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कंचन, कामिनी और कीर्ति

याद रखो! एक दिन मृत्यु अवश्य होगी और कब होगी इसका तुम्हें कुछ भी पता नहीं। अभी होश-हवास-दुरुस्त बैठे हो, शायद अगला ही मिनट तुम्हारी मृत्युका काल हो। उस समय तुम्हारे सारे काम ज्यों-के-त्यों धरे रह जायँगे। अभी कामसे तुम्हें पलभरको फुरसत नहीं मिलती, उस समय आप ही सदाके लिये फुरसत मिल जायगी। अभी शरीरके आरामके लिये तुम बड़े सुन्दर महलोंमें मुलायम गद्दोंपर सोते-बैठते हो, उस समय निर्जन वनमें सियार, कुत्ते और गीधोंसे घिरे हुए डरावने मरघटमें खाली जमीनपर तुम्हारा यह सोने-सा शरीर जलकर खाक हो जायगा। सारे अरमान मनके मनमें रह जायँगे, सारी शेखी चूर हो जायगी, सारी हेकड़ी काफूर हो जायगी, तुम्हारी मदभरी, गर्वभरी और रिसभरी आँखें सदाके लिये मुँद जायँगी।

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कैसे निश्चिन्त-से होकर भोगोंमें भटक रहे हो? चेतो, शीघ्र चेतो! फिर पछतानेसे कुछ भी नहीं होगा; इस शरीरसे छूटकर जब तुम परलोकमें जाओगे और वहाँ तुम्हारे यहाँके कमाये हुए कर्मोंका भीषण फल सामने आवेगा, तब काँप उठोगे। यहाँके मौज-मजोंमें जिस सुखका अनुभव करते हो, वहाँ एक-एक मौजके बदलेमें जो भयानक दण्ड मिलेगा, उसे सुनकर मूर्च्छित होने लगोगे। परंतु बाध्य होकर मौजका बदला भोगना ही पड़ेगा। इसीसे अभी चेत जाओ। शरीर, मन, वचनसे किसी जीवका अहित न करो, किसीके जीको मत दुखाओ, सबका भला चाहो, भला करो, अपना अहित करके भी दूसरोंका हित करो। निश्चय रखो, तुम्हारा अहित कभी नहीं होगा, धोखेसे अभी तुम्हें दीखनेवाला अपना अहित परम हितके रूपमें परिणत हो जायगा। सबको परमात्माका स्वरूप समझकर सबकी अहैतुकी सेवा करो, परम कृपालु परमात्माका मन, वाणी और शरीरसे भजन करो; मनसे उनका ध्यान करो, वाणीसे उनका गुणगान करो और शरीरसे—सर्वत्र सबमें उन्हें विराजित देखकर सबकी आदर, प्रेम और उछाहके साथ सेवा करो।

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विषयोंसे मन हटाकर भगवान‍्में लगाते रहो, विषयोंको विष समझो और भगवान‍्को दिव्य अमृत! भगवान‍्के लिये भगवत्पूजाके भावसे विषयोंका ग्रहण करना दूषित नहीं है, परन्तु कभी भी भोग-बुद्धिसे विषयोंको न चाहो, न भोगो, न उनमें प्रीति करो; श्रीभगवान‍्को प्राप्त करनेकी जितनी साधनाएँ हैं, सबमें वैराग्य और भजन प्रधान हैं। जिसके हृदयमें वैराग्य है, वह बड़े-से-बड़ा त्याग सहज ही कर सकता है। त्यागसे सारे सद‍्गुण आप ही आ जाते हैं; परंतु वैराग्यके साथ भजनकी आवश्यकता है। संसारके भोगोंसे हटाये हुए मनको साथ-ही-साथ भगवान‍्में लगानेका भी प्रयत्न करना चाहिये।

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धन, स्त्री और मान—इन तीनोंका मोह छोड़नेकी चेष्टा करो, धनका महत्त्व हृदयसे निकाल दो, दान और सत्कार्यके लिये भी धनसंग्रहकी चेष्टा मत करो। न सत्कार्यकी प्रवृत्तिके लिये ही किसी धनवान‍्से धन माँगकर धनको महत्त्व प्रदान करो। अपने लोभरहित न्यायोपार्जित धनसे यथायोग्य सत्कार्य करो। उस माता लक्ष्मीको भगवान‍्की गृहिणी समझकर भगवान‍्के चरणोंमें भेंट कर दो, तुम तो माँका दिया हुआ प्रसादमात्र ग्रहण करो। माँ लक्ष्मीको कभी भोग्या मत समझो। तुम किसी सत्कार्यमें लगे हो तो जहाँतक हो—बिना माँगे मिल जाय, उसी धनसे सत्कार्य करो। धनमें तुच्छ बुद्धि करो और उसकी आवश्यकताको यथासाध्य घटाते रहो। जिससे तुम्हें किसीसे कभी कुछ भी माँगना न पड़े।

