गौके सम्बन्धमें कुछ विशिष्ट पुरुषोंके उद्गार
जगद्गुरु श्रीशङ्कराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर श्रीब्रह्मानन्द सरस्वतीजी महाराज—
‘जो हिंदू धर्मशास्त्रपर विश्वास रखते हैं, उन्हें चाहिये कि चतुर्वर्ग-फल-सिद्धॺर्थ शास्त्रविधानके अनुसार गोसेवा करते हुए गोधनकी वृद्धि करें और जो धर्मशास्त्रपर आस्था नहीं रखते, उन्हें चाहिये कि ‘अर्थ’ और ‘काम’ की सिद्धिके लिये अर्थशास्त्रके नियमोंके अनुसार गो-पालन करते हुए गोवंशकी वृद्धि करनेका प्रयत्न करें।’
कामकोटिपीठाधिपति जगद्गुरु श्रीशङ्कराचार्यजी महाराज—
‘जिन्होंने जगत्के हितकी जिम्मेवारी अपने ऊपर ले रखी है, उन देशके शासकोंको खूब विचार करके तुरंत गोहिंसा-निवारण और गो-संरक्षणके कार्यमें लग जाना चाहिये। और सर्वसाधारणको भी सावधानीके साथ गौओंकी रक्षा करनी चाहिये।’
श्रीस्वामीजी श्रीकरपात्रीजी महाराज—
‘बूढ़ी, लूली, लँगड़ी, रोगिणी, दूध न देनेवाली, चाहे किसी भी प्रकारकी गौ हो उसकी उपेक्षा करना महापाप है। हर तरहसे आदरपूर्वक उनकी रक्षा, सेवा-पूजा कुटुम्ब, समाज तथा राष्ट्रका मङ्गल करनेवाली होती है।’
प्रसिद्ध संत और महान् कर्मठ श्रीप्रभुदत्तजी ब्रह्मचारी—
‘यदि हम संसारमें हिंदू कहलाकर जीवित रहना चाहते हैं तो हमें प्राणपणसे सर्वप्रथम गोरक्षा करनी पड़ेगी।’
संत विनोबा भावेजी—
‘इस देशमें गोहत्या नहीं चल सकती। गाय-बैल हमारे समाजमें दाखिल हो गये हैं। सीधा प्रश्न यह है कि आपको देशका रक्षण करना है या नहीं। यदि करना है तो गो-वध भारतीय संस्कृतिके अनुकूल नहीं आता। इसका आपको ध्यान रखना चाहिये। गो-हत्या जारी रही तो देशमें बगावत होगी। गो-हत्याबंदी भारतीय जनताका मैनडेट या लोकाज्ञा है और प्रधान मन्त्री महोदयको इसे मानना चाहिये।’
‘हिंदुस्थानमें गोरक्षा होनी चाहिये। अगर गोरक्षा नहीं होती तो कहना होगा कि हमने अपनी आजादी खोयी और इसकी सुगन्ध गँवायी।’
गोजीवन श्रीबालकृष्ण मार्तण्ड चौंडेजी महाराज—
‘धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष—इन चारों पुरुषार्थोंके साधनका मूल गो-देवता ही है।’
माननीय राष्ट्रपति डॉ० श्रीराजेन्द्रप्रसादजी—
हिंदुस्थानमें गायोंके लिये इस तरहकी भावना है कि उनका मारना लोग पसंद नहीं करते। यह जो बहादुरीकी सलाह दी जाती है कि जितने खराब जानवर हैं, उनको कतल कर दिया जाय तो मैं समझता हूँ—‘बहादुरी ज्यादा है, बुद्धिमानी नहीं है।’ यदि हम इस कामको करना चाहेंगे तो अपने खिलाफ एक बड़ी जमायत पैदा कर लेंगे।’
मध्यप्रान्तके राज्यपाल श्री० वी० पट्टाभि सीतारामैया—
‘हिंदुस्थानमें तीन माताएँ मानी जाती हैं, उनमेंसे एक गौ है। ये तीन माताएँ हैं—गोमाता, भूमाता और गङ्गामाता। ये तीनों हिंदुस्थानके लोगोंको पोसती हैं—गोमाता बच्चोंको दूध पिलाती और उन्हें पाल-पोसकर बड़ा करती है, भूमाता और गङ्गामाता परस्पर मिलकर फसल खड़ी करतीं और मनुष्योंको अन्न तथा पशुओंको चारा देती हैं। इसलिये तीनों पूजी जाती हैं।’
उत्तर प्रदेशके मुख्यमन्त्री पं० श्रीगोविन्दवल्लभजी पंत—
‘हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख—सभी धर्मावलम्बियोंके लिये गोरक्षा धार्मिक दृष्टिसे मुख्य कर्तव्य है। हिंदू-समाजमें हजारों वर्षोंसे गौका स्थान जननी—माताके तुल्य माना गया है। गायको कामधेनु और सुरभिकी पदवी प्राप्त है। केवल सांसारिक दृष्टिसे देखा जाय तो भी हमारे ऐहिक जीवनके लिये गोवंशकी उन्नतिकी परम आवश्यकता है।’
राजर्षि श्रीपुरुषोत्तमदासजी टंडन—
‘गोरक्षा भारतीय संस्कृतिका एक अङ्ग है। मुझे आशा है कि प्रत्येक भारतीयको भारतीय संस्कृतिके इस अङ्गका पोषण करना चाहिये, फिर उसका धर्म कोई भी क्यों न हो।’
भारत-सरकारके अन्न-कृषि-मन्त्री माननीय श्रीरफी अहमद किदवई साहेब—
‘गोवध-निषेधका प्रश्न अब दीर्घकालतक स्थगित नहीं रखा जा सकता। जनतन्त्रके सिद्धान्तानुसार जनताकी माँगको स्वीकार करना ही चाहिये।’
राजगुरु श्रीधुरेन्द्र शास्त्रीजी—
‘मुझे विश्वास है कि भारत-सरकार समयकी गतिको पहचानेगी और गोवध-निषेधके ठीक कार्यको, ठीक समयपर और ठीक ढंगसे करेगी।’
श्रीजयदयालजी गोयन्दका
‘जिस प्रकार कोई भी पुत्र अपनी माताके प्रति किये गये अत्याचारको सहन नहीं करेगा, उसी प्रकार एक आस्तिक और सच्चा हिंदू गोमाताके प्रति निर्दयताके व्यवहारको नहीं सहेगा। गो-हिंसाकी तो वह कल्पना भी नहीं सह सकता।’