महात्माओंके लक्षण
सर्वत्र समदृष्टि होनेके कारण उनमें राग-द्वेषका अत्यन्त अभाव हो जाता है, इसलिये उनको प्रिय और अप्रियकी प्राप्तिमें हर्ष-शोक नहीं होता। सम्पूर्ण भूतोंमें आत्म-बुद्धि होनेके कारण अपने आत्माके सदृश ही उनका सबमें प्रेम हो जाता है, इससे अपने और दूसरोंके सुख-दुखमें उनकी समबुद्धि हो जाती है और इसीलिये वे सम्पूर्ण भूतोंके हितमें स्वाभाविक ही रत होते हैं। उनका अन्त:करण अति पवित्र हो जानेके कारण उनके हृदयमें भय, शोक, उद्वेग, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि दोषोंका अत्यन्त अभाव हो जाता है। देहमें अहंकारका अभाव हो जानेसे मान, बड़ाई और प्रतिष्ठाकी इच्छाकी तो उनमें गन्धमात्र भी नहीं रहती। शान्ति, सरलता, समता, सुहृदता, शीतलता, सन्तोष, उदारता और दयाके तो वे अनन्त समुद्र होते हैं। इसीलिये उनका मन सर्वदा प्रफुल्लित, प्रेम और आनन्दमें मग्न और सर्वथा शान्त रहता है।