मोहनकी मुसकान
जाना और आना, यही तो संसारका स्वरूप है। यह यात्राका प्रसंग चला ही आ रहा है, चलता ही रहेगा। भगवान्की सृष्टिमें इसका कभी कहीं विराम नहीं है। परन्तु सभी अवस्थाओंमें सभी जगह भगवान् हमारे साथ हैं। इस पार्थिव संसारमें बस, एक भगवान् ही नित्य हैं, जो सदा सब जगह रहते हैं—जीवन-मृत्यु, दु:ख-सुख, हानि-लाभ, मान-अपमान सभीमें ये मुँह छिपाये सदा हँसते रहते हैं। इनकी मुसकान है बड़ी मधुर; परन्तु ये दीखते नहीं, छिपे रहते हैं। जो अपने सुखकी स्पृहा छोड़कर केवल इन्हींकी ओर अपने मानस नेत्रोंको लगाना चाहता है, उसके सामनेसे ये योगमायाका पर्दा हटा लेते हैं। फिर तो सर्वत्र असीम माधुर्य-सौन्दर्य, महान् आनन्द और विशाल शान्ति, दिव्य ज्योति और शीतल प्रकाश ही दिखायी देता है; इनकी हँसी ऐसी ही होती है—ऐसी ही है।
आपने साधन-भजन और आचरणकी बात लिखी सो ठीक है। भगवत्कृपासे असम्भव भी सम्भव हो सकता है, इस बातपर विश्वास कीजिये। अपनी ओरसे आप जैसे और जो कुछ भी हैं, स्पष्ट होकर अपनेको सदा भगवान्के प्रति निवेदन करते रहिये। आप तो बहुत अच्छे हैं, बहुतों-से बहुत भले हैं। वे तो महान् पापीको भी ग्रहण करनेमें नहीं सकुचाते। पापीका सारा पाप लेकर स्वयं उसको धोते हैं—वैसे ही जैसे माँ छोटे शिशुका मल धोती है बिना किसी घृणाके, अत्यन्त स्नेहसे, प्रसन्न हुई! माताका उदाहरण भी पूरा नहीं घटता—क्योंकि माताका स्नेह उनके स्नेहकी छायाकी भी छाया नहीं है।...... आपको जो कुछ करना पड़े, करिश्मे देखने पड़ें, उन्हें आप अभिमानके पल्ले बाँधकर उनका महत्त्व गँवाइये मत। ये सब करिश्मे भगवान्के हैं। उनकी लीलाके अंग हैं। देख-देखकर प्रसन्न होते रहिये। आनन्द लूटिये। रोनेके अभिनयमें भी अन्दर-ही-अन्दर हँसिये। उनके विधानके उत्ससे सदा आनन्दका ही स्रोत बहता है। विपत्ति-आपत्ति, प्रतिकूलता-परवशता, अपमान-तिरस्कार, पीड़ा-मृत्यु सभीमें उनकी आनन्दभरी मुसकान देखिये। भगवान्के प्रत्येक दानको आनन्दसे ग्रहण कीजिये!