जीवनकी सार्थकता
काम, क्रोध, लोभ, मोह और प्रमाद आदिका नाश भगवत्कृपासे भगवान् पर पूर्ण विश्वास होनेपर ही होता है। इससे पहले वे किसी-न-किसी रूपमें रहते ही हैं। श्रीभगवान्के नामका जप जैसे बने, वैसे ही करते रहिये। करते-करते नामके प्रतापसे विश्वास बढ़ेगा; न घबराइयेगा, न इससे हार मानियेगा। भगवान्का आश्रय चाहनेवाला तो इनका नाश करके ही दम लेता है। इनके नाशका उपाय बस, भगवद्विश्वास है—जो भजनसे प्राप्त होता है।
मैं तो तुच्छ प्राणी हूँ। आप विश्वास कीजिये, श्रीभगवान् हम सभीके सुहृद् हैं और वे सर्वज्ञ हैं, इसलिये हमारी स्थितिसे पूरे जानकार भी हैं तथा इसीके साथ वे सर्वशक्तिमान् भी हैं। बस, उनपर विश्वास कीजिये। फिर निश्चय ही परम कल्याण होगा और आपको सच्ची सुख-शान्ति मिल जायगी। साधन-बलसे कुछ नहीं होना है—यह मान लिया सो ठीक है। साधनका बल रखिये भी मत। बल रखिये भगवत्कृपाका। क्या छोटे बच्चेको माँके आश्रयके सिवा और कोई बल होता है? अहाहा! भगवान् रूपी माँ सदा अपना आँचल फैलाये हमें गोद लेनेको तैयार है। हम नहीं, वे ही हमारे लिये सतृष्ण नयनोंसे बाट देख रही हैं। बस, उनकी गोदमें चढ़ जाइये! फिर जीवन सार्थक है ही।