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लोक परलोक का सुधार

(श्रद्धेय श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार)

  1. नम्र निवेदन

  2. कुछ आवश्यक बातें

  3. विषयोंमें सुख नहीं है

  4. घर छोड़नेकी आवश्यकता नहीं

  5. धनवानोंका कर्तव्य

  6. धनका सदुपयोग

  7. विपत्ति और निन्दासे लाभ

  8. जगत‍्का स्वरूप और मनुष्यका कर्तव्य

  9. जीवनकी सार्थकता

  10. नि:स्वार्थ प्रेम और सच्चरित्रताकी महिमा

  11. बुद्धि और श्रद्धा

  12. भाग्यवान् और अभागे कौन हैं?

  13. भगवद्दर्शनसम्बन्धी विचार

  14. गुरु, साधु, महापुरुष

  15. धर्म और भगवान्

  16. भगवान‍्का महत्त्व

  17. भक्तके सच्चे हृदयकी पुकार भगवान् अवश्य सुनते हैं

  18. भगवत्कृपा

  19. साधन और भगवत्कृपा

  20. भगवत्कृपाका सहज प्रवाह

  21. मोहनकी मुसकान

  22. भगवत्प्रेमकी अभिलाषा

  23. पतन करनेवाले तीन आकर्षण

  24. विषयकामनाकी आग

  25. दो बड़ी भूलें

  26. आवश्यक साधन

  27. उत्साह रखना चाहिये

  28. पापसे बचनेके उपाय

  29. आठ आध्यात्मिक प्रश्न

  30. कर्म-रहस्य

  31. आत्माकी नित्य आनन्दरूपता

  32. श्रीकृष्णका परम स्वरूप और उनका प्रेम

  33. ज्ञान और प्रेम

  34. प्रेम और ब्राह्मी स्थिति

  35. चित्त शान्त कैसे हो?

  36. अपने दोषोंपर विचार करो

  37. दु:खोंसे छूटनेके उपाय

  38. शोक-नाशके उपाय

  39. श्रीमद्भागवत-सम्बन्धी कुछ शंकाएँ

  40. जीवनका उद्देश्य और उसकी पूर्तिके उपाय

  41. वैराग्यमें राग और प्रभु-प्रार्थना

  42. आत्मशक्तिमें विश्वासका फल

  43. साधकोंसे

  44. कार्यकर्ता साधकोंके प्रति

  45. कर्मोंका भगवान‍्में अर्पण

  46. अंगोंका भगवान‍्को अर्पण और निर्भरता

  47. भगवद्दर्शनके साधन

  48. भगवत्कृपापर विश्वास

  49. भगवत्कृपापर विश्वास

  50. प्रतिकूल स्थितिमें प्रसन्न रहना

  51. सब भगवान‍्की पूजाके लिये हो

  52. सच्चा धन

  53. भजनकी महिमा तथा कुछ उपयोगी साधन

  54. मानसिक भजन

  55. भजनका प्रभाव

  56. सेवा और भजन

  57. काम न छोड़कर भजन बढ़ाना चाहिये

  58. भगवद्भक्ति और दैवी सम्पत्ति

  59. भगवान् और भक्तका सम्बन्ध

  60. भगवत्प्रेमसम्बन्धी कुछ बातें

  61. सच्चा एकान्त और भगवत्प्रेम

  62. प्रेम और विकार

  63. गोपी-प्रेमकी महिमा

  64. भगवत्प्रेमका साधन

  65. संस्कृति—विनाशकी ओर

  66. असुर-मानव

  67. कल्कि-अवतार

  68. वर्तमान दु:समयमें हमारा कर्तव्य

  69. कुछ व्यवहार-सम्बन्धी बातें