फरवरी
१ फरवरी—संतोंके माहात्म्यको सुन और समझकर प्रेमसे उनका संग करो। ऐसा करनेसे तुम्हें धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष—चारों पदार्थोंकी प्राप्ति इसी जीवनमें हो सकती है।
सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग॥
२ फरवरी—संसारमें जड़-चेतन जितने भी जीव हैं, उन सबको श्रीरामका—अपने इष्टदेवका ही स्वरूप समझकर मन-ही-मन प्रणाम करो। गोसाईंजीके निम्नलिखित शब्दोंपर ध्यान दो—
जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि।
बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि॥
३ फरवरी—जो तुम्हारे अज्ञानको हरनेवाले हैं, जो तुम्हारे सच्चे पथप्रदर्शक हैं, उनसे किसी प्रकारका छिपाव न करो। गुरुके साथ छिपाव करनेसे हृदयका अज्ञानरूपी अन्धकार दूर नहीं होता; वेद, पुराण, मुनि तथा संतोंका यही मत है।
संत कहहिं असि नीति प्रभु श्रुति पुरान मुनि गाव।
होइ न बिमल बिबेक उर गुर सन किएँ दुराव॥
४ फरवरी—भगवान्के अलौकिक चरित्रोंके सम्बन्धमें किसी प्रकार-की शंका न करो। अज्ञानीलोग ही मोहवश उनके सम्बन्धमें गलत धारणा बना लेते हैं।
अति बिचित्र रघुपति चरित जानहिं परम सुजान।
जे मतिमंद बिमोह बस हृदयँ धरहिं कछु आन॥
५ फरवरी—तुम्हारे लिये विधाताने जो कुछ रच दिया है, वह होकर रहेगा—उसे कोई भी पलट नहीं सकता। ऐसा समझकर भविष्यकी चिन्तासे मुक्त हो जाओ। देवर्षि नारदजीके निम्नलिखित उपदेशपर ध्यान दो—
कह मुनीस हिमवंत सुनु जो बिधि लिखा लिलार।
देव दनुज नर नाग मुनि कोउ न मेटनिहार॥
६ फरवरी—भगवान्की सब लीलाओंका भूलकर भी अनुकरण न करो, उनके उपदेशके अनुसार अपने जीवनको बनानेकी चेष्टा करो। जो लोग अज्ञानवश भगवान्की दिव्य लीलाओंका अनुकरण करने जाते हैं, वे मूढ अधोगतिको प्राप्त होते हैं।
जौं अस हिसिषा करहिं नर जड़ बिबेक अभिमान।
परहिं कलप भरि नरक महुँ जीव कि ईस समान॥
७ फरवरी—योगक्षेमकी चिन्ता छोड़कर श्रीभगवान्को ही अपने चिन्तनका एकमात्र विषय बनाओ। जिन्होंने तुम्हें पैदा किया है, वे ही सब प्रकारसे तुम्हारा कल्याण भी करेंगे। पर्वतराज हिमाचलकी निम्नलिखित शिक्षापर ध्यान दो—
प्रिया सोचु परिहरहु सबु सुमिरहु श्रीभगवान।
पारबतिहि निरमयउ जेहिं सोइ करिहि कल्यान॥
८ फरवरी—भगवान्के जिस स्वरूपको तुमने अपना इष्टरूप मान लिया है, उसमें अनन्यभावसे प्रीति करो। उसमें यदि कोई दोष भी दिखलावे तथा दूसरे किसी रूपकी विशेषता बतलावे तो उसके शब्दोंपर ध्यान न दो। दूसरे किसी रूपकी अवज्ञा न करते हुए अपने इष्टसे ही प्रयोजन रखो, दूसरी ओर भूलकर भी न ताको। अनन्यनिष्ठा देवी पार्वतीके निम्नलिखित वचनोंको सदा याद रखो—
महादेव अवगुन भवन बिष्नु सकल गुन धाम।
जेहि कर मनु रम जाहि सन तेहि तेही सन काम॥
९ फरवरी—जगत्में कोई भी ऐसा जीव नहीं है, जिसे माया मोहित न कर सके। इसलिये यदि मायाके प्रभावसे बचना चाहते हो तो मायाके अधीश्वर श्रीभगवान्के शरण हो जाओ। फिर माया तुम्हारा कुछ भी न कर सकेगी।
सुर नर मुनि कोउ नाहिं जेहि न मोह माया प्रबल।
अस बिचारि मन माहिं भजिअ महामाया पतिहि॥
१० फरवरी—केवल बाहरी वेश तथा सुन्दर उपदेशसे ही किसीको संत न समझ बैठो। बाहरी वेशको देखकर प्राय: अच्छे-अच्छे लोग धोखा खा जाते हैं, साधारण लोगोंकी तो बात ही क्या है।
तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर।
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधासम असन अहि॥
११ फरवरी—यदि सांसारिक विपत्तियोंसे छूटना चाहते हो तो श्रीभगवान्के चरणोंका स्मरण करो। वे सबके हृदयकी बात जानते हैं, वे अवश्य ही तुम्हारी विपत्तिको दूर करेंगे। ब्रह्माजीके निम्नलिखित उपदेशको याद रखो—
धरनि धरहि मन धीर कह बिरंचि हरि पद सुमिरु।
जानत जन की भीर प्रभु भंजिहि दारुन बिपति॥
१२ फरवरी—यदि पापोंका नाश चाहते हो मनको वशमें करना चाहते हो और भगवान्की कृपा चाहते हो तो श्रद्धा एवं भक्तिपूर्वक भगवान्के दिव्य मंगलमय चरित्रोंका श्रवण करो। गोस्वामीजीके निम्नलिखित वचनोंको याद रखो—
कलि मल समन दमन मन राम सुजस सुख मूल।
सादर सुनहिं जे तिन्ह पर राम रहहिं अनुकूल॥
१३ फरवरी—इस कलियुगमें न तो धर्मका ही ठीक-ठीक अनुष्ठान हो सकता है, न ज्ञानका ही साधन बन सकता है, न योगाभ्यास हो सकता है और न विधिवत् मन्त्रोंका जप ही हो सकता है। इस समय तो कल्याणका एकमात्र उपाय—और सब साधनोंका भरोसा छोड़कर भगवान्का भजन करना ही है। अत: और सबका भरोसा छोड़कर भगवान्का भजन करो। उन्हींकी शरण ग्रहण करो। इसीमें चतुराई है।
कठिन काल मल कोस धर्म न ग्यान न जोग जप।
परिहरि सकल भरोस रामहिं भजहिं ते चतुर नर॥
१४ फरवरी—यदि अपने हृदयमें सदाके लिये भगवान्को बसाना चाहते हो, उसे भगवान्का मन्दिर बनाना चाहते हो तो मन, वचन तथा कर्मसे उन्हींके परायण हो जाओ और निष्कामभावसे उनका भजन करो। उनकी प्रतिज्ञा है—
बचन कर्म मन मोरि गति भजनु करहिं नि:काम।
तिन्ह के हृदय कमल महुँ करउँ सदा बिश्राम॥
१५ फरवरी—यदि भगवान्को सहज ही अपने वशमें करना चाहते हो तो मन, वचन तथा कर्मसे ब्राह्मणोंकी निष्कपट सेवा करो। भगवान् स्वयं इस बातको घोषित करते हैं—
मन क्रम बचन कपट तजि जो कर भूसुर सेव।
मोहि समेत बिरंचि सिव बस ताकें सब देव॥
१६ फरवरी—काम, क्रोध, लोभ और मद—ये सब अज्ञानके बहुत बड़े सहायक हैं। इनमें भी काम सबसे अधिक दु:खदायक है, अत: कामपर विजय पानेकी निरन्तर चेष्टा करो।
काम क्रोध लोभादि मद प्रबल मोह कै धारि।
तिन्ह महँ अति दारुन दुखद मायारूपी नारि॥
१७ फरवरी—यदि बिना किसी कठिन साधनके अनायास ही भगवान्की भक्ति प्राप्त करना चाहते हो तो वाणीसे उनके पावन चरित्रोंका गान करो और कानोंसे उन्हींकी कथाओंको सुनो।
रावनारि जसु पावन गावहिं सुनहिं जे लोग।
राम भगति दृढ़ पावहिं बिनु बिराग जप जोग॥
१८ फरवरी—यदि त्रितापोंकी ज्वालासे बचना चाहते हो तो परम कृपालु भगवान् शंकरकी आराधना करो। उन्होंने विषकी ज्वालासे जलते हुए देवताओंकी रक्षा की थी, क्या वे तुम्हारी रक्षा नहीं करेंगे? गोस्वामीजीके निम्नलिखित उपदेशको याद रखो—
जरत सकल सुर बृंद बिषम गरल जेहिं पान किय।
तेहि न भजसि मन मंद को कृपाल संकर सरिस॥
१९ फरवरी—यदि भगवान्का अनन्यभावसे भजन करना चाहते हो तो विश्वके समस्त चराचर जीवोंको उन्हींकी मूर्तियाँ समझो और अपनेको उन सबका दास समझो। अनन्यभक्तोंका यही लक्षण कहा गया है—
सो अनन्य जाकें असि मति न टरइ हनुमंत।
मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवंत॥
