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नवम्बर

१ नवम्बर—मनुष्यका जन्म विषय-भोगोंके लिये नहीं, परन्तु परमात्माकी प्राप्तिके लिये है।

२ नवम्बर—जो परमात्माकी प्राप्तिके लिये प्रयत्न करता है, बस, वही यथार्थ मनुष्य है।

३ नवम्बर—परमात्माकी प्राप्ति मनुष्यका जन्मसिद्ध अधिकार है।

४ नवम्बर—मनुष्यजन्मके उद्देश्य और जन्मसिद्ध अधिकारको भूल जानेवाला मनुष्य पशुसे भी अधिक पशु है।

५ नवम्बर—वह नरपशु जीवनको व्यर्थ खोता है, पाप कमाता है, दु:ख और अशान्ति भोगता है और अन्तमें मनुष्यजन्मको नष्ट करके पापका बोझा बाँधे फिर जन्म-मृत्युके लम्बे चक्‍करमें चला जाता है।

६ नवम्बर—मनुष्यजन्म बहुत ही दुर्लभ है, जन्म-मृत्युके बहुत लम्बे मार्गको तै करनेपर कहीं भगवान‍्की कृपासे ही प्राप्त होता है, इसे यों नष्ट कर देना आत्महत्यासे बढ़कर पाप है।

७ नवम्बर—मनुष्य-जीवन बहुत लम्बा नहीं है। हरेक श्वासमें यह क्षय होता जा रहा है, न मालूम हाथमें आया हुआ यह मनुष्यजन्मका दुर्लभ अधिकार किस क्षण छिन जाय। फिर बहुत पछताना पड़ेगा और पछतानेसे कुछ बनेगा भी नहीं।

८ नवम्बर—इसलिये क्षणभरकी भी देर न करके भगवान‍्की प्राप्तिके प्रयत्नमें लग जाओ।

९ नवम्बर—विषयभोग तो सभी जन्मोंमें मिलते हैं, भगवान‍्की प्राप्ति तो इसी जीवनमें हो सकती है।

१० नवम्बर—विषयभोगोंके लिये मत छटपटाओ; जी मत ललचाओ भोगोंकी रमणीयतापर। याद रखो, जैसे दीपककी जलती हुई लौको रमणीय देखकर पतिंगा उसमें पड़कर भस्म हो जाता है, वही गति विषयोंकी आगमें पड़कर तुम्हारी भी होगी।

११ नवम्बर—विषयत्यागका यह अर्थ नहीं कि तुम अपनी इन्द्रियोंको नष्ट कर दो—इन्द्रियोंके लिये उन्हीं विषयोंको चुनो जो तुम्हें भगवान‍्के मार्गमें पथ दिखानेवाले प्रकाशरूप हों।

१२ नवम्बर—कानोंसे भगवान‍्के नाम-गुण-लीला और धामका महत्त्व, तत्त्व और रहस्य सुनो, आँखोंसे उनके भक्तोंके और संतोंके तथा उनके मंगलमय विग्रहोंके दर्शन करो। जिह्वासे उनके प्रसादका रस लो और उनके पवित्र नाम-गुणोंका कीर्तन करो, त्वचासे सर्वत्र उनके मधुर स्पर्शका अनुभव करो और नासिकासे उनके मधुर अंग-गंधको सूँघो। ये विषय कल्याणकारी हैं और इनसे विपरीत जो भगवान‍्के मार्गसे तुम्हें हटाते हैं वे सर्वथा अमंगल करनेवाले हैं उनका त्याग करो।

१३ नवम्बर—भगवान् सर्वत्र हैं, वे तुम्हारी प्रत्येक इन्द्रियके विषय हो सकते हैं। यह याद रखो। असलमें तुम्हारी इन्द्रियोंके अन्दर रहकर विषयोंका ग्रहण भी वही करते हैं।

१४ नवम्बर—संसारके जीवनके लिये जिन आवश्यक विषयोंकी जरूरत हो उन्हें ग्रहण करो परंतु उनमें फँसो मत; फँस जाओगे तो तुम्हें शहदमें लिपटी हुई मक्खीकी भाँति तड़फड़ाकर मरना पड़ेगा। विषयोंमें आसक्त मत होओ और शहदसे अलग बैठी हुई मक्खीकी भाँति आवश्यकतानुसार विषयका ग्रहण करके उससे बिलकुल अलग हो जाओ।

१५ नवम्बर—जीवन-निर्वाहका कार्य भी भगवान‍्की सेवाके लिये ही करो, भोग-सुखके लिये नहीं। फिर तुम्हारी प्रत्येक क्रियासे भगवान‍्की पूजा होगी।

१६ नवम्बर—सुबहसे लेकर राततक और रातसे सुबहतक, यों आठों पहर भगवान‍्का स्मरण करते हुए तुम भगवान‍्की पूजा ही करो।

