दिव्यत्व
मनकी नीरोगता ही सच्ची नीरोगता है। जिसका शरीर बलवान् और हृष्ट-पुष्ट है, परन्तु जिसके मनमें बुरी वासना, असद्विचार, काम, क्रोध, लोभ, घृणा, द्वेष, वैर, हिंसा, अभिमान, कपट, ईर्ष्या, स्वार्थ आदि दुर्गुण और दुष्ट विचार निवास करते हैं, वह कदापि नीरोग नहीं है। उसकी शारीरिक नीरोगता भी बहुत जल्द नष्ट होनेवाली है।
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मनका सर्वथा वासनारहित होना ध्येय होनेपर भी बहुत ही कठिन है। अतएव पहले बुरी वासनाओंको दबाकर अच्छी वासनाओंका संग्रह करना चाहिये। जिसके मनमें जितनी सद्वासनाएँ होंगी वह उतना ही अधिक सुखी होगा।
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मनका रोगी आदमी सदा जला ही करता है। वह कभी शान्ति और शीतलताकी उपलब्धि नहीं करता। कभी कामनासे जलता है तो कभी लोभसे, कभी अभिमानसे तो कभी वैरसे, कभी क्रोधसे तो कभी ईर्ष्यासे!
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सुन्दर भी वही है, जिसका हृदय सुन्दर है। जो आकृतिसे बहुत सुन्दर है, जिसके शरीरका रंग और चेहरेकी बनावट बहुत ही आकर्षक है, परन्तु जिसके हृदयमें दुुर्गुण और दोष भरे हैं; वह गंदे हृदयका मनुष्य सदा ही असुन्दर है। ज्यों ही उसके हृदयके भाव बाहर जाते हैं, त्यों ही वह सबकी घृणाका पात्र बन जाता है।
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हृदयको शुद्ध करो, एक-एक दोषको चुन-चुनकर निकाल दो, सद्गुणोंको ढूँढ़-ढूँढ़कर हृदयमें बसाओ, तुम्हारा हृदय देवपुरी बन जायगा। देवता वही है जिसके हृदयमें दैवी गुण भरे हैं, नहीं तो वह देव-वेषमें असुर ही है।
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सारे जगत्में एकमात्र भगवान् पूर्ण हैं, जो ब्राह्मणमें हैं, वही चाण्डालमें हैं, जो हाथीमें हैं, वही गौमें हैं और वही कुत्तेमें हैं। इन सबके व्यवहारमें बड़ा भेद है और वह बाहरी भेद कभी मिट भी नहीं सकता। परन्तु इस महान् भेदके रहते भी वास्तवमें अभेद है। इस प्रकार भेदमें अभेद देखनेको ही भगवान्ने गीतामें ब्रह्मदर्शन बतलाया है। जो यों सर्वत्र सबमें ब्रह्मदर्शन करता है, वही दिव्य जीवनको प्राप्त है, वही भगवान्का परम प्रेमी भक्त है।
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हम सबको भी भगवान्का भक्त बनना चाहिये। सबमें भगवान्का परिचय पाकर मन-ही-मन सबको नमस्कार करते हुए सबके साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिये। व्यवहारमें अनेकों भेद रहनेपर भी भगवान्का परिचय हो जानेपर, सब प्रकारके दोष दूर हो जायँगे। जहर निकल जायगा।
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भक्त तो सबमें सर्वत्र सर्वदा अपने प्राणाराम भगवान्को देखता ही है। उसकी दृष्टिमें तो सब कुछ अपने प्राणाधार परमेश्वरका ही विलास होता रहता है। विलास ही क्यों, उसे सब कुछ भगवान् ही दीखता है। वह अपने हृदयेश्वरको नये-नये विभिन्न वेषोंमें देख-देखकर पल-पलमें प्रफुल्लित होता है, हँसता है और लीलामयकी लीलाका अभिनन्दन करता है।
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भक्तके हृदयमें भगवान्का स्थान वैसे ही सर्वोपरि सुरक्षित रहता है जैसे पतिव्रता स्त्रीके हृदयमें पतिका। जैसे पतिव्रता स्त्री पतिरूपसे किसी अंशमें भी दूसरेको हृदयमें स्थान नहीं देती, इसी प्रकार भक्त भी अपने एकमात्र प्राणाराम प्रियतम परमात्माको छोड़कर दूसरे किसीको हृदयमें स्थान नहीं देता। वास्तवमें उसके हृदयपर तो केवल परमात्माका ही अखण्ड एकच्छत्र राज्य छा जाता है। वहाँ दूसरेकी सत्ता कल्पनामें भी नहीं आ सकती।
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भगवान् सर्वशक्तिमान् हैं, सर्वगुणाधार हैं, सृष्टिकर्ता हैं, सबके एकमात्र स्वामी हैं, ऐश्वर्य, माधुर्य, कारुण्य, प्रेम आदिके अथाह समुद्र हैं, हमारे परम सुहृद् हैं, इस बातपर विश्वास होते ही उनके प्रति अपने-आप हृदय खिंच जाता है। शास्त्र और अनुभवी संतोंकी वाणीपर विश्वास करके हमें भगवान्को ऐसा समझ लेना चाहिये। जब भगवान्के सदृश कोई वस्तु हमारी दृष्टिमें न रहेगी, तब हमारा हृदय उन्हींका निवासस्थान बन जायगा। हमारा चित्त उन्हींके चिन्तनमें डूब जायगा।
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जिनके हृदयमें भगवान्का असाधारण प्रभाव प्रकट हो गया, जो भगवान्के प्रेमी हो गये, बस उन्हींका जीवन सफल है। इस सच्ची सफलताका लौकिक ऐश्वर्य, यश और सम्मान आदिसे कोई सम्बन्ध नहीं है। इन विषयोंमें सबसे अधिक सफलता प्राप्त कर चुकनेवाले मनुष्य भी वास्तवमें निरर्थक जीवन बिता देनेवाले अभागे ही हैं यदि उनका मन भगवत्प्रेमसे शून्य है।
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जगत् चाहे हमें सफलजीवन और सद्भागी समझे; परन्तु यदि हमारे मनमें दोष भरे हैं, कामनाकी ज्वाला जल रही है और भगवत्प्रेमसुधाका प्रवाह नहीं बन रहा है तो निश्चय समझो हमारा जीवन सर्वथा निष्फल ही है।
परन्तु जिनको कोई नहीं जानता अथवा जिनको निष्फल-जीवन समझकर लोग जिनसे घृणा करते हैं और नाक-भौं सिकोड़ते हैं, उनमें हमें ऐसे पुरुष मिल सकते हैं जो वास्तवमें सफलजीवन हैं, दिव्यत्वको प्राप्त हैं।
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जगत्को कुछ भी दिखानेकी भावना न रखकर हृदयको शुद्ध बनाओ, बुरी वासना और दुर्गुणोंको हृदयसे निकालकर उसे दैवी गुणों और भगवत्प्रेमसे भर दो। अपनेको अपने सर्वस्व और अपनेपनसहित भलीभाँति भगवान्के प्रति समर्पण कर दो। तुम्हारे अंदर भागवती शक्ति अवतीर्ण हो जायगी। श्रद्धापूर्वक चेष्टा करो, भगवान्की कृपासे कुछ भी कठिन नहीं है। विश्वास करो, तुम्हें अवश्य सफलता होगी, तुम इसी शरीरसे दिव्यत्वको प्राप्त हो जाओगे।