२० फरवरी—जीवनमें तुमने कितने ही अपराध क्यों न किये हों, यदि तुम एक बार भी सच्चे मनसे भगवान्के शरण हो जाओ तो वे तुम्हारे सारे अपराधोंको भुलाकर तुम्हें सदाके लिये अपनी गोदमें बिठा लेंगे। वे दयाके समुद्र हैं।
प्रनतपाल रघुनायक करुनासिंधु खरारि।
गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि॥
२१ फरवरी—अभिमानकी उत्पत्ति अज्ञानसे होती है, वह बुद्धिको आवृत करनेवाला तथा समस्त दु:खोंका हेतु है। अत: यदि दु:खोंसे छूटना चाहते हो तो अभिमान छोड़कर दयाके समुद्र भगवान्की शरणमें चले जाओ। वे तुम्हें सारी विपत्तियोंसे छुड़ा देंगे।
मोह मूल बहु सूलप्रद त्यागहु तम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपासिंधु भगवान॥
२२ फरवरी—भगवान्की कृपासे तुम कठिन-से-कठिन कार्य कर सकते हो, असम्भवको भी सम्भव बना सकते हो। अत: सब प्रकारसे उन्हींकी कृपापर निर्भर हो रहो। श्रीहनुमान्जीका श्रीरामके प्रति वचन है—
ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकूल।
तव प्रभावँ बड़वानलहि जारि सकइ खलु तूल॥
२३ फरवरी—शरणमें आये हुएका कदापि त्याग न करो, चाहे उसकी रक्षासे तुम्हारी लौकिक हानि भी होती हो। शरणागतका परित्याग करनेवालोंकी शास्त्रोंमें बड़ी निन्दा की गयी है।
सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि॥
२४ फरवरी—यह कलिकाल पापोंका घर है। इसमें भगवन्नामके अतिरिक्त कोई दूसरा सहारा नहीं है। इसलिये विचारपूर्वक भगवन्नामका ही आश्रय पकड़े रहो।
यह कलिकाल मलायतन मन करि देखु बिचार।
श्रीरघुनाथ नाम तजि नाहिन आन अधार॥
२५ फरवरी—यदि भगवान्के प्रिय बनना चाहते हो तो उनके सगुण-रूपकी उपासना करो, दूसरोंकी भलाईमें लगे रहो, नीति तथा सदाचारके नियमोंका दृढ़तापूर्वक पालन करो और ब्राह्मणोंकी भक्ति करो। उन्होंने स्वयं विभीषणजीसे कहा है—
सगुन उपासक परहित निरत नीति दृढ़ नेम।
ते नर प्रान समान मम जिन्ह कें द्विज पद प्रेम॥
२६ फरवरी—यदि लौकिक सम्पत्ति अथवा राज्य चाहते हो तो उसके लिये भी भगवान्की ही शरण लो, वे सब कुछ देनेमें समर्थ हैं। उन्होंने विभीषणको बिना माँगे अनायास ही वह अतुल सम्पत्ति दे दी, जिसे रावण बड़े कष्टसे प्राप्त किया था और तिसपर भी मनमें संकुचित हुए कि मैंने इसे कुछ भी नहीं दिया।
जो संपति सिव रावनहि दीन्हि दिएँ दस माथ।
सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्हि रघुनाथ॥
२७ फरवरी—भगवान् शंकर और भगवान् विष्णु अथवा श्रीराममें कोई अन्तर न समझो, दोनों एक ही भगवान्के रूप हैं। शंकरका भक्त होकर जो श्रीरामसे विरोध रखता है अथवा श्रीरामका दास कहलाकर जो शिवजीसे द्रोह करता है, उसकी बड़ी दुर्गति होती है। श्रीरामने स्वयं कहा है—
संकरप्रिय मम द्रोही सिवद्रोही मम दास।
ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास॥
२८ फरवरी—समस्त चराचर विश्वको भगवान्का ही रूप समझो। ये जितने भी लोक हैं, वे सब उन्हींकी विराट् मूर्तिके अंग हैं।
बिस्वरूप रघुबंसमनि करहु बचन बिस्वासु।
लोक कल्पना बेद कर अंग अंग प्रति जासु॥
२९ फरवरी—यदि तुम किसी भयसे पीड़ित हो तो आर्तभावसे भगवान्को पुकारो, उनसे रक्षाके लिये प्रार्थना करो। वे तुम्हारी प्रार्थनाको अवश्य सुनेंगे और तुम्हें भयसे मुक्त कर देंगे।
प्रनतपाल रघुबंसमनि त्राहि त्राहि अब मोहि।
आरत गिरा सुनत प्रभु अभय करैगो तोहि॥