सच्चा सुधार
याद रखो, विश्वके रूपमें साक्षात् भगवान् ही प्रकट हो रहे हैं। जीवके रूपमें शिव ही विविध लीला कर रहे हैं। इसलिये तुम किसीसे घृणा न करो, किसीका कभी अनादर न करो, किसीका अहित मत चाहो। निश्चय समझो, यदि तुमने स्वार्थवश किसी जीवका अहित किया, किसीके हृदयमें चोट पहुँचायी तो वह चोट तुम्हारे भगवान्के ही हृदयमें लगेगी। तुम चाहे जितनी देर अलग बैठकर भगवान्को मनाते रहो, परन्तु जबतक सर्वभूतोंमें स्थित भगवान्पर तुम स्वार्थवश चोट करते रहोगे तबतक भगवान् तुम्हारी पूजा कभी स्वीकार नहीं कर सकते।
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सबका सम्मान करो, सबका हित चाहो, सबसे प्रेम करो, आत्माकी दृष्टिसे सब भेदोंको भुलाकर सबको नमस्कार करो। इसका यह अर्थ नहीं कि व्यवहारके आवश्यक भेदको भी मिटा दो। दुष्ट बुद्धिवाले पुरुषोंको जीवन्मुक्त महात्मा मत समझो। मूर्खको विद्वान् समझकर उसकी बात सुनोगे तो फिर गिर जाओगे। विद्वान्को मूर्ख मानकर उनकी बात नहीं सुनोगे तो ज्ञानसे वंचित रह जाओगे। पापसे घृणा करो, असंयमसे द्वेष करो, दुष्ट आचरणोंसे वैर करो, कुविचारोंका अपमान करो, नास्तिकताका विनाश करो, जिनमें ये दोष हों उनसे अलग रहो, परन्तु उनसे आत्माकी दृष्टिसे घृणा न करो। स्वरूपमें अभेद और व्यवहारमें आवश्यक भेद रखो।
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किसीको नीच, पतित या पापी मत समझो; याद रखो, जिसे तुम नीच, पतित और पापी समझते हो, उसमें भी तुम्हारे वही भगवान् विराजित हैं, जो महात्मा-ऋषियोंके हृदयमें हैं। सबको प्रेमदान करो, सबके प्रति सहानुभूति रखो। किसीकी निन्दा न करो। किसीकी निन्दा न सुनो। साधकको तो दूसरेकी निन्दा सहन ही नहीं होनी चाहिये। निन्दा सुननी हो तो अपनी सुनो और करनी आवश्यक समझो तो अपनी सच्ची निन्दा करो।
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नि:स्वार्थभावसे सबके साथ प्रेम करो, अपने प्रेमबलसे दूसरोंके चरित्रको सुधारो, उन्हें ऊँचे उठाओ। तुम्हारे आचरण आदर्श होंगे तो तुम अपने स्वार्थहीन प्रेमके बलसे गिरे हुए भाईको ऊँचा उठा सकोगे। याद रखो, शुद्ध आचरणयुक्त नि:स्वार्थ प्रेममें बड़ा बल होता है।
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अपनेको कोई चीज अच्छी नहीं लगती, केवल इसी बुनियादपर किसी चीजको बुरी न मान लो और न उसके ध्वंसकी चेष्टा करो। यही मत समझ बैठो कि तुम्हारा सर्वथा सुधार हो गया है, तुम्हारी सभी बातें सबके लिये कल्याणकारी हैं और तुम्हारे विचारोंमें भ्रम है ही नहीं। जबतक मनुष्यमें राग-द्वेष हैं, तबतक उसका निर्णय कभी सर्वथा निर्भ्रान्त नहीं हो सकता। कभी अपनेको दूसरोंसे श्रेष्ठ समझकर अभिमान न करो। अगर करोगे तो याद रखो, तुम्हारा पतन भी जरूर होगा। अतएव पहले अपने दोषोंको देखो, उनमें सुधार करो, फिर दूसरोंके सुधारकी चेष्टा करो।
