शुभका ग्रहण करो
स्त्रियोंके अंग, हाव-भाव, सौन्दर्य और चेष्टा आदिका, धनसे प्राप्त होनेवाले गौरव, भोग, आराम और विलासका और मान-सम्मानसे मिलनेवाले मिथ्या काल्पनिक सुखोंका कभी स्मरण न करो। इनके सम्बन्धकी बात ही मत सुनो। इनके स्मरणसे मनमें कामविकार होगा, भोगसुखकी इच्छा उत्पन्न होगी, ईर्ष्या-द्वेष और दु:खोंका उदय होगा! कामनाकी आग हृदयमें धधक उठेगी। भगवान्की ओरसे चित्त हट जायगा। असल बात यह है कि जिससे चित्तमें काम, क्रोध, लोभ आदि विकार उत्पन्न हों, ऐसी किसी भी वस्तुका देखना, सुनना, स्पर्श करना और स्मरण करना छोड़ दो।
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शुभको देखो, शुभको सुनो, शुभको स्पर्श करो, शुभका स्मरण करो। शुभ वही है जो चित्तमें निर्मलता, प्रसाद, शान्ति, सद्भाव, विषय-वैराग्य और प्रभुभक्तिको उत्पन्न करके चित्तको प्रभुकी ओर लगा दे। इसके सिवा और जो कुछ है, सभी अशुभ है।
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बुरी पुस्तकें मत पढ़ो, बुरे नाटक-सिनेमा मत देखो, बुरे स्थानमें मत रहो, बुरी बातें न सुनो, बुरी बात जबानसे न कहो, बुरा चिन्तन न करो, मतलब यह कि बुरेसे सदा सावधानीसे बचते रहो।
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दुर्गुणों और दुष्कर्मोंके भयानक परिणामोंको सोचो। नाना प्रकारके शारीरिक रोग, मानसिक पीड़ा, स्मरणशक्तिका विनाश, उत्साहभंग, विषाद, शोक, महान् निन्दा, सुख-सौन्दर्यका नाश, दण्ड, अकालमृत्यु, नरकोंकी प्राप्ति और पशु-पक्षी आदि योनियोंमें जन्म आदि सब दुर्गुण और दुष्कर्मोंके ही परिणाम हैं। तुम देखते हो—गरीब कमजोर बैलोंको कितना बोझ उठाना पड़ता है, भूख-प्यास सहते हुए डंडोंकी मार खानी पड़ती है—यह सब मनुष्य-जीवनके दुष्कर्मोंका—पापोंका ही परिणाम है। याद रखो—पाप करते समय जितना सुख माना जाता है, उससे बहुत ही अधिक अत्यन्त भयानक दु:ख उसके परिणाममें भोगना पड़ता है।
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साथ ही सद्गुण और सत्कर्मसे प्राप्त होनेवाले लाभोंपर विचार करो। सद्गुणी और सदाचारी पुण्यात्मा पुरुषोंकी जीवनियाँ पढ़ो। उनका जीवन कितना सुखमय होता है और अन्तमें उन्हें किस प्रकारके परम सुखकी प्राप्ति होती है। याद करो—ध्रुव, प्रह्लाद, भीष्म आदिके पवित्र जीवनोंको।
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यह सदा स्मरण रखो कि जो लोग दुर्गुणी और दुराचारी हैं, वे नित्य दु:खके केन्द्रमें ही पड़े हैं! उनका जीवन निरन्तर एक दु:खसे दूसरे दु:खमें, एक भयसे दूसरे भयमें और एक मृत्युसे दूसरी मृत्युमें प्रवेश करता रहता है। सुख, शान्ति और अमरत्व कभी उन्हें प्राप्त होता ही नहीं।
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सच्चे सुखी वही हैं—जो सद्गुणी और सदाचारी हैं। जिन्होंने काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि शत्रुओंको जीत लिया है। ऐसे पुरुष सदा ही सुख, शान्तिमें निवास करते हुए अन्तमें अमरत्व और परम शान्तिको प्राप्त होते हैं।