शक्ति-संचयसे महाशक्तिपूजा
संयम, सात्त्विक आहार, नियमित परिश्रम, अहिंसा, मातृ-पितृ-गुरुसेवा, दीनसेवा, पवित्रता और ब्रह्मचर्य आदिके द्वारा शरीरको स्वस्थ रखो और उसमें शुद्ध शक्तिका संचय करो।
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संयम, सात्त्विक आहार, अहिंसा, पवित्रता और ब्रह्मचर्यके साथ ही विवेक, वैराग्य, कामनादमन, सौम्यभाव, सर्वत्र भगवत्-दृष्टि, दया, मैत्री, उपेक्षा, प्रसन्नता, निरपेक्षता, परहितव्रत, निरभिमानता, निर्भीकता, सन्तोष, सरलता, मृदुलता और भगवत्-चिन्तन आदिके द्वारा मनको शुद्ध करो और उसमें शुद्ध शक्तिसंचय करो।
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सत्य, सुखकर, हितकर, प्रिय, परोपकारमय और भगवन्नामगुण और यश-गान करनेवाले वचनोंद्वारा वाणीको शुद्ध करो और वाक्में शुद्ध शक्तिसंचय करो।
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जब तुम्हारे शरीर, मन और वाणी तीनों शुद्ध होकर शक्तिके भण्डार बन जायँगे तभी तुम वास्तवमें स्वतन्त्र होकर महाशक्तिकी सच्ची उपासना कर सकोगे और तभी तुम्हारा जन्म-जीवन सफल होगा। याद रखो, जिस पवित्रात्मा पुरुषके शरीर, इन्द्रियाँ और मन अपने वशमें हैं और शुद्ध हो चुके हैं, वही स्वतन्त्र है। परंतु जो किसी भी नियमके अधीन न रहकर शरीरका, इन्द्रियोंका और मनका गुलाम बना हुआ मनमानी करना चाहता है, कर सकता है या करता है वह तो उच्छृंखल है। उच्छृंखलतासे तीनोंकी शक्तियोंका नाश होता है और वह फिर महाशक्तिकी उपासना नहीं कर सकता। महाशक्तिकी उपासनाके बिना मनुष्यका जन्म-जीवन व्यर्थ है और पशुसे भी गया-बीता है। अतएव शक्तिसंचय करके स्वतन्त्र बनो।