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सुधारका ठेका मत लो। न अपने मतको सर्वथा उपकारी समझकर किसीपर लादनेका हठ करो। सुधारका सच्चा रूप जो तुम समझते हो, सम्भव है वह नहीं हो और तुम्हें मोह, परिस्थिति, स्वार्थ या द्वेषवश वैसा दीखता हो। सावधान, कहीं सुधारके नामपर संहार न कर बैठो। सुधार तुम्हारे किये होगा भी नहीं। सच्चे सुधारक तो भगवान् हैं, जो प्रकृतिके द्वारा निरन्तर ध्वंस और निर्माणके रूपमें सुधार करते रहते हैं। नि:स्वार्थी, जीवोंके सुहृद्, सर्वज्ञ तथा सर्वशक्तिमान् होनेके कारण भगवान्का किया हुआ सुधार परिणाममें निश्चय ही कल्याणकारी होता है और मोहवश इच्छा न करनेपर भी बाध्य होकर उसे सबको स्वीकार भी करना ही पड़ता है।
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भगवान् मंगलमय हैं, हमारे परम हितैषी हैं, सर्वज्ञ हैं, किस बातमें कैसे हमारा हित होता है, इस बातको जानते हैं। अतएव उनके प्रत्येक विधानका स्वागत करो। खुशीसे सिर चढ़ाकर स्वीकार करो। उनके हाथके दिये जहरमें अमृतका अनुभव करो; उनके हाथकी तलवारमें शान्ति-छबि देखो, उनके कोमल करस्पर्शसे महिमाको पाये हुए सुदर्शनमें परम सुखके शुभ दर्शन करो और उनकी दी हुई मौतमें अमरत्वको प्राप्त करो। उनके प्रत्येक मंगलविधानमें उनको स्वयमेव अवतीर्ण देखो।
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थोड़े-से जीवनमें इतना समय ही कहाँ है, जिसको परचर्चा और परनिन्दामें खर्च किया जाय? तुम्हें तो अपनी उन्नतिके कामोंसे ही कभी फुरसत नहीं मिलनी चाहिये। इतना अवश्य याद रखो कि दूसरोंकी अवनति करके—दूसरोंका बुरा करके तुम अपनी उन्नति या भलाई कभी नहीं कर सकते। तुम्हारा मंगल उसी कार्यमें होगा जिसमें दूसरोंका मंगल भरा हो। कम-से-कम अपने मंगलके लिये मोहवश दूसरोंका अमंगल कभी न करो—न चाहो। अपने अमंगलसे दूसरोंका मंगल होता दीखे तो जरूर करो। यह विश्वास रखो कि दूसरोंका मंगल करनेवाले पुरुषका परिणाममें कभी अमंगल हो ही नहीं सकता।
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डरो पापसे, अभिमानसे, ममतासे, कामनासे, शोकसे, क्रोधसे, लोभसे, सम्मानसे, बड़ाईसे, ख्यातिसे, पूजासे, नेतृत्वसे, गुरुपनेसे, महंतीसे, पदवीसे, सभा-समितियोंसे, स्वेच्छाचारसे, उच्छृंखलतासे, मनमाने आचरणोंसे, इन्द्रियोंकी गुलामीसे, विषयासक्तिसे, मौज-शौकसे, विलासितासे, वाद-विवादसे, परचर्चासे, परनिन्दासे, परधनसे, परस्त्रीसे और इनसे यथासाध्य सदा बचे रहो।
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किसी कामके सफल होनेपर यह मत समझो कि यह तुम्हारी करनीसे हुआ है। तुम तो निमित्तमात्र हो। सफलतापर बड़ाई मिलनेपर खुशीसे मत फूल उठो। यह तो संसारका नियम ही है। सफलतापर सभी बधाई और बड़ाई देते हैं तथा असफलतापर धिक्कार एवं निन्दा। आज बड़ाईमें फूलोगे तो कल निन्दा सुनकर रोना पड़ेगा। सदा न किसीको सफलता मिलती है, न असफलता।
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अपनी समझसे कोई बुरा काम न करो, बुरी नीयत मत रखो, फल बुरा हो तो शोक न करो। इसी प्रकार अपनी समझसे अच्छा काम करो, अच्छी नीयत रखो, फल तो विधाताके हाथ है। तुम अपना काम करो, विधाताके विधानको पलटनेकी व्यर्थ चेष्टा मत करो। यही सच्चा सुधार है।