॥श्रीगोमाताकी जय॥
गायका माहात्म्य
१—माता रुद्राणां दुहिता वसूनां
स्वसाऽऽदित्यानाममृतस्य नाभि:।
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय
मा गामनागामदितिं वधिष्ट॥
गाय रुद्रोंकी माता, वसुओंकी पुत्री, अदिति-पुत्रोंकी बहिन और घृतरूपी अमृतका खजाना है। प्रत्येक विचारशील पुरुषको मैंने यही समझाकर कहा है कि निरपराध और अवध्य गाय—गोका वध न करो। (ऋग्वेद ८। १०।१५)
२—यदि नो गां हंसि यद्यश्वं यदि पुरुषम्।
तं त्वां सीसेन विध्यामो यथा नोऽसो अवीरहा॥
यदि तू हमारी गौ, घोड़े तथा पुरुषकी हत्या करता है तो हम सीसेकी गोलीसे तुझे बींध देंगे, जिससे तू हमारे वीरोंका वध न कर सके। (अथर्व० १। १६। ४)
३—नमस्ते जायमानायै जाताया उत ते नम:।
बालेभ्य: शफेभ्यो रूपायाघ्न्ये ते नम:॥
यया द्यौर्यया पृथिवी ययाऽऽपोगुपिता इमा:।
वशां सहस्रधारां ब्रह्मणाच्छावदामसि॥
हे अवध्य गौ! उत्पन्न होते समय तुम्हें नमस्कार और उत्पन्न होनेपर भी तुम्हें प्रणाम! तुम्हारे रूप (शरीर), रोम और खुरोंको भी प्रणाम! जिसने द्युलोक, भूमण्डल एवं इन जलोंको भी सुरक्षित रखा है, उन सहस्रों धाराओंसे दूध देनेवाली गौको लक्ष्यमें रख हम स्तोत्रका पाठ करते हैं। (अथर्व० १०। १०। १,४)
४—अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्र:।
विश्वेदेवा अदिति: पञ्चजना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्॥
अदिति (हिंसाके अयोग्य तथा दूध-दही-मक्खन-घी आदि) पदार्थ देनेवाली यानी गौ ही द्युलोक है, अदिति ही अन्तरिक्ष है, अदिति ही माता है, अदिति ही पिता है, अदिति ही पुत्र है, अदिति ही सारे देवता हैं,....अदिति ही अतीतकालीन वस्तुसमूह है और भविष्यमें होनेवाला सब कुछ भी अदिति ही है। (ऋग्वेद १। ८९। १०)
५—दूधसे बढ़कर कोई जीवन बढ़ानेवाला आहार नहीं है। (कश्यपसंहिता)
६—गाव: पवित्रा माङ्गल्या गोषु लोका: प्रतिष्ठिता:।
गौएँ पवित्र और मङ्गलदायिनी हैं। समस्त लोक गौओंमें ही प्रतिष्ठित हैं। (अग्निपुराण २९२)
७—समस्त गौएँ साक्षात् विष्णुरूपा हैं, उनके सम्पूर्ण अङ्गोंमें भगवान् केशव विराजमान रहते हैं। (ब्रह्माण्डपुराण )
८—गौ सर्वदेवमयी और वेद सर्वगोमय है। विष्णु सर्वदेवमय हैं। गाय इन विष्णुके शरीरसे उत्पन्न हुई है; विष्णु और गाय—दोनोंके ही शरीरमें देवता निवास करते हैं। इसलिये मनुष्य गायोंको सर्वदेवमयी मानते हैं।
(स्कन्दपुराण, आवन्त्यखण्ड-रेवाखण्ड, अ० ८३; श्लोक १०४ से ११०, ११२)
९—ब्राह्मणों और गायोंका एक ही कुल है, केवल दो भागोंमें स्थित है। एक भागमें मन्त्र है और दूसरेमें यज्ञीय हवि प्रतिष्ठित है। (स्क० नागर० २७८। १०)
१०—गौका स्पर्श करने, ब्राह्मणको नमस्कार और गुरु-देवताका भलीभाँति पूजन करनेसे गृहस्थ सारे पापोंसे छूट जाते हैं। (स्कन्द० प्रभास० व० मा० अध्याय १६)
११—..... मनुष्यको सर्वोत्तम पुष्टिके लिये गायका स्पर्श करना चाहिये, इससे वह सारे पापोंसे छूट जाता है। (पद्मपुराण, सृष्टिखण्ड अ० ४८)
