॥ श्रीहरि:॥
निवेदन
जिस प्रकार ज्ञानयोग, कर्मयोग और प्रेमयोगसम्बन्धी लेखोंकी पृथक्-पृथक् तीन पुस्तकें प्रकाशित की गयी थीं, वैसे ही कई प्रेमी भाइयोंके विशेष आग्रहसे मेरे भक्तिसम्बन्धी लेखोंका यह संग्रह तैयार किया गया है। इन लेखोंमें भक्तिके स्वरूप, महिमा और रहस्यका; भक्तोंके लक्षण, महिमा, और प्रभावका; नाम-जप, ध्यान, स्मरण, सत्संग, स्वाध्याय, श्रद्धा, प्रेेम, शरण आदि भक्तिके साधनोंका एवं भगवान्के नाम, रूप, लीला, धाम, गुण, प्रभाव, तत्त्व, रहस्य और स्वभाव आदि भक्तिविषयक परमोच्च भावोंका भलीभाँति निरूपण किया गया है।
भगवद्भक्तिका मार्ग ज्ञानयोग, अष्टांगयोग, कर्मयोग आदि सभी साधनोंकी अपेक्षा उत्तम और सुगम होनेसे बालक-वृद्ध, स्त्री-शूद्र आदि सभीके लिये सरल है। इस दृष्टिसे यह संग्रह सर्वसाधारणके लिये परम उपयोगी है। ये लेख विभिन्न अवसरोंपर लिखे हुए होनेके कारण इनमें एक ही बात कई बार भी आ गयी है; किन्तु इसमें इसलिये आपत्ति नहीं समझनी चाहिये कि भक्तिविषयक एक बात एक बार पढ़ लेनेमात्रसे ही वह सबके हृदयंगम नहीं हो पाती है, अतएव उसे बार-बार पढ़कर और समझकर काममें लानेकी आवश्यकता है।
इन लेखोंके भाव भगवान् के, भगवद्भक्तोंके और सत्-शास्त्रोंके वचनोंके आधारपर ही लिखे हुए हैं; इसलिये इनके अनुसार जो कोई भी अपना जीवन बनावें उनको भगवत्प्राप्ति होनेमें कोई संशय नहीं है। मेरी सभी पाठकोंसे विनम्र प्रार्थना है कि वे इस संग्रहसे विशेष लाभ उठानेकी कृपा करें।
विनीत—
जयदयाल गोयन्दका