निवेदन
प्रतिवर्ष ग्रीष्मकालमें गंगाके उस पार स्वर्गाश्रममें गीताप्रेसके संस्थापक परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन श्रीजयदयालजी गोयन्दका तीन-चार महीनोंके लिये सत्संगका आयोजन किया करते थे। ऐसा सुना गया है कि एक वर्ष संवत् १९९५ यानी सन् १९३८ में हरिद्वारमें कुम्भमेला होनेके कारण ऋषिकेशमें बहुत अधिक भीड़ आदिकी सम्भावनासे उन्होंने एकान्तमें कर्णवास (उत्तरप्रदेश) में गङ्गाजीके किनारे सत्संग करनेका विचार किया। उस समय उनके द्वारा हमलोगोंके कल्याणहेतु बहुत-से प्रवचन हुए। वहाँपर तीर्थोंमें मनुष्योंको कौन-से नियम पालन करने चाहिये, भगवत्प्राप्तिमें कौन-सी बातें विशेष रूपसे सहायक हैं तथा उन्होंने अपनी छोटी आयुमें झूठ बोलना, काम, क्रोध, लोभादि दोषोंपर कैसे नियन्त्रण पाया, इन बातोंका इन प्रवचनोंमें विवेचन किया है तथा १५ वर्षकी आयुमें किन महापुरुषके दर्शनमात्रसे उन्हें विशेष आध्यात्मिक लाभ हुआ, यह भी बताया है।
मनुष्य साधारण बातोंको काममें लानेसे कैसे अपना उद्धार कर सकते हैं, जैसे बड़ोंको प्रणाम, बलिवैश्वदेव एवं भगवान्की मानसिक पूजा आदि। इन बातोंको करनेके लिये विशेष रूपसे प्रेरणा भी दी गयी है।
इन प्रवचनोंको पढ़कर, मनन करके हम अपने जीवनमें लावें, इस उद्देश्यसे इन पुराने प्रवचनोंको प्रकाशित करनेका विचार किया गया है। हमें आशा है, पाठकगण इनसे विशेष लाभ उठानेकी कृपा करेंगे।