१२—गौओंको केवल परिक्रमा करके प्रणाम करनेसे ही मनुष्य सारे पापोंसे छूटकर अक्षय स्वर्गका भोग करता है। सात गौओंकी परिक्रमा करनेके कारण बृहस्पति सबके वन्दनीय, माधव सबके पूज्य और इन्द्र ऐश्वर्यवान् हो गये हैं। (पद्म० सृष्टि० ४८। १४५-१४६)
१३—गायें मनुष्योंकी बन्धु हैं और मनुष्य गायोंके बन्धु हैं। जिस घरमें गाय नहीं है, वह घर बन्धुशून्य है। (पद्म० सृष्टि० ४८। १५६)
१४—जीवनदानसे बढ़कर और कोई भी उत्तम दान नहीं है। इसलिये सब प्रकारके प्रयत्नोंसे सबको प्राण-दान देना चाहिये। अहिंसा सब फल देनेवाली है और परम पवित्र है। प्राणियोंको जीवनका दान सर्वश्रेष्ठ दान है। (वायुपुराण ८०। १७-१८)
१५—गोरक्षा, अबला स्त्रीकी रक्षा, गुरु और ब्राह्मणकी रक्षाके लिये जो प्राण दे देते हैं, राजेन्द्र युधिष्ठिर! वे मनुष्य स्वर्गमें जाते हैं। (महा० आ० १००। ११८)
१६—जो उच्छृङ्खलतावश मांस बेचनेके लिये गौकी हिंसा करते या गोमांस खाते हैं तथा जो स्वार्थवश कसाईको गायको मारनेकी सलाह देते हैं, वे सब महान् पापके भागी होते हैं। गौको मारनेवाले, उसका मांस खानेवाले तथा उसकी हत्याका अनुमोदन करनेवाले पुरुष गौके शरीरमें जितने रोएँ होते हैं, उतने वर्षोंतक नरकमें पड़े रहते हैं। (महा० अनु० ७४। ३-४)
१७—......गोदान करनेसे मनुष्य सात पीढ़ी पहलेके पितरोंका और सात पीढ़ी आनेवाली संतानोंका उद्धार करता है। (महा० अनु० ७४। ८)
१८—जिस गौसे यह स्थावर-जङ्गम अखिल विश्व व्याप्त है, उस भूत और भविष्यकी जननी गौको मैं सिर नवाकर प्रणाम करता हूँ। (महा० अनु० ८०। १५)
१९—गौएँ दूध तथा घीके द्वारा प्रजाका पालन करती हैं तथा इनके संतान (बैल) भी खेतीमें सहायता करते हैं। वे ही नाना प्रकारके धान्य एवं बीजोंको उत्पन्न करते हैं, जिनसे यज्ञ होते हैं और देवताओं एवं पितरोंकी सब ओरसे तृप्ति होती है। (महा० अनु० ८३। १८-१९)
२०—गवार्थे ब्राह्मणार्थे वा वर्णानां वापि संकरे।
गृह्णीयातां विप्रविशौ शस्त्रं धर्मव्यपेक्षया॥
गौ और ब्राह्मणकी रक्षाके लिये और वर्णसंकर होनेसे प्रजाको बचानेके लिये ब्राह्मण और वैश्य भी शस्त्र धारण करें। (बौधायनस्मृति २। २।८०)
२१—....... ब्राह्मणकी गौ चुरानेवाले, बाँझ गायको हलमें जोतनेके लिये नाथनेवाले और पशुओंका हरण करनेवालेके लिये राजाको चाहिये कि उसका आधा पैर कटवा दे। (मनु० ८। ३२५)
२२—गो-दुग्धमें दस गुण हैं। (चरकसंहिता)
२३—यथा माता पिता भ्राता अञ्जे वापि च ञातका।
गावो नो परमा मिता यासु जायन्ति ओसधा॥
जैसे माता, पिता, भाई और दूसरे कुटुम्ब-परिवारके लोग हैं, वैसे ही गायें भी हमारी परम मित्र (हितकारिणी) हैं, जिससे (अर्थात् जिनके दूधसे) दवा बनती है।
अन्नदा बलदा चेता वण्णदा सुखदा तथा।
एतमत्थवशं ञत्वा नास्सु गावो हनिंसु ते॥
गाय इतनी चीजोंको देनेवाली है—अन्न, बल, वर्ण (सौन्दर्य) तथा सुख। इन बातोंको जानकर ही (पहलेके) वे (लोग) गायको नहीं मारते थे। (‘भगवान् बुद्ध—ब्राह्मण धम्मिकसुत्त’ में)
