फुरसत निकालो
अपना मन साफ करो
जाड़ेका मौसम है, दर्जी दालानकी धूपमें बैठा कपड़े सी रहा है। घरके अन्दरसे लड़केने आकर कहा—‘बाबा! जाड़ा लगता है, एक मिरजई तो सी दो।’ दर्जीने कहा—‘बेटा! अभी तो धूप निकली है। थोड़ा गरमा ले—आज फुरसत मिली तो सी दूँगा।’ लड़का कुछ देर वहाँ बैठा, फिर उसने कहा—‘बाबा! आज जरूर सी देना।’ दर्जी दो नये गाँहकोंसे बात कर रहा था, उसने कुछ उत्तर नहीं दिया, लड़का घरके अन्दर चला गया। दूसरे दिन सबेरे ही लड़केकी माँने कहा—‘रामूके बाबा! लड़का कितने दिनोंसे जाड़ेमें मरता और रोता है। तुम्हें इसके लिये एक मिरजई सी देनेतककी फुरसत नहीं मिली। मुझे कपड़ा ला दो तो मैं ही सी दूँ।’ दर्जीने कहा—‘तू कहती है सो तो ठीक है, पर बता, मैं कब सीऊँ? जाड़ा शुरू हुआ है, गाँहक दिन-रात तकाजा करते हैं, मुझे तो उनके कपड़े सीनेमें ही फुरसत नहीं मिलती। देखती नहीं, मैं खुद दिन-रात नंगे बदन रहता हूँ। क्या मुझे सर्दी नहीं लगती? फुरसत मिले तब न बाजार जाकर कपड़ा लाऊँ।’ ‘कपड़ा किसीसे मँगवा लो, इतने गाँहक आते हैं उनमेंसे किसीसे कह दो, ला देगा’ रामूकी माँने ऐसा कहा।
दर्जी बोला—‘कपड़ा कोई ला देगा तब भी क्या होगा? अभी मेरे पास गाँहकोंके इतने कपड़े सीने पड़े हैं कि तुम और मैं दोनों लगातार कई दिनोंतक बैठेंगे तब कहीं काम सपरेगा। बीचमें और काम आ गया तो वह भी नहीं। दर्जिन बोली—‘तुम्हारा काम तो पूरा होनेका नहीं, दूसरोंके कपड़े सीते-सीते जाड़ा निकल जायगा, भगवान् न करे कहीं जाड़ेसे लड़केको या तुमको जड़ैया-बुखार हो गयी तो बड़ी मुसीबत होगी, फिर मेरी क्या गति होगी?’ दर्जीने रुखाईसे कहा, ‘क्या किया जाय अभी तो फुरसत नहीं है।’
जगत्में यही हाल परोपदेशकोंका है, उन्हें परोपदेशमें ही फुरसत नहीं मिलती। (दर्जी दूसरोंके कपड़े तो सीता है परन्तु ये तो प्राय: अपना सारा वक्त यों ही बरबाद करते हैं।) परन्तु एक दिन ऐसी फुरसत मिलेगी कि फिर कोई भी रुकावट काम नहीं आवेगी। इन बेचारोंकी तो बात ही कौन-सी है? No Time का बोर्ड लटकाकर रखनेवाले और ‘क्या करें मरनेकी भी फुरसत नहीं मिलती’ रटनेवाले, सबको उसी श्मशानकी धूलमें जाकर लोटनेके लिये पूरी फुरसत आप ही मिल जायगी।
इसलिये पहलेसे ही फुरसत निकाल लो तो बुद्धिमानी है। फुरसत कहींसे बुलायी नहीं जाती; निकालनी पड़ती है। कोरे रह जाओगे तो बड़ी मुसीबत होगी। दूसरेका उद्धार करनेके कामसे जरा फुरसत निकालकर, देशसेवासे जरा समय बचाकर पहले अपना उद्धार और अपनी सेवा करो, पहले अपने पापोंको धो लो तभी देशसेवाके और विश्वसेवाके लायक बनोगे। सावधान!
तेरे भावें जो करो भलो बुरो संसार।
नारायण तू बैठिकै अपनो भवन बुहार॥
जग अघ-धोवत जुग गये धुल्यो न मनके मैल।
मन मल पहले धोइले नतरु मैलको मैल॥