१७ नवम्बर—भगवान‍्की यह अठपहरी पूजा ही जीवनकी सार्थकताका प्रधान साधन है।

१८ नवम्बर—आज सबेरे अलग बैठकर भगवान‍्से प्रार्थना करो। प्रार्थनाके समय मनको खाली कर दो, सब विषयोंको मनसे हटाकर उसमें सिर्फ एक भगवान‍्को बैठा लो और नम्रता तथा विनयके साथ सच्चे मनसे कहो प्रभो! अब तुम यहाँसे हटना नहीं! मैं हटाना भी चाहूँ तो न हटना। मेरा प्यारा बनकर कभी दूसरा कोई आना भी चाहे तो उसे मत आने देना। बस तुम्हीं मेरे प्रियतम हो, तुम्हीं मेरे सर्वस्व हो; मैं कभी नशेमें तुम्हें न पहचानूँ, तुम्हारा अनादर करके तुम्हारे स्थानपर दूसरेको बैठाना चाहूँ तो मेरे प्रभो! उस समय तुम अपने स्थानको न छोड़ना। मेरी नशेकी बकवादपर ध्यान न देना। देखना मेरे कल्याणकी ओर, अपनी दीनवत्सलताकी ओर और मेरे साथ अपनी सबसे निकटतम आत्मीयताकी ओर, मेरी मूर्खताकी ओर नहीं।

१९ नवम्बर—जब कभी भगवान‍्का स्मरण हो, उसे पकड़ रखनेकी चेष्टा करो। जैसे कंगाल भाग्यसे मिले हुए धनको प्राणोंकी तरह रखता है उसी प्रकार भगवान‍्के स्मरणरूपी धनकी प्राण देकर भी रक्षा करो।

२० नवम्बर—जब कभी सद्विचार या सद्भावना मनमें आवें उन्हें जाने मत दो। अवसर पाकर आये हुए इन सहायकों और मित्रोंको तिरस्कार करके मनरूपी घरसे निकाल न दो। याद रखो, इनकी उपस्थितिमें काम, क्रोध, लोभ, भय और ईर्ष्यादि शत्रु तुम्हें नहीं सता सकेंगे।

२१ नवम्बर—भगवान‍्में अखण्ड विश्वास करो,उनको सबसे अधिक सुन्दर, सबसे अधिक मधुर, सबसे बड़े ईश्वर, सबसे बड़े ज्ञानी, सबसे बड़े योगी, सबसे निकटतम बन्धु, सबसे बढ़कर प्यारे और सबसे अधिक अपने समझो।

२२ नवम्बर—भगवान‍्की कृपाका सेवन करो, भगवान‍्के अनुकूल आचरण करो, भगवान‍्के नाम-गुणोंका चिन्तन करो, भगवान‍्के विधानमें आनन्द मानो। भगवान‍्के चरणोंपर अपनेको न्योछावर कर दो और भगवान‍्की चरणधूलिकी आवश्यकतामें अपनी सारी आवश्यकताओंको मिटा दो।

२३ नवम्बर—विश्वास करो—भगवान् तुम्हें अवश्य मिलेंगे।

२४ नवम्बर—विश्वास करो—भगवान् तुमसे मिलना चाहते हैं।

२५ नवम्बर—विश्वास करो—यह विश्वास ही तुम्हें भगवान‍्की ओर ले जायगा।

२६ नवम्बर—विश्वास करो—जितना ही तुम भगवान‍्के समीप पहुँचोगे तुम्हें उतना ही आनन्द प्राप्त होगा और वह आनन्द ऐसा होगा जिसके सामने विषय-भोगोंके बड़े-से-बड़े आनन्द फीके जँचने लगेंगे।

२७ नवम्बर—विश्वास करो—सच्चा आनन्द भगवान‍्की प्राप्तिमें ही है। विषयोंसे प्राप्त होनेवाला आनन्द तो जहरसे भरे मीठे लड्डूके समान है।

२८ नवम्बर—विश्वास करो—भगवान् उन्हें मिलते हैं जो उन्हें चाहते हैं और उनके मिलनेमें विश्वास करते हैं। भगवान् उन्हें मिलते हैं जो भगवान‍्से मिलनेके लिये ही जीते हैं तथा भगवान‍्से मिलनेके लिये ही जीवनकी सब क्रियाओंको करते हैं।

२९ नवम्बर—विश्वास करो—भगवान् उन्हें मिलते हैं जो भगवान‍्की प्राप्तिके लिये सब कुछ त्याग कर सकते हैं।

३० नवम्बर—विश्वास करो—भगवान् उन्हें मिलते हैं जो भगवान‍्की सृष्टिमें किसीसे द्वेष नहीं करते और सभीका यथासाध्य हित ही करना चाहते हैं।

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