२४—गोगा हि सब्ब गिहीनं, पोसका भोगदायका॥
तस्मा हि माता पितू व, मानये सक्करेय्य च।
ये च खादन्ति गोमंसं, मातुमंसं व खादये॥
सब गृहस्थोंको गो (भोग्य पदार्थ) देनेवाले और पोसनेवाले गौ-बैल ही हैं। इसलिये माता-पिताके समान उन्हें पूज्य मानें और उनका सत्कार करें। जो गोमांस खाते हैं, वे अपनी माताका मांस खाते हैं। (लोकनीति ७। १४-१५)
25-Thou shalt not kill and ye shall be holy man unto me. Neither shall ye eat any flesh that is florn of beasts in the field-
‘तू किसीको मत मार। तू मेरे समीप पवित्र मनुष्य होकर रह। जंगलोंके प्राणियोंका वध करके उनका मांस मत खा।’ (ईसामसीह)
२६—एक बैलको मारना एक मनुष्यके कत्लके समान है। (ईसाइयाह ६६। ३)
२७—......यदि मेरे मांस खानेसे किसी भाईको कष्ट होता है तो मैं संसारकी अन्तिम स्थितितक केवल मांस खाना ही नहीं छोड़ता बल्कि यह भी चाहता हूँ कि मुझसे किसी तरह भी किसीको भी कष्ट न पहुँचे। (१ कोरिन्थियंस ८। १२-१३)
२८—मांसके लिये ईश्वरकी बनायी हुई सृष्टिका संहार नहीं करना चाहिये। (रोमन्स १६। २०)
२९—ईश्वर मनुष्यजातिके लिये अभ्युदय तथा गौओंका हित करनेके लिये आवश्यक बुद्धि, सदाचार और दृढ़ता प्रदान करे।
(जरथुस्त्र—यश्न ४५। ९ पारसियोंका जरथुस्त्रीय धर्म-पुस्तक)
३०—न तो पशुओंको खाना और न पशुओंका शिकार ही करना यह हमारा जरथुस्ती नेक धर्म है। (फिरदौसी)
३१—गोश्त खानेसे परहेज रखो, इसकी आदत शराबके समान हानिकारक है। आदत लग जानेसे छूटती नहीं। (हजरत उस्मान-पहला हदीस साइस्तामें)
३२—गायके दूध और घी तुम्हारी तंदुरुस्तीके लिये बहुत जरूरी हैं, उसका गोश्त नुकसानदेह है। (पैगम्बर साहब—‘नाशियात हादी’ नामक पुस्तकमें)
३३—मुसल्मानोंको मुल्लाओं और पीरोंकी बातोंमें न आकर हिंदुओंके साथ शान्ति रखनी चाहिये। हिंदुस्थानके लिये गाय और बैल बड़े उपकारी जीव हैं, आपको इनके वंशकी वृद्धिकी चेष्टा करनी चाहिये। (अफगानिस्तानके भूतपूर्व अमीर अमानुल्लाखाँने बंबईयात्रामें कहा)
३४—तुम्हें अपने मनसे धार्मिक पक्षपातको अलग कर देना चाहिये। प्रत्येक धर्मके नियमके अनुसार उनके साथ न्याय करना और विशेषकर गोहत्यासे परहेज रखना......। (बाबरका अपने पुत्र हुमायूँके नाम एक पत्रसे जमादियल-औअल ९३० हिजरी)
३५—गायकी कुर्बानी इस्लाम-धर्मका नियम नहीं है। (फतबे हुमायूनी भाग १, पृ० ३६०)
३६—कड़ोरी व जागीरदारान परगने मथुरा, सहरा, मंगोध व ओड जो हर तरह पुस्त पनाहीमें हैं वे उम्मेदवार रहते हैं; जानें कि जहानकी तामील करने काबिल हुक्म जारी किया गया कि इसके बाद ऊपर लिखे परगनोंके इर्दगिर्द मोर जिबह न करें और शिकार न करें और आदमियोंकी गायोंको चरनेसे न रोकें.......। (तर्जुमा फरमान अतिये जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर बादशाह गाजीक) तहरीर बतारीख रोज दी महर ११ खुरदादमाह इलाही सन् ३८ जलूसी (५ जून सन् १५९३ ईसवी) ‘दार-उल-सल्तनत’ लाहौर।
