गुरु कैसा हो?
जिस गुरु, सन्त-महापुरुषमें ये बातें हों:—
१-जो हमारी दृष्टिमें वास्तविक बोधवान्, तत्त्वज्ञ दीखते हों और जिनके सिवाय और किसीमें वैसी अलौकिकता, विलक्षणता न दीखती हो।
२-जो कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग आदि साधनोंको तत्त्वसे ठीक-ठीक जाननेवाले हों।
३-जिनके संगसे, वचनोंसे हमारे हृदयमें रहनेवाली शंकाएँ बिना पूछे ही स्वत: दूर हो जाती हों।
४-जिनके पासमें रहनेसे प्रसन्नता, शान्तिका अनुभव होता हो।
५-जो हमारे साथ केवल हमारे हितके लिये ही सम्बन्ध रखते हुए दीखते हों।
६-जो हमारेसे किसी भी वस्तुकी किंचिन्मात्र भी आशा न रखते हों।
७-जिनकी सम्पूर्ण चेष्टाएँ केवल साधकोंके हितके लिये ही होती हों।
८-जिनके पासमें रहनेसे लक्ष्यकी तरफ हमारी लगन स्वत: बढ़ती हो।
९-जिनके संग, दर्शन, भाषण, स्मरण आदिसे हमारे दुर्गुण-दुराचार दूर होकर स्वत: सद्गुण-सदाचाररूप दैवी सम्पत्ति आती हो।