॥ श्रीहरि:॥
निवेदन
‘कल्याण-कुंज’ भाग—१ पाठकोंकी सेवामें प्रस्तुत करते हमें प्रसन्नता हो रही है। ‘कल्याण-कामी’ महानुभावोंने इस पुस्तिकाका जो आदर किया है, वह अभिनन्दनीय है। इस पुस्तिकाके रूपमें किन महानुभावके पूत हृदयके उदात्त विचार हैं, यह जाननेकी अभिलाषा पाठकोंके मनमें वर्षोंसे रही है। अनेकों पाठकोंने व्यक्तिगत रूपसे पत्र लिखकर हमसे यह पूछा है और हमने उन्हें इसका स्पष्टीकरण भी किया है, परंतु खुले रूपमें यह बात कभी प्रकट नहीं की गयी कि ये विचार हमारे परम श्रद्धास्पद भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके पावन हृदयके उद्गार हैं, जो उन्होंने ‘कल्याण’ मासिक पत्रमें प्रतिमास ‘कल्याण’ शीर्षकसे प्रकाशित किये थे। पीछे उन्हीं विचारोंको संगृहीत करके पुस्तकरूप दे दिया गया।
‘कल्याण’ शीर्षकसे कल्याणमें प्रकाशित इन विचारोंके अन्तमें श्रीभाईजी अपने नामके स्थानपर ‘शिव’ नाम दिया करते थे। ऐसा करनेका वास्तविक हेतु तो अन्तर्यामी प्रभु या श्रीभाईजी स्वयं ही जानते थे, पर इतने वर्षोंतक साथमें रहकर श्रीभाईजीकी प्रकृतिको देखने-समझनेसे यह अनुमान होता है कि उनका वैष्णवोचित दैन्य इतनी पराकाष्ठाको पहुँच चुका था कि वे उपदेश-आदेशके रूपमें लिखी वस्तुको अपने नामसे प्रकाशित करनेमें संकोच अनुभव करते होंगे; यद्यपि हमारी अल्पदृष्टिसे श्रीभाईजी इतनी ऊँची आध्यात्मिक भूमिकापर आरूढ़ थे कि सभी प्रकारका उपदेश-आदेश देनेके वे सर्वथा अधिकारी थे।
‘कल्याण’ शीर्षकके अन्तर्गत प्रकाशित इन लेखोंको ‘सम्पादकीय लेख’ के रूपमें ग्रहण किया जा सकता है। ‘कल्याण’ के सभी श्रेणीके पाठक एवं पाठिकाएँ इन विचारोंको सबसे पहले पढ़ते थे और इनसे बड़े प्रभावित होते थे। श्रीभाईजीकी दीर्घकालीन साधना, तपस्या, चिन्तन, अध्ययन एवं अनुभूतियोंपर आधारित ये विचार न जाने कितने-कितने लोगोंके जीवनमें परिवर्तन करने, उनमें भगवद्विश्वासकी प्रतिष्ठा करने, उन्हें सत्पथ दिखाने, आशा-उत्साहका संचार करने, साधनका सही मार्ग बताने आदिमें हेतु बने हैं, इसका हिसाब लगाना सम्भव नहीं है। आशा है, सहृदय पाठक-पाठिकाएँ भी इन विचारोंका मनोयोगपूर्वक अध्ययन-मनन कर इनसे लाभ उठानेका प्रयत्न करेंगे।