३७—गायकी कुर्बानीकी अपेक्षा भेड़ और बकरेकी कुर्बानी ठीक है। (कुस्तुन्तुनियाँके सादिकका फतवा)
३८—न तो कुरान और अरबकी प्रथा ही गौकी कुर्बानीका समर्थन करती है। (हकीम अजमल खाँ)
३९—वली हुकूमत अफगानिस्तानने ११० उलमा अहल सुन्नतके फतवाके बमूजिब गायकी कुर्बानी बंद की। (‘तोहफ-ए-हिंद,’ बिजनौर ११-१२ नवम्बर १९२३)
४०—हिज एग्जाल्टेड हाइनेस हुजूर निजामने गायकी कुर्बानी बंद करनेका हुकुम सादिर फरमाया। (‘तोहफ-ए-हिंद,’ १८ नवम्बर १९३७)
४१-खंबातमें गौ, बछड़े, बैल मारनेकी सख्त मनाही थी। यहाँके हिंदुओंने बादशाहको ‘कर’ के रूपमें बड़ी रकम देकर यह अधिकार प्राप्त किया था और कोई मुसल्मान भी यदि गो-हत्या करता तो उसे देहान्त-दण्ड-सरीखा कठोर दण्ड दिया जाता था। (मुगलकालीन इटालियन यात्री पीटर डी लॉवेलने अपने सूरतसे भेजे गये पत्र ता० २२-३-१६२३ में लिखा है।)
४२—हरगिज नहीं पहुँचते अल्लाहके पास
कुर्बानियों के गोश्त और उनके खून।
अलबत्ता पहुँचता है अल्ला के पास
तुम्हारा तकना और परहेजगारी॥
(कुरानशरीफ सूर-ए-हज)
४३—परमेश्वर कहता है—लो; मैंने साग-पात, जो समस्त पृथ्वीपर है और नाना प्रकारके वृक्ष, जो फलोंसे लदे हुए हैं, तुम्हारे खानेके लिये पैदा किये हैं, न कि मांस। (Cenesis. Chapter 1, 29)
४४—गोधन अर्थ और धर्म दोनोंका प्रबल पोषक है। अर्थसे ही काम (कामनाओं) की सिद्धि होती है और धर्मसे ही मोक्षकी। अतएव गोधनसे ही अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष—चारोंकी प्राप्ति होती है। (भगवत्पूज्यपाद अनन्तश्रीविभूषित जगद्गुरु श्रीशंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर श्रीब्रह्मानन्द सरस्वतीजी महाराजका उपदेश)
४५—‘यतो गावस्ततो वयम्’ (गौएँ हैं इसीसे हमलोग हैं) यह बात सबको ध्यानमें रखनी चाहिये। ‘गौएँ हमारी और हम गौओंके’ यह भाव नष्ट हो जानेसे ही आज हमारी ऐसी दुर्दशा हो रही है। (अनन्तश्रीविभूषित जगद्गुरु श्रीशंकराचार्यजी श्रीशिरोलकर स्वामी महाराज, सकेश्वरमठ; करवीका उपदेश)
४६—जबतक गो-सम्पद् पूर्णरूपसे थी, भारतवर्ष तबतक जगत्का आदर्श था। जबसे गो-सम्पद् कम होने लगी, तभीसे भारतवर्षका गौरव भी दिनोंदिन कम होने लगा। हम आशा रखते हैं कि उपर्युक्त बात ध्यानमें रखकर सभी हिंदू अपनी गो-सम्पद्को पुन: बढ़ानेकी कोशिश करेंगे। (अनन्तश्रीविभूषित द्वारकापीठाधीश्वर जगद्गुरु श्रीशंकराचार्य स्वामी श्रीअभिनवसच्चिदानन्दतीर्थजी महाराजका उपदेश)
४७—जिन्होंने जगत्के हितकी जिम्मेवारी अपने ऊपर ले रखी है, उन देशके शासकोंको तुरंत गोहिंसा-निवारण और गोसंरक्षणके कार्यमें लग जाना चाहिये। संसारभरके भावी संतानोंकी रक्षाके लिये गौओंकी और खाद्य द्रव्यकी उत्पादन-वृद्धिके लिये बैलोंकी अत्यन्त आवश्यकता है। (अनन्तश्रीविभूषित कामकोटिपीठाधिपति जगद्गुरु श्रीशंकराचार्यजी महाराजका उपदेश)
४८—बूढ़ी, लूली-लँगड़ी, रोगिणी, दूध न देनेवाली—चाहे किसी भी प्रकारकी गौ हो उसको बेचना या उसकी उपेक्षा करना महापाप है। हर तरहसे आदरपूर्वक उनकी रक्षा, सेवा, पूजा कुटुम्ब, समाज और राष्ट्रका मङ्गल करनेवाली होती है। (पूज्यपाद श्री १००८ श्रीस्वामी करपात्रीजी महाराज)
