राग भैरवी—ताल रूपक
बन्दौं विष्णु विश्वाधार॥
लोकपति, सुरपति, रमापति, सुभग शान्ताकार॥
कमल-लोचन कलषुहर कल्याण पद-दातार॥
नील नीरद-वर्ण नीरज-नाभ नभ अनुहार॥
भृगुलता-कौस्तुभ सुशोभित हृदय मुक्ताहार॥
शंख चक्र गदा कमलयुत भुज विभूषित चार॥
पीत-पट परिधान पावन अंग अंग उदार॥
शेष शय्या-शयित, योगी-ध्यान-गम्य, अपार॥
दु:खमय भव-भय-हरण, अशरण-शरण अविकार॥