गीता गंगा
होम > भगवान् की पूजा के पुष्प > उपदेश करो अपने लिये

उपदेश करो अपने लिये

सुननेवाले लाखों हैं, सुनानेवाले हजारों हैं, समझनेवाले सैकड़ों हैं, परन्तु करनेवाले कोई बिरले ही हैं। सच्चे पुरुष वही हैं और सच्चा लाभ भी उन्हींको प्राप्त होता है, जो करते हैं।

••••

उपदेश करो अपने लिये, तभी तुम्हारा उपदेश सार्थक होगा। जो कुछ दूसरोंसे करवाना चाहते हो, उसे पहले स्वयं करो। नहीं तो तुम्हारा उपदेश नाटकके अभिनयके सिवा और कुछ भी नहीं है।

••••

नाटकमें हरिश्चन्द्र, प्रह्लाद, शंकराचार्य और चैतन्य महाप्रभुके पार्ट बहुत किये जाते हैं, परन्तु इनसे उन पार्ट करनेवालोंको सिवा नौकरीके और क्या मिलता है? वैसे ही कोरे अभिनयसे तुम्हारा आत्मिक लाभ कुछ भी नहीं है। अभिनय छोड़कर आचरण करो।

••••

संसारमें भली-बुरी दोनों ही चीजें हैं। जो जिसका ग्राहक है, उसे वही मिलती है। तुम बुरीको छोड़कर भलीके ग्राहक बनो। फिर देखो, तुम्हें भली-ही-भली मिलेगी। हाट उसी मालकी लगा करती है, जिसके खरीदार होते हैं।

इस सूत्रको याद रखो—भगवान‍्का चिन्तन ही परम लाभ है और भगवान‍्की विस्मृति ही परम हानि है। और इसके अनुसार भगवान‍्का चिन्तन करते हुए ही जगत‍्के सब काम करनेकी चेष्टा करो।

••••

भगवान् पर जो तुम्हारा विश्वास है, उसे कभी डिगने न दो; जहाँतक बढ़ सके, बढ़ाओ। भगवान‍्में विश्वास एक महान् बल है। भगवान‍्में विश्वास रखनेवाला पुरुष ही भीतरी शत्रुओंपर विजय प्राप्त करके निर्भय हो सकता है।

••••

किसीसे डरो मत! डरो बुरे आचरणोंसे, अपने हृदयकी गन्दगीसे और भगवान‍्के प्रति होनेवाले अविश्वाससे। जिसके मनसे भगवान‍्का विश्वास उठ गया, यह निश्चय समझो कि उसकी आध्यात्मिक मृत्यु ही हो गयी।

••••

किसीके द्वारा अपनी कोई महत्त्वपूर्ण सेवा बन पड़े तो बदला चुकाने जाकर उसका तिरस्कार न करो। सच्ची सेवाका बदला तुम चुका ही नहीं सकते। तुम तो बस कृतज्ञताभरे हृदयसे, जहाँतक अपनेसे बने, सब तरहसे उसकी सेवा ही करते रहो और सच्चे दिलसे ऐसी चेष्टा करो, जिससे उसको न तो तुमसे सेवा करानेमें संकोच हो और न अपनी सेवाका वह बदला ही समझे।

••••

सेवा करके भूल जाओ, कराके याद रखो; दु:ख पाकर भूल जाओ, देकर याद रखो; भला करके भूल जाओ, कराके याद रखो; बुरा कराके भूल जाओ, करके याद रखो!

••••

दूसरेके दोषोंका न प्रचार करो, न चर्चा करो और न उन्हें याद ही करो। तुम्हारा इसीमें परम लाभ है। भगवान् सर्वान्तर्यामी हैं, वे किसने किस परिस्थितिमें, किस नीयतसे कब क्या किया है, सब जानते हैं और वे ही उसके फलका भी विधान करते हैं। तुम बीचमें पड़कर अपनी बुद्धिका दीवाला क्यों निकालने जाते हो और झूठी-सच्ची कल्पना करके क्यों दोषोंको ही बटोरते हो?

अगला लेख  > अपनेको भगवान् पर छोड़ दो