४९—धार्मिक, आर्थिक और वैज्ञानिक—सभी दृष्टियोंसे ईश्वरकी सृष्टिमें गौका प्रमुख स्थान है, विशेषकर भारत-जैसे कृषिप्रधान देशमें। (स्वामीजी श्रीहरिनामदासजी उदासीन)
५०—यह निश्चित है कि यदि भारतीय गोरक्षाके लिये कटिबद्ध हो जायँ तो भारत पूर्ववत् सुखी हो सकता है। (श्रीपूज्यपाद १००८ श्रीमद्गोस्वामी गोकुलनाथजी महाराज)
५१—भगवान् श्रीरामके द्वारा किये गये गोहितका अनुभव करते हुए रामभक्त सदा गोहितका ध्यान रखते आये हैं। रामभक्त बननेके लिये हमें भी गो-सेवा करनी चाहिये। (श्रीजगद्गुरु श्रीरामानुज-सम्प्रदायाचार्य आचार्यपीठाधिपति श्रीराघवाचार्य स्वामीजी महाराजका उपदेश)
५२—मानव आध्यात्मिक होनेके कारण ज्ञानके एकमात्र साधन ब्राह्मणको तथा भौतिक होनेके कारण घृत-दुग्ध आदि अमृतरसके एकमात्र साधन गौको महत्त्व देता है। इन द्विविध प्राणियोंसे आत्मतृष्णा और शरीरतृष्णा शान्त होती है। (श्री १००८ श्रीउत्तराद्रि श्रीवैष्णवमठाधीश श्रीदेवनायकाचार्यजी महाराजके दयैकपात्र स्वामीजी श्रीमाधवाचार्यजी महाराजका उपदेश)
५३—तो गोधनकी वृद्धि करो तुम,
मिट जायेंगे सारे क्लेश।
गोरक्षासे ही हो सकता
फिर समृद्धिशाली यह देश॥
(काशी-ज्ञानसिंहासनाधीश्वर श्रीजगद्गुरुवीरभद्रशिवाचार्य महास्वामी महाराज)
५४—गोरक्षा और हिंदुत्वमें अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। गोरक्षाके बिना हिंदुत्व नहीं और हिंदुत्वके बिना जैसी हम चाहते हैं, वैसी गोरक्षा नहीं हो सकती। (पूज्यपाद श्री १००८ श्रीप्रभुदत्तजी ब्रह्मचारी महाराज)
५५—देशको राष्ट्रघात और धर्मघातसे बचानेके लिये निमिषमात्र भी विलम्ब न करके तत्काल गो-सेवामें लग जाना चाहिये। कानूनके द्वारा गोहत्या बंद करानी होगी, जिससे गाय सुखी होगी और गायके साथ-साथ राष्ट्र भी सुखी होगा। (गोजीवन श्रीश्रीबालकृष्ण मार्तण्ड चौंडेजी महाराज)
५६—यदि हम गौओंकी रक्षा करेंगे तो गौएँ भी हमारी रक्षा करेंगी। (महामना पण्डित मदनमोहनजी मालवीय)
५७—हिंदुस्थानी सभ्यताका नाम ही गोसेवा है। इस देशमें गोहत्या नहीं चल सकती। गोहत्या जारी रही तो इस देशमें बगावत होगी। गोहत्याबंदी हिंदुस्तानके लोगोंका ‘मैन्डेट’ (लोकाज्ञा) है। गोरक्षा नहीं हुई तो हम स्वतन्त्रताको खो देंगे। (संत श्रीविनोबा भावे)
५८—हिंदुस्थानमें तीन माताएँ मानी जाती हैं, उनमेंसे एक माता गौ है। गौ-माता बच्चोंको दूध पिलाती है और उन्हें पाल-पोसकर बड़ा करती है; इसलिये इसकी पूजा होती है। (डॉ० श्रीवी० पट्टाभि सीतारामय्या)
५९—सभी भारतवासियोंको गोवंशके ह्रास और अवनतिको रोकने और उसकी वृद्धि तथा उन्नतिके उपायोंको कार्यान्वित करनेमें सहयोग देना चाहिये। हमारी तो प्रत्येक धार्मिक और आर्थिक इहलौकिक और पारलौकिक उद्देश्यकी सिद्धिके लिये यह नितान्त परमावश्यक है। (पं०श्रीगोविन्दवल्लभजी पंत; मुख्यमन्त्री उत्तर प्रदेश)
