गीता गंगा
होम > कल्याण कुंज > भगवान‍्की सेवा

भगवान‍्की सेवा

जगत‍्में जो कुछ है, सब भगवान‍्की ही मूर्ति है, यह समझकर सबसे प्रेम करो, सबकी पूजा करो, अपना जीवन सबके लाभके लिये समर्पण कर दो। भूलकर भी ऐसा काम न करो, जिससे सबमेंसे किसी एकका भी अहित हो, एकके भी कल्याणमें बाधा पहुँचे।

••••

दीन-हीन, सरल, असहाय बच्चे माँको ज्यादा प्यारे हुआ करते हैं, भगवान‍‍्रूपी जगज्जननीको भी उसके गरीब बच्चे अधिक प्रिय हैं, इसलिये यदि तुम माताका प्यार पाना चाहते हो तो माताके उन प्यारे बच्चोंसे प्रेम करो, उन्हें सुख पहुँचाओ, माता आप ही प्रसन्न होकर अपना वरद हस्त तुम्हारे मस्तकपर रख देंगी, तुम सहज ही कृतार्थ हो जाओगे।

••••

धरतीका धन ही धन नहीं है, सच्चा धन हृदयमें रहता है, उत्तम विचार और महान् चरित्र-बल ही परम धन है। यह धन—ऐश्वर्य और सौन्दर्यका खजाना, एक टूटी झोंपड़ीमें रहनेवाले अन्न-वस्त्ररहित आडम्बर-शून्य हड्डियोंके ढाँचेके अंदर भी गड़ा मिल सकता है। राजमहलका राजवेष ही इसका निवासस्थान नहीं है; बल्कि उसमें तो यह धन भूले-भटके ही कहीं मिलता है।

••••

जिसके पास पैसा नहीं है; परन्तु बुद्धि, विवेक, सत्य, श्रद्धा, चरित्र और प्रभुभक्ति है वह परम धनी है और जो पैसेवाले हैं या रात-दिन सिर्फ पैसा बटोरनेके काममें ही लगे रहते हैं, वे तो सदा ही निर्धन हैं।

••••

धनकी इच्छा ही मनुष्यको मतवाला बनाने लगती है और धन हो जानेपर तो वह प्राय: मतवाला हो ही जाता है, फिर उसे धनके नशेमें दूसरेके सुख-दु:खका कोई खयाल ही नहीं रहता, वह अपनी मौज-शौकके लिये गरीबोंके पेट काटने, उनकी झोंपड़ियाँ ढहाने और उनके खेतोंको काटनेमें तनिक भी नहीं हिचकता। धनके नशेमें कभी पागल मत होओ।

••••

याद रखो, सब कुछ यहीं छोड़ जाना है, इसलिये ऐसा धन मत कमाओ जिसमें गरीब तबाह होते हों, उनके मुँहका रूखा-सूखा टुकड़ा छिनता हो, उनके बाल-बच्चोंका जीवन बिगड़ता हो, उनका भविष्य अन्धकारमय बन जाता हो। धन तो चला ही जायगा, गरीबोंका दारुण दु:ख, उनका आर्तनाद, उनकी सन्ताप-ज्वाला प्रलयाग्नि बनकर, तुम्हारे सुखके नगरको भस्मीभूत कर डालेगी!

••••

दुखियामें, अनाथमें, भूखेमें, रोगीमें, असहायमें, विधवामें, अपाहिजमें, मूक पशुओं और पक्षियोंमें, विपद‍्ग्रस्तोंमें, पापोंमें डूबे हुए लोगोंमें, पथ भूले हुए पथिकोंमें, शत्रुतासे वर्तनेवालोंमें और आडम्बरी लोगोंमें भगवान‍्को देखो और उनकी यथायोग्य पूजा कर—तन, मन, धनसे यथोचित उनका हित कर, भगवान‍्के प्रियपात्र बनो।

••••

सुख न पहुँचा सको तो दु:ख तो किसीको न पहुँचाओ, धरतीपरसे पापका भार हलका न कर सको तो पापमय जीवन बनाकर उसके भारको बढ़ाओ मत। जीवनको प्रभुमय, सादा, स्पष्ट, सरल, श्रद्धामय बनाओ और विवेकको सदा साथ रखो। यही भगवान‍्की सेवा है।

अगला लेख  > भगवत्प्रेम और उसकी प्राप्ति