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मनको विशुद्ध करो

सारा संसार मनके ही आधारपर स्थित है और मनके ही अनुसार तुम्हें उसका रंग-रूप भी दिखलायी देता है। तुम्हारा मन यदि शुद्ध है तो तुम्हें जगत‍्में भी शुद्धपन अधिक दीखेगा! याद रखो—जिनको अपने मनमें भगवान् विराजमान दीखते हैं, उन्हें सारे जगत‍्में भगवान् दीख सकते हैं और जिनके मनमें पाप भरे हैं, उनको जगत् पापोंसे भरा दीखता है। जीवन्मुक्त महापुरुष समस्त संसारको ब्रह्ममय देखते हैं, भक्त जगत‍्को भगवान‍्से परिपूर्ण पाते हैं और इसीलिये सर्वत्र तथा सर्वदा परम शान्ति और परम आनन्दको प्राप्त रहते हैं।

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यदि सुख और शान्ति पाना चाहते हो तो पहले मनमें सुख और शान्तिकी मूर्तियाँ स्थापन करनेकी चेष्टा करो। अपने मनके विचारके अनुसार वस्तु तुम्हें प्राप्त होगी और तुम भी वैसे ही बन जाओगे। तुम यदि निश्चय कर लो कि पाप-ताप न तो तुम्हारे अन्दर हैं और न कभी तुम्हारे समीप आ सकते हैं तो निश्चय समझो कि पाप-ताप तुम्हारे पाससे भाग जायँगे—इतना ही नहीं, तुम जहाँ भी जाओगे वहाँ दूसरोंके पाप-तापोंको भी भगा सकोगे।

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तुम अपने मनमें निश्चय करो कि मैं सदा-सर्वदा भगवान‍्की संरक्षकतामें हूँ। भगवान् कभी भी मुझको अकेला नहीं छोड़ते, वे निरन्तर मेरे बाहर-भीतर सर्वत्र विराजित रहते हैं। भगवान‍्की इस नित्यसन्निधिके प्रभावसे पाप-ताप मेरे पास आ ही नहीं सकते। काम-क्रोधादिका प्रवेश मेरे मनमें कभी हो ही नहीं सकता। मैं नित्य शुद्ध हूँ, निष्पाप हूँ, दुर्विचार और दुर्गुणोंसे सर्वथा रहित हूँ, मन तथा शरीरसे नीरोग एवं बलवान् हूँ और नित्य आनन्दको प्राप्त हूँ। इस प्रकारकी धारणा बारम्बार करते रहो। कुछ ही समयमें देखोगे—तुम वास्तवमें ऐसे ही बनते जा रहे हो।

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यह सत्य है और ध्रुव सत्य है कि भगवान् तुम्हारे साथ हैं, वे सर्वथा तुम्हारा संरक्षण करते हैं। और आत्मदृष्टिसे तुम्हारा स्वरूप भी नित्य-शुद्ध-बुद्ध और निष्पाप है। तुम इस सत्य तत्त्वको भूलकर अपनेको पापात्मा, दोष और कुविचारोंसे युक्त, निर्बल और असहाय मान बैठे हो, और ऐसा मानते-मानते वस्तुत: ऐसे ही हो भी चले हो। अब इसके विपरीत अभ्यास करो, प्रतिपल भगवान् का, भगवान‍्की कृपाका और भगवान‍्की शक्तिका अपने अन्दर अनुभव करो।