६०—जानवरोंके सम्बन्धमें यह बात बहुधा सुननेमें आती है कि बेकार जानवरोंको समाप्त कर देनेसे ही दूसरोंको आराम मिल सकता है। इसी नीतिके अनुसार अनेक देशोंमें जरूरतसे ज्यादा जानवर नहीं रहने दिये जाते। भारतवर्ष इस नीतिका अवलम्बन नहीं कर सकता। इसलिये यह आवश्यक है कि कोई ऐसा उपाय निकाला जाय, जिससे सच्ची गोरक्षा हो सके और अपङ्ग तथा बेकार हुए जानवरोंकी हत्या भी न हो और अच्छे जानवर भी सुखी हो सकें। (राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्रप्रसादजी)
६१—दैवकी कैसी विचित्र गति है कि जिस देशका तीन चौथाई जन-समाज गौको माता कहकर पूजता है, वहाँ तो गोवंशका दिन-दिन ह्रास हो रहा है और जहाँके लोग गौका मांस खाते हैं, वहाँ वह फले-फूले। गौके हित और सुखमें ही हिंदुस्थानकी इस महान् जनताका हित, सुख, आरोग्य और समृद्धि है। (स्वर्गीय डॉ० श्यामाप्रसाद मुखर्जी)
६२—भारत-जैसे कृषिप्रधान देशमें आर्थिक दृष्टिसे भी गायका महत्त्व स्पष्ट है। गोधन ही हमारा प्रधान बल है। गोधनकी उपेक्षा करके हम जीवित नहीं रह सकते। (सेठ श्रीजयदयालजी गोयन्दका)
६३—गायकी हड्डी और चमड़ेका व्यापार गोभक्षकोंके हाथमें है, इसीसे गायका वध बहुत बढ़ गया है। सच्चे गो-सेवकोंको यह व्रत लेना चाहिये कि हम मृत चर्मका ही उपयोग करेंगे। (श्रीयुत द० बा० कालेलकर महोदय)
६४—हिंदुओंके जीवनके साथ गाय ऐसे अच्छेद्यरूपसे बँध गयी है कि उसकी समुचित परिचर्या उनका प्रधान धार्मिक कर्तव्य है। (डॉ० श्रीराधाकुमुद मुकर्जी, एम्० ए०, पी-एच्० डी०)
६५—यह हमें सर्वप्रथम जान लेना चाहिये कि गोमांस-भक्षण इस्लामधर्मका अङ्ग नहीं है। यदि कोई मुसल्मान गोमांस नहीं खाये तो इससे वह मुसल्मानोंकी श्रेणीमें नीचा नहीं हो जाता। (डॉ० मुहम्मद हाफिज सैयद, एम्० ए०, डी० लिट्०, विद्याभूषण)
६६—यदि हिंदुओंको संसारमें जीवित रहना है तो गोवंशकी रक्षाके लिये मर-मिटनेको उद्यत हो जावें। गोवंशका नाश हो जानेपर हिंदू विनाशके मार्गपर अधिक शीघ्रतासे बढ़ते हुए नष्ट-निर्मूल हो जायँगे। (धर्मप्राण पं० श्रीरामचन्द्र शर्मा ‘वीर’)
६७—गौ बिना ताजकी महारानी है, उसका राज्य सारी समुद्रवसना पृथ्वी है। सेवा उसकी विरद है और जो कुछ वह लेती है, उसे सौगुना करके देती है। (श्रीमालकम आर० वैटर्सन, अमेरिका टेनेसी प्रान्तके भूतपूर्व गवर्नर)
६८—हमारी सभ्यता तो गोप्रधान सभ्यता ही है। गोवंश उन्नत न हो, वहाँ श्वेत जातिका गुजर नहीं हो सकता। (श्रीमिलो हेस्टिंग्स)
६९—प्रत्येक बालकका आरोग्य—केवल आरोग्य ही नहीं, प्रत्युत बुद्धि उसके द्वारा पिये हुए दुग्धके परिमाण और प्रकारपर अधिक अवलम्बित है। भारतके ऐसे करोड़ों बच्चोंके शारीरिक विकासका आधार उनका आरोग्य, उनकी बुद्धि दूधके परिमाण और प्रकारपर निर्भर है। (लार्ड लिनलिथगो)
७०—कोई भी जाति या देश गायके बिना उच्च सभ्यता नहीं प्राप्त कर सकी है। गायके बिना खेती स्थिर और समृद्ध नहीं हो सकती और न लोग सुखी तथा स्वस्थ ही हो सकते हैं। (राल्फ ए० हेइरो)
