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॥ श्रीहरि:॥

नम्र निवेदन

वेदव्यासजीके लिये आया है—‘अचतुर्वदनो ब्रह्मा द्विबाहुरपरो हरि:। अभाललोचन: शम्भु: भगवान् बादरायण:।’ अर्थात् भगवान् वेदव्यासजी चार मुखोंसे रहित ब्रह्मा हैं, दो भुजाओंवाले दूसरे विष्णु हैं और ललाटस्थित नेत्रसे रहित शंकर हैं अर्थात् वे ब्रह्मा-विष्णु-महेशरूप हैं। संसारमें जितनी भी कल्याणकारी, विलक्षण बातें हैं, वे सब वेदव्यासजीके ही उच्छिष्ट हैं—‘व्यासोच्छिष्टं जगत्सर्वम्’। ऐसे वेदव्यासजी महाराजने जीवोंके कल्याणके लिये महाभारतकी रचना की है। उस महाभारतका संक्षेप जीवन्मुक्त तत्त्वज्ञ भगवत्प्रेमी महापुरुष सेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाने किया है। इस प्रकार वेदव्यासजीके द्वारा मूलरूपसे और सेठजीके द्वारा संक्षिप्तरूपसे लिखी हुई महाभारतमेंसे सबके लिये उपयोगी कुछ कथाओंका चयन किया गया है। इन कथाओंमें एक विशेष शक्ति है, जिससे इनको पढ़नेसे विशेष लाभ होता है। उनमेंसे नल-दमयन्तीकी कथा पाठकोंकी सेवामें प्रस्तुत है। पाठकोंसे मेरा विनम्र निवेदन है कि वे इस पुस्तकको स्वयं भी पढ़ें और दूसरोंको भी पढ़नेके लिये प्रेरित करें।

विनीत—
स्वामी रामसुखदास

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