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स्त्रीजातिका अपमान न करो, स्त्रीजातिसे कभी घृणा न करो, परंतु उसे भोग्य वस्तु समझकर उसका अमर्यादित संग भी न करो। तुम कहोगे, हम भोग्य वस्तु नहीं समझते, देवी समझते हैं। बहुत अच्छी बात है! परन्तु मन बड़ा दुष्ट है। बड़े-बड़े तपस्वी और संयमी पुरुष संगसे विचलित हो जाते हैं। अतएव झूठे अभिमानको छोड़ दो। अपनी कमजोरियोंपर खयाल करके स्त्रियोंसे अलग रहो। धनसे स्त्रीका त्याग कठिन है और स्त्रीकी अपेक्षा मानका। स्त्रीका त्याग केवल अलग रहनेमें ही नहीं है। भोग्यबुद्धिसे स्त्रीका चिन्तन, दर्शन—उसके चित्रका दर्शन भी विकार उत्पन्न करनेवाला होता है। भोग्यबुद्धि अन्दर छिपी रहती है। मनको बहुत टटोलकर देखो—अपना दोष पहचाननेकी इच्छासे गहरी अन्तर्दृष्टि करो, तुम्हें पता लगेगा स्त्रीके रूपपर, उसके वेश-भूषापर, उसके शब्दोंपर, उसके हाव-भावपर—तुम्हारे मनमें आसक्ति है। इसी प्रकार स्त्रियोंको भी पुरुषोंसे बचना चाहिये। गुरुभावसे भी एकान्तमें पर-पुरुषसे कभी नहीं मिलना चाहिये। इन्द्रियाँ बड़ी प्रबल हैं। साधन करते-करते संयमसे निकल भागती हैं। फिर इन्हें स्वच्छन्द छोड़नेपर तो कहना ही क्या है?

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मान-बड़ाई बड़ी मीठी छुरी है। विषभरा सोनेका घड़ा है। इससे खूब सावधानीसे बचो। बहुत बार मनुष्य मानका त्याग भी मानके लिये ही करता है। अपमानको भी मानकी कामनासे सिर चढ़ाता है। सावधान! मनके धोखेमें मत आओ! सच्चे अमानी बनो! मनुष्य धन और स्त्रीको छोड़ देता है; परन्तु मानका त्याग और उसमें भी शारीरिक मानकी अपेक्षा—मौखिक बड़ाईका त्याग होना बड़ा कठिन है। कीर्तिकी कामनामें बहुत बड़े-बड़े सत्कार्य बड़े सस्ते बेच देने पड़ते हैं। कीर्तिका लोभ न करो—भगवान‍्का लोभ करो। यह निश्चय रखो—यदि तुम्हारा जीवन पवित्र है, तुम्हारे आचरण सर्वथा निर्दोष हैं, तुम्हारे मन-मन्दिरमें भगवान‍्का निवास है और तुम सदा तन-मन-वचनसे सर्वव्यापी सर्वाधार सर्वशक्तिमान् सर्वेश्वर भगवान‍्का प्रेमपूर्वक अहैतुक भजन करते हो तो चाहे संसारमें तुम्हें कोई न जाने, चाहे घरके लोग भी तुम्हारा मान न करें और चाहे विषयोंके तराजूपर तौलनेवाले विषयी पुरुष तुम्हें दरिद्र और अकिंचन समझकर तुम्हारा अपमान ही करें—तुम्हारा इसमें कुछ भी नुकसान नहीं है, तुम सबसे ऊँचे धाम और सबसे बड़े नित्य और अमिश्रित आत्यन्तिक सुखको सदाके लिये प्राप्त हो जाओगे। इसके विपरीत, यदि तुम्हारे पास बहुत धन है, तुम बड़े परिवारवाले हो; राजा, महाराजा या हाकिम हो, बड़े गुरु या उपदेशक हो, तमाम दुनियामें तुम्हारा नाम जगमगा रहा है, परन्तु हृदय अपवित्र है, राग-द्वेषके वशमें हुए विषय-सेवनमें लगे हुए हो, भगवान‍्को स्मरण करनेके लिये समय ही नहीं मिलता, तो क्या हुआ, तुम्हारा यहाँका यह मान-सम्मान सर्वथा निरर्थक और परलोकमें दु:खका हेतु है। याद रखो— तुम्हारी जिन्दगी बेकार ही नहीं है, तुम घोर नरकोंकी यात्राकी तैयारी कर रहे हो। अतएव मान छोड़कर दूसरोंको मान दो और सच्चे विनयी होकर भगवान‍्का भजन करो।

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जीवन बहुत थोड़ा है, यदि तुम्हारा यह विश्वास हो गया है (और नहीं हुआ है तो महात्मा और संतोंकी वाणी तथा उनकी जीवनीका अध्ययन करके करना चाहिये) कि भगवत्प्राप्ति ही इस मनुष्य-जीवनका एकमात्र उद्देश्य है तो आजसे अभीसे ही उसकी प्राप्तिके लिये प्रणबद्ध होकर दृढ़ताके साथ लग जाना चाहिये। संसारका कोई भी प्रलोभन तुम्हारे मार्गमें बाधा न दे सके, ऐसी शक्ति प्राप्त करनेके लिये सर्वशक्तिमान् परमात्मासे प्रार्थना करनी चाहिये। याद रखो—तुम उसी सर्वशक्तिमान‍्के सनातन अंश हो, तुममें वह शक्ति है, उसे भूले हुए हो, भगवत्कृपासे प्रार्थनाके बलसे तुम उस शक्तिको जान जाओगे और जानते ही तुम उस शक्तिवाले बन जाओगे। उस शक्तिकी जागृतिकी पहली कसौटी है—विषयोंपर अनास्था और सर्वशक्तिमान् परमात्मापर अटल विश्वास। इस स्थितिको प्राप्त होनेपर तुम्हें कोई भी प्रलोभन नहीं रोक सकेगा। तुम विश्वविजयी होकर विश्वात्माको प्राप्त करोगे।

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