७१—गाय मनुष्यकी सर्वश्रेष्ठ हितैषी है। वह हमारे एक मित्रके रूपमें है, जिससे कभी कोई अपराध नहीं हुआ, जो हमारी पाई-पाई चुका देती है और घरकी तथा देशकी रक्षा करती है। (ई० जी० वेनेट, स्टेट डेयरी कमिशनर, मिसूरी, अमेरिका)
७२—गाय मरी तो बचता कौन।
गाय बची तो मरता कौन॥
(रोमान्स आफ दी काउ)
७३—भगवान् आलसी और घातकी मनुष्योंको अन्य सबकी अपेक्षा अधिक धिक्कारते हैं और उनकी पहली आज्ञा यह है कि जबतक प्रकाश है, तबतक काम करो और दूसरी यह कि जबतक दम, तबतक दया करो। (रस्किन)
७४—पशुओंकी दुर्बलताके साथ-साथ राष्ट्र भी दुर्बल होता जाता है। (डॉ० हैरल्ड मान)
७५—पशु-देशकी दृष्टिसे भारत अपना स्थान खो रहा है। (लार्ड कर्जनने सन् १९०३ के राजकीय कागज-पत्रोंमें कहा है।)
७६—प्रत्येक मिनटमें एक गाय भारतसे बाहर भेज दी जाती है और हिसाब लगाया गया है कि प्रतिमिनट ५ गायें भारतमें वध कर दी जाती हैं। (सन् १९२१ की Blue Book के अनुसार)
७७—एक बियानके बाद जो पशु कसाईयोंको सौंप दिये जाते हैं, उनका उद्धार आवश्यक है। (सर राल्फ फिलिप् (Sir Ralph Philip) ने १९४४ की अपनी रिपोर्टमें इसपर जोर दिया है।)
७८—सबसे बड़ा डरपोक कायर वह है, जो लाचार जीवोंके साथ क्रूरताका व्यवहार करता है। (डान मार्कीस)
७९—गायसे बढ़कर अन्य कोई भी पशु मनुष्यका मित्र नहीं है और न गाय-ऐसा कोई मधुर स्वभाववाला है। उसमें शत-प्रतिशत मातृत्व है और उसका मनुष्य-जातिसे यही माताका सम्बन्ध है।
(श्रीवाल्टर ए० डामर, अमेरिका (Owr Dumb Animals) पुस्तकमें)
८०—सब धन धान, सार धन गाई।
टाका कौड़ी किछु किछु, आर धन छाई॥
(एक बंगला लोकोक्ति)
८१—गाय हमारे दुग्ध-भुवनकी देवी है। वह भूखोंको खिलाती है, नंगोंको पहनाती है, बीमारोंको अच्छा करती है, उसकी ज्योति चिरन्तन है। (सम्पादक ‘होर्ड्स डेयरीमैन,’ अमेरिका)
८२—हिंदू-मुस्लिमको एक प्लेटफार्मपर लानेके लिये गोरक्षासे बढ़कर और कोई उपाय नहीं है। मुसल्मान-मित्रोंसे मैं यह कहूँगा कि कुरानशरीफमें, जो खुदाका कलाम है, कहीं भी गायके मांसभक्षणका हुक्म नहीं है। (मौलाना काबिल साहेब)
८३—मैं हर हिंदू और मुसल्मानसे इस्तदुआ करता हूँ कि खुदाका करम पानेके लिये, खुशोखुर्रम रहनेके लिये और आपसमें मुहब्बत और दोस्ती रखनेके लिये यह सबका फर्ज है कि इस मेरी माँ गायकी हिफाजत करें। खुदा बरकत करेगा। (श्रीशेख फखरुद्दीन शाह)
८४—गोरक्षाको आर्य-धर्म पवित्र कर्तव्य मानता है। उसके प्रवर्तक आचार्य-गुरुओंने गोरक्षाके लिये विशेष आदेश दिये हैं। गोरक्षा तथा धर्मके नियमोंका पालन करना मनुष्यमात्रका कर्तव्य है। (सेठ जुगलकिशोरजी बिड़ला)
८५—अब हम सबको आशा है कि भारतमें स्वतन्त्र राज्य होगा। मेरे विचारमें इसका विशेष प्रबन्ध करना पड़ेगा कि जो गाय दूध न देती हो और उसका मालिक उसकी रक्षा किसी कारण न कर सकता हो; उसकी बिक्री या तो सरकारी फार्ममें की जाय अथवा परमिटद्वारा दूसरे लोगोंके हाथ। किन्तु ऐसी गायोंकी हत्या करना बड़ा अपराध माना जाय। (डॉ० कैलाशनाथ काटजू, एम्० ए०, एल्-एल् डी०)
