भक्तिके साधन
भक्तिके साधकोंके लिये यहाँ कुछ नियम लिखे जाते हैं। इनमेंसे जो साधक जितने अधिक नियमोंका पालन कर सकेंगे उन्हें उतना ही अधिक लाभ होगा।
१-असत्य, चोरी, हिंसा, व्यभिचार, अभक्ष्य-भक्षण बिलकुल छोड़ दे।
२-दम्भ कभी न करें, भक्त बननेकी चेष्टा करें—दिखलानेकी नहीं।
३-कामनाका सब तरह त्याग करें, भजनके बदलेमें भगवान्से कुछ भी माँगे नहीं।
४-अष्टमैथुनका त्याग करें, पुरुष अपनी विवाहिता पत्नीसे और स्त्री अपने विवाहित पतिसे जहाँतक हो सके बहुत ही कम सहवास करे। दोनोंकी सम्मतिसे बिलकुल छोड़ दें तो सबसे अच्छी बात है।
५-स्त्री परपुरुष और पुरुष परस्त्रीका बिलकुल त्याग करे। जहाँतक हो एकान्तमें मिलना-बोलना कभी न करे।
६-मानकी इच्छा न करे, अपमानसे घबरावे नहीं, दीनता और नम्रता रखे, कड़वा न बोले, किसीका भी बुरा न चाहे, परचर्चा-परनिन्दा न करे और किसीसे भी घृणा न करे।
७-रोगी, अपाहिज, अनाथकी तन-मन-धनसे स्वयं सेवा करे, अपनी किसी प्रकारकी सेवा भरसक किसीसे न करावे।
८-भरसक सभा-समितियोंसे अलग रहे, समाचारपत्र अधिक न पढ़े, बिलकुल न पढ़े तो और भी अच्छी बात है।
९-सबका सम्मान करे, सबसे प्रेम करे, सबकी सेवाके लिये सदा तैयार रहे।
१०-तर्क न करे, वाद-विवाद या शास्त्रार्थ न करे।
११-भगवान्, भगवन्नाम, भक्त और भक्तिके शास्त्रोंमें दृढ़ विश्वास और परम श्रद्धा रखे।
१२-दूसरेके धर्म या उपासनाकी विधिका विरोध न करे।
१३-दूसरोंके दोष न देखे, अपने देखे और उन्हें प्रकाश कर दे।
१४-माता, पिता, स्वामी, गुरुजनोंकी सेवा करे।
१५-नित्य सुबह-शाम दोनों वक्त ध्यान या मानसिक पूजा करे और विनयके पद गावे।
१६-प्रतिदिन भगवान्के नामका कम-से-कम पचीस हजार जप जरूर करे। नाम वही ले, जिसमें रुचि हो। ‘हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥’ मन्त्रकी १६ मालामें इतना जप हो सकता है।
१७-कम-से-कम पंद्रह मिनट रोज सब घरके लोग (स्त्री-पुरुष-बालक) मिलकर नियमितरूपसे तन्मय होकर भगवन्नाम-कीर्तन करें।
१८-भगवद्गीताके एक अध्यायका अर्थसहित नित्य पाठ करे।
१९-भगवान्की मूर्तिके प्रतिदिन दर्शन करे, पास ही मन्दिर हो और उसमें जानेका अधिकार हो तो वहाँ जाकर दर्शन करे, नहीं तो घरमें मूर्ति या चित्रपट रखकर उसीका दर्शन करे।
२०-जहाँतक हो सके मूर्तिपूजा करे, स्त्रियोंको मन्दिरोंमें जानेकी जरूरत नहीं, वे अपने घरमें ठाकुरजीकी मूर्ति रखकर सोलह उपचारोंसे रोज पूजा कर लिया करें।
२१-संसारके पदार्थोंमें भोगदृष्टिसे वैराग्य और सबमें ईश्वरदृष्टिसे प्रेम करनेका अभ्यास करे।
२२-ईश्वर, अवतार, संत-महात्माओंपर कभी शंका न करे।
२३-यथासाध्य और यथाधिकार उपनिषद्, श्रीमद्भगवद्गीता, श्रीमद्भागवत (कम-से-कम ११वाँ स्कन्ध), महाभारत (कम-से-कम शान्ति और अनुशासनपर्व), वाल्मीकीय रामायण, तुलसीदासजीका रामचरितमानस, सुन्दरदासजीका सुन्दरविलास, समर्थ रामदासजीका दासबोध, भक्तमाल, भक्तोंके जीवनचरित आदि ग्रन्थोंको पढ़ना, सुनना और विचार करना चाहिये।
२४-भगवान् श्रीराम, श्रीकृष्ण, श्रीनरसिंह आदि अवतारोंके समयनिर्णय और उनके जीवनपर विचार आदि न करके उनका भक्तिभावसे भजन करना चाहिये। पेड़ गिननेवालेकी अपेक्षा आम खानेवाला लाभमें रहता है। थोड़े जीवनको असली काममें ही व्यय करना चाहिये।