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महत्त्वपूर्ण उपासना—सर्वभूतहित

उपासनाका महत्त्वपूर्ण स्वरूप है—‘एक भगवान् ही समस्त विश्व-चराचरके रूपमें अभिव्यक्त हैं’—यह समझकर किसीका अपमान, अनिष्ट न करके—किसीको दु:ख न पहुँचाकर, किसीका अहित न कर सदा-सर्वदा अपनी सारी योग्यता, सारी शक्ति, सारी सम्पत्ति, सारी बुद्धि और सारा जीवन लगाकर मन-वाणी-शरीरसे सबका सम्मान करना, सबका दु:ख निवारण करना, सबको सुख पहुँचाना और सबका हित करना। श्रीमद्भागवतमें भगवान् कपिलदेव कहते हैं—मैं सबका आत्मा सबमें स्थित हूँ, जो मेरी उपेक्षा करके केवल मेरा पूजन करता है वह तो भस्ममें ही हवन करता है। जो दूसरे जीवोंसे वैर बाँधता है, वह तो उनके शरीरोंमें स्थित मुझ आत्मासे ही द्वेष करता है, उसके मनको कभी शान्ति नहीं मिल सकती—‘भूतेषु बद्धवैरस्य न मन: शान्तिमृच्छति॥’ (३।२९।२३)

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