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इसका यह अर्थ नहीं है कि तुम पाप करते रहो, दुष्ट विचार और दुर्गुणोंमें प्रीति करके उन्हें बढ़ाते रहो, भगवान‍्को न मानकर पार्थिव पदार्थोंपर अभिमान करो और ऐसा करते हुए भी अपनेको शक्तिमान् और बलवान् मान बैठो और भगवान‍्को भूलकर केवल अहंकारमें ही डूबे रहो। मनके शुभ निश्चयके अनुसार ही शुभ आचरण भी करो। यह सत्य है कि भगवान‍्की कृपाके बलसे तुम्हारे मनका निश्चय अटल हो जायगा और तुम्हारे आचरण अपने-आप शुभ बनने लगेंगे, परन्तु तुम नित्य उस कृपाका अनुभव करते रहो और कृपाके बलसे तमाम बुराइयोंको हटाते हुए कल्याणके मार्गमें बढ़ते रहो! दुष्ट विचार-दुर्गुण और दुष्टकर्मोंको त्यागकर प्रभुस्मरण, अहिंसा, सत्य, क्षमा, सन्तोष, प्रेम, दया, सेवा, समता, सरलता और परहित-रति आदि शुभ विचार, सद‍्गुण और सत्कर्मोंके ग्रहण करनेपर कहीं विपत्ति आ जाय, बड़े भारी संकटका सामना करना पड़े तो घबराकर इन्हें छोड़ मत दो, मनमें जरा भी ऐसा सन्देह न आने दो कि अशुभको छोड़कर शुभको ग्रहण करनेसे ऐसा हुआ है। विश्वास रखो—ये विपत्ति और संकट वास्तवमें विपत्ति और संकट नहीं हैं, ये तो भगवान‍्के भेजे हुए तुम्हारे मददगार हैं जो विपत्ति और संकटका स्वाँग भरकर कसौटीमें कस-कसकर तुम्हें सर्वथा निर्दोष बनानेके लिये आये हैं। इन्हें देखकर घबराओ मत। इनका स्वागत करो और अपनी सरल, शुभ और अटल साधनासे अपनी चालपर सुदृढ़ रहकर—इनके नकली स्वाँगको हटाकर इन्हें अपने सच्चे सहायकके रूपमें प्राप्त कर लो।

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याद रखो—साधनामार्गके ये संकट तुम्हें शीघ्र-से-शीघ्र मुक्ति-मन्दिरमें ले जानेवाले, भगवान‍्के शीघ्र दर्शन करानेवाले और तुम्हारी साधनाको पूर्णतया सफल बनानेवाले हैं। घबराहट, विषाद, भय, आलस्य और संशय आदि ही वास्तविक विघ्न हैं, उन्हींसे बचो।

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भगवान‍्के पावन मार्गमें सबसे बड़े विघ्न तीन हैं—विषयभोगोंकी कामना, मान-बड़ाईका मोह और अश्रद्धा। जहाँतक हो सके इन तीनोंसे बचो। बुरे विचार, बुरे गुण और बुरे कर्म तबतक पूरी तौरसे नहीं मिटेंगे जबतक ये तीनों रहेंगे। भगवान् ही एकमात्र प्राप्त करनेयोग्य वस्तु हैं। मान-बड़ाईका मोह हमें बार-बार मृत्युके मुखमें ले जानेवाला है और अश्रद्धा सारे परमार्थविचारोंका नाश करनेवाली है, बार-बार ऐसा विचार करके मान-बड़ाईके मोह तथा अश्रद्धाका त्याग करो और एकमात्र भगवान‍्को प्राप्त करनेकी साधनामें लग जाओ और भगवान‍्की सर्वत्र सत्ता, उनकी कृपा और उनकी शक्तिपर विश्वास करनेसे सहज ही तुम ऐसा कर सकोगे।

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मनको विशुद्ध बनाते रहोगे, बुरी भावनाओंका त्याग करते रहोगे तो भगवान‍्की कृपाका अनुभव तुम्हें होगा ही। निरन्तर सद्भावनाओंको मनमें लानेकी चेष्टा करो। सद्भावनाओंके आते ही बुरी भावनाएँ अपने-आप नष्ट हो जायँगी। सद्भावनाओंसे सद‍्गुणोंकी और सत्कर्मोंकी वृद्धि होगी और तुम परम शान्ति और परमानन्दको प्राप्त कर सकोगे। याद रखो—परम शान्ति और आनन्द एक भगवान‍्में ही हैं और भगवान् तुमसे कभी अलग नहीं हैं, वे नित्य तुम्हारे साथ हैं, तुमपर नित्य उनकी कृपाकी अनवरत वर्षा हो रही है, तुम सदा उनकी कल्याणमयी छत्र-छायामें हो, तुम्हारा सारा फिक्र उनको है और वे ही स्वयं नित्य तुम्हारा योगक्षेम वहन कर रहे हैं।

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