॥ श्रीहरि:॥
नम्र निवेदन
परमात्मतत्त्वकी प्राप्ति चाहनेवाले साधकोंकी सेवामें यह पुस्तक प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है! यह पुस्तक साधकोंके विवेकका विकास एवं उत्साहका वर्धन करते हुए उन्हें सरलता एवं शीघ्रतापूर्वक साध्यकी प्राप्ति करानेमें सहायक होगी—ऐसा हमारा विश्वास है। जैसे नौकी संख्या अपने-आपमें पूर्ण है, ऐसे ही नौ लेखोंवाली यह पुस्तक भी अपने-आपमें पूर्ण है और अपना सेवन करनेवालोंको पूर्णता प्रदान करनेवाली है।
साधकोंसे प्रार्थना है कि वे केवल तत्त्वका अनुभव करनेके उद्देश्यसे ही इस पुस्तकका तत्परतापूर्वक अध्ययन करें, सीखने और सिखानेके लिये नहीं। ऐसा करनेसे ही वे इस पुस्तकका वास्तविक लाभ ले सकेंगे।