तुम आगे आते
ज्यों-ज्यों मैं पीछे हटता हूँ
त्यों-त्यों तुम आगे आते।
छिपे हुए परदोंमें अपना
मोहन मुखड़ा दिखलाते॥
पर मैं अन्धा! नहीं देखता
परदोंके अंदरकी चीज।
मोहमुग्ध! मैं देखा करता
परदे बहुरंगे नाचीज॥
परदोंके अंदरसे तुम
हँसते प्यारी मधुरी हाँसी।
चित्त खींचनेको तुम तुरत
बजा देते मीठी बाँसी॥
सुनता हूँ, मोहित होता,
दर्शनकी भी इच्छा करता।
पाता नहीं देख पर, जडमति!
इधर-उधर मारा फिरता॥
तरह-तरहसे ध्यान खींचते
करते विविध भाँति संकेत।
चौकन्ना-सा रह जाता हूँ,
नहीं समझता मूर्ख अचेत॥
तो भी नहीं ऊबते हो तुम,
परदा जरा उठाते हो।
धीरेसे सम्बोधन करके
अपने निकट बुलाते हो॥
इतने पर भी नहीं देखता,
सिंह-गर्जना तब करते।
तन-मन-प्राण काँप उठते हैं,
नहीं धीर कोई धरते॥
डरता, भाग छूटता, तब
आश्वासन देकर समझाते।
ज्यों-ज्यों मैं पीछे हटता हूँ
त्यों-त्यों तुम आगे आते॥