Hindu text bookगीता गंगा
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बोला तो मरा!

एक राजा था। उसकी कोई सन्तान नहीं थी। एक बार नगरमें एक अच्छे सन्त आये। राजा उनके पास गया और सन्तानके लिये प्रार्थना की। सन्तने कहा कि राजन्! तुम्हारे प्रारब्धमें सन्तान लिखी नहीं है। इस विषयमें मैं कुछ नहीं कर सकता। राजा उदास मनसे वहाँसे लौट पड़ा। रास्तेमें उन्हीं सन्तका एक शिष्य मिल गया। शिष्यने पूछ लिया कि महाराज! आप यहाँ कैसे आये? राजाने कहा कि मैं सन्तानकी कामनासे आया था, पर काम हुआ नहीं! शिष्यने कह दिया कि चिन्ता मत करो, आपके सन्तान हो जायगी! राजा प्रसन्न होकर महलमें लौट आया। इधर गुरुजीको मालूम हुआ तो वे शिष्यपर बड़े नाराज हुए कि राजाके भाग्यमें सन्तानका योग नहीं था, तुमने सन्तान होनेकी बात क्यों कह दी? शिष्य बोला कि क्या करूँ, मुँहसे निकल गया! गुरुजीने कहा कि अपने वचनके कारण अब तुम्हें ही राजाके घर पुत्र बनकर जन्म लेना पड़ेगा।

समय पाकर राजाके घर एक पुत्रका जन्म हुआ। पुत्र सब शुभ लक्षणोंसे सम्पन्न था, पर उसमें एक दोष था कि वह मुँहसे कुछ बोलता नहीं था। राजाने अच्छे-अच्छे वैद्योंको दिखाया, पर कोई लाभ नहीं हुआ। राजाने घोषणा कर दी कि जो व्यक्ति राजकुमारसे बुलवायेगा, उसको एक लाख रुपये इनाममें दिये जायँगे। अनेक व्यक्ति आये, उन्होंने तरह-तरहके उपाय किये, पर कोई भी राजकुमारसे बुलवा नहीं सका।

समय बीतता गया। राजकुमार कुछ बड़ा हो गया। एक दिन राजाके आदमी राजकुमारको वनमें घुमाने ले गये। वहाँ एक शिकारी बैठा था और पक्षीको खोज रहा था कि कोई पक्षी दिखायी दे तो उसको मारूँ। इतनेमें एक पेड़पर बैठा पक्षी बोल पड़ा। शिकारीकी दृष्टि उस पक्षीकी तरफ गयी और उसने पक्षीको मार गिराया। यह देखते ही राजकुमारके मुँहसे निकल पड़ा—‘बोला तो मरा!’ यह सुनते ही राजकुमारके साथ आये आदमी बड़े हर्षित हो गये कि आज तो राजकुमार बोल गया! वे राजाके पास गये और उसको समाचार दिया कि आज वनमें राजकुमार बोल पड़ा। राजाने उनसे कहा कि मेरे सामने बुलवाओ, तब मैं मानूँगा। उन आदमियोंने बहुत प्रयत्न किया, पर राजकुमार कुछ बोला नहीं। राजाने कहा कि तुम झूठ बोलते हो, मैं तुम्हें फाँसी दूँगा। राजकुमार फिर बोल उठा—‘बोला तो मरा!’ राजाने बड़ा आश्चर्य किया। उसने राजकुमारसे प्रार्थना की कि साफ-साफ कहो, बात क्या है? अब राजकुमार बोला—‘महाराज! मैं वही साधु हूँ, जिसने आपको सन्तान होनेका आशीर्वाद दिया था। आपके प्रारब्धमें सन्तान नहीं थी, पर मैं बोल गया, इसलिये मेरेको आपके घर जन्म लेना पड़ा! अगर मैं न बोलता तो मेरेको दोबारा जन्म न लेना पड़ता। पक्षी भी बोला तभी शिकारीके द्वारा मारा गया। इन आदमियोंने आपको मेरे बोलनेका समाचार दिया तो परिणाममें फाँसी लगने लगी। यह सब बोलनेका ही परिणाम है। इसीलिये मेरे मुँहसे निकला—‘बोला तो मरा!’ अब मैं भी जाता हूँ; क्योंकि मैं बोल गया! ऐसा कहकर राजकुमार मर गया।

सन्तोंने ठीक ही कहा है—

जनहरिया संसार में, बहु बोल्याँ बहु दुक्ख।
चुप रहिये हरि सुमिरिये, जो जिव चाहे सुक्ख॥

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