आवश्यक साधन
सप्रेम हरिस्मरण। आपको पत्र लिखनेमें कोई संकोच नहीं करना चाहिये। मेरा तो आप सबके प्रति एक-सा ही भाव होना चाहिये। आपकी दिनचर्या मालूम हुई—बहुत ठीक है। इस प्रकार करते रहिये। आपके लिखनेके अनुसार आप निरन्तर नामस्मरणका खयाल रखते ही हैं। कभी-कभी कामके झंझटसे भूल जाते हैं, सो ऐसी भूल तो स्वाभाविक ही हो जाया करती है। विशेष खयाल रखनेसे भूल कम होगी। ‘निरन्तर भगवान्का नामस्मरण होता रहे।’ इससे बढ़कर और क्या करना है। निरन्तर नामस्मरण ही भगवान्का सानिध्य प्राप्त करानेमें पूर्ण समर्थ है। पाँच बातोंका खयाल रखिये—
(१) पापकर्म (कम-से-कम शरीरसे तो न हो)।
(२) व्यर्थ चर्चा न हो।
(३) किसीके साथ बुरा बर्ताव न हो।
(४) भगवान्के नामचिन्तनकी विशेष चेष्टा रहे।
(५) भगवत्कृपापर विश्वास हो।
आप विष्णुभगवान्की उपासना करते हैं सो बहुत उत्तम है। ध्यानके लिये समय कम मिलता है, जो कुछ कभी मिलता है—वह दूसरे-दूसरे चिन्तनमें बीत जाता है, लिखा सो ठीक है। नामस्मरण यदि होता रहे तो वह ध्यान ही है।
पाप न हो, विषय-चिन्तन न हो; आलस्य-प्रमादमें समय न बीते, संसारका मोह न हो, एकमात्र भगवच्चिन्तनमें लगे हुए ही सब काम हों—आपकी ये सभी कामनाएँ बहुत ही सराहनीय तथा अत्यन्त उत्तम हैं। परन्तु मेरे कुछ लिख देनेसे ही ये पूरी हो जायँगी, ऐसी बात नहीं है। आप इनकी आवश्यकताका पूरा अनुभव करेंगे और भगवत्कृपापर विश्वास करके अध्यवसायमें लग जायँगे तब भगवत्कृपासे ही ये पूरी होंगी। इसके लिये आप श्रीभगवान्से प्रार्थना कीजिये। मुझको लिखनेमें तो संकोच भी करते हैं और मैं इन्हें पूरी करनेमें समर्थ भी नहीं हूँ। भगवान्से निस्संकोच अपनी ही भाषामें मन-ही-मन कातर प्रार्थना कीजिये। चाहे दिनमें सौ बार कीजिये। भगवान् प्रार्थना सुनते हैं—यह निश्चय है। इतना मेरे कहनेपर विश्वास कीजिये, उनकी कृपासे मनुष्य जिसको असम्भव समझता है, वह भी सम्भव हो सकता है!
श्रीविष्णुभगवान्के ध्यानका प्रसंग ‘श्रीप्रेमभक्तिप्रकाश’ में बहुत ही सुन्दर है, उसको पढ़िये।
जब मनमें आवे, तभी निस्संकोच पत्र लिखकर जो कुछ पूछना हो, पूछिये। मेरा उत्तर यदि कुछ देरसे जाय तो क्षमा अवश्य कीजिये।