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मनको वश करनेके कुछ उपाय

असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मति:।
वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायत:॥
(गीता ६। ३६)

श्रीभगवान् कहते हैं—जिनका मन वशमें नहीं है उनके लिये योगका प्राप्त करना अत्यन्त कठिन है। यह मेरा मत है, परन्तु मनको वशमें किये हुए प्रयत्नशील पुरुष साधनद्वारा योग प्राप्त कर सकते हैं।

भगवान् श्रीकृष्ण महाराजके इन वचनोंके अनुसार यह सिद्ध होता है कि मनको वश किये बिना परमात्माके प्राप्तिरूप योग दुष्प्राय है, यदि कोई ऐसा चाहे कि मन तो अपने इच्छानुसार निरंकुश होकर विषयवाटिकामें स्वच्छन्द विचरण किया करे और परमात्माके दर्शन अपने-आप ही हो जायँ, तो वह उसकी भूल है। दु:खोंकी आत्यन्तिक निवृत्ति और आनन्दमय परमात्माकी प्राप्ति चाहनेवालेको मन वशमें करना ही पड़ेगा, इसके सिवा और कोई उपाय नहीं है। परंतु मन स्वभावसे ही बड़ा चंचल और बलवान् है, इसे वशमें करना कोई साधारण बात नहीं है। सारे साधन इसीको वश करनेके लिये किये जाते हैं, इसपर विजय मिलते ही मानो विश्वपर विजय मिल जाती है। भगवान् शंकराचार्यने कहा है—‘जितं जगत् केन, मनो हि येन।’ ‘जगत् को किसने जीता?—जिसने मनको जीत लिया।’ अर्जुनने भी मनको वशमें करना कठिन समझकर कातर शब्दोंमें भगवान् से यही कहा—

चंचलं हि मन: कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्॥
(गीता ६। ३४)

‘हे भगवन्! यह मन बड़ा ही चंचल, हठीला, दृढ़ और बलवान् है, इसे रोकना मैं तो वायुके रोकनेके समान अत्यन्त दुष्कर समझता हूँ।’

इससे किसीको यह न समझ लेना चाहिये कि जो बात अर्जुनके लिये इतनी कठिन थी, वह हमलोगोंके लिये कैसे सम्भव होगी? मनको जीतना कठिन अवश्य है, भगवान् ने इस बातको स्वीकार किया, पर साथ ही उपाय भी बतला दिया—

असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते॥
(गीता ६। ३५)

भगवान् ने कहा, अर्जुन! इसमें कोई संदेह नहीं कि इस चंचल मनका निग्रह करना बड़ा ही कठिन है; परन्तु अभ्यास और वैराग्यसे यह वशमें हो सकता है। इससे यह सिद्ध हो गया कि मनका वशमें करना कठिन भले हो, पर असम्भव नहीं और इसको वश किये बिना दु:खोंकी निवृत्ति नहीं। अतएव इसे वश करना ही चाहिये, इसके लिये सबसे पहले इसका साधारण स्वरूप और स्वभाव जाननेकी आवश्यकता है।

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