गीता गंगा
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प्रार्थना

हे निर्गुण, हे सर्वगुणाश्रय,
हे निरुपम, हे उपमामय!
हे अरूप, हे सर्वरूपमय,
हे शाश्वत, हे शान्तिनिलय!!
हे अज, आदि, अनादि, अनामय,
हे अनन्त, हे अविनाशी!
हे सच्चित-आनन्द, ज्ञानघन,
द्वैतहीन, घट-घट-वासी!!
हे शिव, साक्षी, शुद्ध, सनातन,
सर्वरहित, हे सर्वाधार!
हे शुभमन्दिर, सुन्दर, हे शुचि,
सौम्य, साम्यमति, रहितविकार!!
हे अन्तर्यामी, अन्तरतम,
अमल, अचल, हे अकल, अपार!
हे निरीह, हे नर-नारायण,
नित्य-निरंजन, नव, सुकुमार!!
हे नव नीरद-नील, नराकृति,
निराकार, हे नीराकार!
हे समदर्शी, संत-सुखाकर,
हे लीलामय प्रभु साकार!!
हे भूमा, हे विभु, त्रिभुवनपति,
सुरपति, मायापति, भगवान्!
हे अनाथपति, पतित-उधारन,
जन-तारन, हे दयानिधान!!
हे दुर्बलकी शक्ति, निराश्रय-
के आश्रय, हे दीनदयाल!
हे दानी, हे प्रणतपाल,
हे शरणागतवत्सल, जनपाल!!
हे केशव, हे करुणासागर,
हे कोमल, अति सुहृद् महान्!
करुणाकर अब उभय-अभय
चरणोंमें हमें दीजिये स्थान!!
सुर-मुनि-वन्दित कमलानन्दित,
चरण-धूलि तव मस्तक धार!
परम सुखी हम हो जायेंगे,
होंगे सहज भवार्णव पार!!

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