८६—यही देह अग्या तुरकको खपाऊँ,
गऊ-घातका दुख जगत् से हटाऊँ।
यही आस पूरन करो तुम हमारी,
मिटै कष्ट गौअन, छुटै खेद भारी॥
(श्री १०८ गुरु गोविन्दसिंहजी महाराज—दशम ग्रन्थमें)
८७—गोबर पर्म पवित्र भये। (कविता २०१)
बामण गाई बंस घात करारे (बार २४, पौड़ी १६)
(सिक्खोंके पूज्य धर्मशास्त्री भाई गुरुदासजी)
८८—भारतकी सुख-समृद्धि गौ और उसकी संतानकी समृद्धिके साथ जुड़ी है।
गायकी रक्षा करना भारतकी सारी मूक-सृष्टिकी रक्षा करना है।
हिंदुस्तानमें हिंदुओंके साथ रहकर गो-वध करना हिंदुओंका खून करनेके बराबर है।
बाजारमें बिकनेवाली तमाम गायें ज्यादासे-ज्यादा कीमत देकर राज्य खरीद ले। तमाम बूढ़े, लूले-लँगड़े और रोगी ढोरोंकी रक्षा राज्यको ही करनी चाहिये। (महात्मा गाँधी)
८९—गोरक्षा भारतीय संस्कृतिका एक अङ्ग है। (राजर्षि पुरुषोत्तमदासजी टण्डन)
९०—आज भारतका मुख्य प्रश्न है पर्याप्त परिमाणमें दूधका मिलना और गोवंशको सुधारना। (कर्नल मैक कैरिसन)
९१—भाँति-भाँतिकी क्रूरता एक ऐसा धिक्कार-पात्र दुर्गुण है, जिसके विरुद्ध भलाईकी सभी शक्तियोंने विद्रोह खड़ा किया है। (सर आँलिवर लॉज)
९२—हे राजपुरुषो! जिन गौ आदिसे दूध-घी आदि उत्तम पदार्थ होते हैं, जिनके दूध आदिसे सब प्रजाकी रक्षा होती है, उनको कभी मत मारो और जो उन पशुओंको मारें उनको राजादि न्यायाधीश दण्ड देवें। (महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती)
९३—गो दुग्ध खाओ, गाभी तोमार माता।
बृष अन्न उपजाये, ताते तेहो पिता॥
पिता माता मारी खाओ, एवा कौन धर्म।
कौन बले करो तूमि एमत विकर्म॥
(श्रीश्रीचैतन्य महाप्रभु)
९४—गाय कहूँ या तुमको माय।
(श्रीमैथिलीशरणगुप्त)
९५—भारतवर्षमें जबतक गाय, तुलसी और गङ्गा नदीका अस्तित्व बना रहेगा, तबतक वहाँसे हिंदू-धर्मको उखाड़ना असम्भव है। (एक पादरी)
९६—मुझे ले लो, मेरे प्राण ले लो, पर गायको छोड़ दो। उसने आपके एक बालकको भी धक्का नहीं पहुँचाया है। (महामना पं० मदनमोहन मालवीय)
९७—गोरक्षा इस देशके नर-नारी—सबके लिये बड़ा भारी कर्तव्य है। दूध-घीपर ही भारतवासियोंका जीवन निर्भर है। जबसे गाय-बैल बड़ी निष्ठुरतासे मारे जाने लगे हैं, तबसे हमें चिन्ता हुई है कि हमारे बच्चे कैसे जियेंगे। (लाला लाजपतराय)
९८—गोमांसाहारियोंके स्वार्थके लिये गाय और बैलोंपर आक्रमण किया जाता है; परंतु एकके स्वार्थके लिये दूसरोंका स्वार्थ क्यों नष्ट किया जाय। थोड़े-से मांसाहारियोंके लिये गो-हत्या जारी रहे और जिनका दूधका स्वार्थ है, वे सच्ची चिल्लाहट मचाकर ही रह जायें—यह आश्चर्य है। (सर जान उडरफ, कलकत्ताके माननीय विचारपति)
९९—तुमपर लाजिम है गायका दूध और घी। खबरदार! उसके गोश्तसे उसका दूध शिफा है। घी दवा है और गोश्त बीमारी है। (किताब मस्तरक)
१००—गौ सौ फीसदी माता है, उसका मनुष्यजातिसे यही सम्बन्ध है। (Walter A. Dyers)