दु:खके भाजन न बनें, ‘‘जन्ममृत्युजराव्याधिदु:खदोषानुदर्शनम्’’ ऐसा समझकर इसके लिये खूब खुशामद और पैरवी करनेकी आवश्यकता है। किसीको छ: महीनेकी जेल हो जावे उससे उसकी भूख और नींद उड़ जाती है। वह उससे छूटनेके लिये कितना प्रयत्न करता है। इतना प्रयत्न यदि चौरासी लाख योनियोंसे छूटनेके लिये करे तो सम्भव है कि इनसे छूट जाय। ऐसा मौका पाकर कल्याण नहीं हुआ तो अपने-आपमें लज्जाकी बात है। मनुष्यका जन्म पाकर जो नाना प्रकारके पाप करें, उनसे कुत्ते भी अच्छे। उन्हें अपनी आत्माको धिक्कार देना चाहिये। उनके माता-पिताको भी धिक्कार है कि संसारमें ऐसी संतान पैदाकर कलंक लगाया, मनुष्यका जीवन पाकर कुत्तोंकी मौत मरे, यह बहुत लज्जाकी बात है। माता-पिता कोई पत्थर पटकते तो वह भी काम तो आता।
खयाल करो, लोग तीर्थोंमें जाते हैं। किसीने चारों धाम कर लिये, किसीने तीन धाम कर लिये तब भी उनके आचरण और स्वभाव वैसे ही रहते हैं तो लोग उन्हें धिक्कार देते हैं। सो ठीक ही है क्योंकि तीर्थ गये और आचरण ठीक नहीं हुए। आजकल तो लोग केवल भागते ही रहते हैं। आगे तो लोग तीर्थोंमें जाते थे और ८-१० दिन ठहरकर भजन, ध्यान, सत्संग, व्रत, दान करते थे। इसीसे वे पवित्र होते थे। आजकल तो हाय-हाय करके भागते ही रहते हैं। इससे उनके आचरण ठीक नहीं होते।
हमलोग उन्हें धिक्कार देते हैं, इसी प्रकार हमलोगोंका स्वभाव भी वैसा ही बना रहा तो हमें भी वे लोग ऐसे ही कहेंगे कि इतने वर्षोंसे ये ऋषिकेश सत्संगमें जाते हैं, भजन करते हैं, इन लोगोंको क्या फायदा हुआ। उन लोगोंमें हमारे आचरण देखकर ढिलाई आती है और इससे उन लोगोंको नुकसान होता है कि जो लोग भजन, ध्यानकी ओर आगे बढ़ना चाहते थे, रुक जाते हैं। वे लोग भजन, ध्यान करके मुक्त हो सकते थे। उनमें हमारे कारण रुकावट पड़ रही है। इसलिये ऐसा समझकर हमारा सुधार हमें शीघ्र करना चाहिये।
शरीर-मन-बुद्धि हमारी हैं, उन्हें भगवान्की तरफ लगानेमें क्या कठिन बात है। अपने एक-एक क्षणका हिसाब रखना चाहिये। एक क्षण भी व्यर्थ नहीं खोना चाहिये। कौड़ियोंके बदलेमें ऐसे अमूल्य जीवनको खोयें तो कैसी मूर्खता है। मनुष्य-जीवन पाकर यदि शरीरका निर्वाहमात्र ही किया तो पशु-पक्षी और मनुष्योंमें क्या फर्क है। इसलिये भोगोंको लात मारकर ऋषि-मुनि पहले जिस काममें लगे थे, उसी काममें लगना चाहिये। ये कार्य तत्पर होनेसे ही हो सकते हैं।
अपनेको ईश्वरका चपरासी मानना चाहिये। हमलोग ईश्वरके चपरासी बन जायें तो जल्दी ही हमारा कल्याण हो सकता है। ईश्वरका चपरासी कौन है? जो भगवान्का चपरासी है। भक्त ही चपरासी है, जो थोड़ी भी भगवान्की भक्ति करता है वह भी भगवान्का भक्त है। इसलिये हर एकको अपनेको भगवान्का चपरासी समझना चाहिये। हम नामके तो ईश्वरके चपरासी हो ही गये। इसलिये हम काम, क्रोधादिको ईश्वरकी राजधानीमें रहकर जल्दी मार सकते हैं। गवर्नमेंटका दस-पन्द्रह रुपये मासिकका चपरासी भी करोड़पतिको हथकड़ी-बेड़ी डालकर ला सकता है। जब कि हम ईश्वरके घरके नाममात्रके सिपाही हो गये तब हम इन काम, क्रोधादिको जानसे मार सकते हैं। हमारा इतना पावर और हुक्म है तिसपर हम इतना डरते हैं। इनको हथकड़ी डालकर वशमें कर लेना चाहिये। मालिककी आज्ञाका (ईश्वरका) अपने सिरपर हाथ मानकर इन काम, क्रोधादिपर विजय करनी चाहिये। भगवान्के राज्यमें रहकर यदि हम इन्हें नहीं मार सकेंगे तो भगवान् कहेंगे कि यह हमारे राज्यमें सिपाही रहनेके लायक भी नहीं है। इसलिये वीरताके साथ इनको मार हटाना चाहिये।
संसारमें महात्माका सहारा मिलनेपर वह चाहे सो काम कर सकता है, महान् बन सकता है। फिर परमेश्वरका सहारा पाकर डरे तो वह भगवान्के चपरासको कलंक ही लगाता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह हमें जूता मारते हैं तो हम भगवान्को ही लगाते हैं, भगवान्के राज्यमें रहते हुए। क्योंकि हम भगवान्के चपरासी हैं। जब तुम काम, क्रोध आदिसे पीटे जाओ तब तुम भगवान्को खबर कर दो तो भगवान् तुमको फौज देकर इन्हें नष्ट कर देंगे। परमात्मा राजा हैं हमलोग उनके चपरासी हैं। हमलोग चपरासी होते हुए काम, क्रोधादिसे पीटे जाते हैं तो कितनी लज्जाकी बात है, जैसे वाइसरायको यह मालूम हो गया कि अमुक थानेदार चोर-डाकुओंद्वारा पीटा गया तो क्या वह फौज भेजकर चोर-डाकुओंका दमन नहीं करेगा।
परमात्माकी दया मानकर उसके बलपर काम, क्रोधादि शत्रुओंको पराजित करना चाहिये। परमपदका सरल मार्ग तय कर लेना चाहिये।