Hindu text bookगीता गंगा
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प्रार्थना

हे नाथ! तुम्हीं सबके मालिक
तुम ही सबके रखवारे हो।
तुम ही सब जगमें व्याप रहे,
विभु! रूप अनेकों धारे हो॥
तुम ही नभ, जल, थल, अग्नि तुम्हीं,
तुम सूरज चाँद सितारे होे।
यह सभी चराचर है तुममें,
तुम ही सबके ध्रुव-तारे हो॥
हम महामूढ़ अज्ञानीजन,
प्रभु! भवसागरमें डूब रहे।
नहिं नेक तुम्हारी भक्ति करें,
मन मलिन विषयमें खूब रहे॥
सत्संगतिमें नहिं जायँ कभी,
खल-संगतिमें भरपूर रहे।
सहते दारुण दुख दिवस, रैन,
हम सच्चे सुखसे दूर रहे॥
तुम दीनबन्धु, जगपावन हो,
हम दीन, पतित अति भारी हैं।
है नहीं जगत‍्में ठौर कहीं,
हम आये शरण तुम्हारी हैं॥
हम पड़े तुम्हारे हैं दरपर,
तुमपर तन-मन-धन वारे हैं।
अब कष्ट हरो हरि, हे हमरे,
हम निंदित निपट दुखारे हैं॥
इस टूटी-फूटी नैयाको,
भवसागरसे खेना होगा।
फिर निज हाथोंसे नाथ! उठाकर,
पास बिठा लेना होगा॥
हे अशरण-शरण-अनाथ-नाथ,
अब तो आश्रय देना होगा।
हमको निज चरणोंका निश्चित,
नित दास बना लेना होगा॥

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