बजरंगबाण-पाठका निषेध
कार्यसिद्धिके लिये अपने उपास्यदेवसे प्रार्थना करना तो ठीक है, पर उनपर दबाव डालना, उन्हें शपथ या दोहाई देकर कार्य करनेके लिये विवश करना, तंग करना सर्वथा अनुचित है। बजरंगबाणमें हनुमान्जीपर ऐसा ही अनुचित दबाव डाला गया है; जैसे—‘इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की।’, ‘सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै।’, ‘जनकसुता-हरि-दास कहावौ। ता की सपथ, बिलंब न लावौ॥’, ‘उठ, उठ, चलु, तोहि राम-दोहाई।’ दबाव डालनेसे उपास्यदेव प्रसन्न नहीं होते, उलटे नाराज होते हैं। इसलिये मैं ‘बजरंगबाण’ का पाठ करनेके लिये मना किया करता हूँ।
—श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज