Hindu text bookगीता गंगा
होम > परम सेवा > सबका कल्याण हो यह भाव रखे

सबका कल्याण हो यह भाव रखे

प्रवचन-तिथि—आषाढ़ शुक्ल १३, संवत् २००१, सन् १९४४, गोरखपुर

मनुष्य चाहे जितना लाभ उठा सकता है, इसकी सीमा ही नहीं है।

प्रश्न—क्या मुक्तिसे भी बढ़कर लाभ मिल सकता है?

उत्तर—हाँ! मिल सकता है। जबतक संसारमें एक भी जीव है तबतक लाभ उठाया जा सकता है। अपनी आत्माकी उन्नति कर लेना उन्नतिका अन्त नहीं हो गया। न पतनका अन्त है, न उन्नतिका। उन्नतिका अन्त तभी है, जब सबका कल्याण हो जाय।

अच्छी भावनाका बुरा फल होता ही नहीं। इसलिये अच्छी भावना करनी चाहिये। नामदेवजीने कुत्तेमें भगवान् की भावना की तो कोई बुरा फल नहीं हुआ। भोगबुद्धि पतन करनेवाली है, ईश्वरबुद्धि नहीं।

प्रह्लादने खम्भेमें भगवान् की भावना की तो भगवान् प्रकट हो गये। यह भावनाका फल है। अपनेमें परमात्माकी प्राप्ति करानेकी शक्ति नहीं होते हुए भी कहीं परमात्माकी प्राप्ति करानेके लिये भगवान् हमें निमित्त बनायें तो ना नहीं करनी चाहिये। भगवान् ने कहा—निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् (गीता ११।३३) अर्जुन! तू निमित्तमात्र हो जा।

व्यक्ति अपनी यह शक्ति नहीं समझे कि मैं किसीका कल्याण कर सकता हूँ। जो यह अभिमान रखता है कि मैं दूसरेको परमात्माकी प्राप्ति करा सकता हूँ, वह नहीं करा सकता। जो यह समझता है मैं नहीं करा सकता, यदि दूसरा व्यक्ति उसपर आरोपण करता है कि यह परमात्माकी प्राप्ति करा सकता है, इस प्रकार कोई उसे निमित्तमात्र बना ले तो बना ले। भगवान् हमें इसके लिये निमित्त बनायें कि दूसरोंको अपनी प्राप्तिके लिये मैं तुमको निमित्त बनाता हूँ तो मना नहीं करना चाहिये।

दूसरी बात यह है कि भगवान् हमें निमित्त नहीं बनायें तो इस काममें हमें निमित्त बन जाना चाहिये और मान लेना चाहिये कि भगवान् ने ही हमें निमित्त बनाया है। भगवान् कहें मैंने तो तुमको यह पदवी दी नहीं तो कहे आपने नहीं दी, मैंने जबरदस्ती छीन ली। जैसे कोई आदमी मरनेवाला हो, वह हमें निमित्त बनाकर भजन-ध्यान सुनना चाहे या वह नहीं बुलाये तो स्वयं ही कहो कि कीर्तन सुनायें? गीताजी सुनायें? वह कहे सुनाओ, इस जगह निमित्त बने। इस प्रकारकी चार-पाँच जगह युक्ति लगायी और एक आदमीकी भी मुक्ति हो गयी तो अपना जीवन सफल हो गया। मनुष्य-जीवन कल्याण करनेके लिये मिला था। अपना नहीं कर सके और दूसरेका कल्याण कर दिया तो यह धोखा नहीं मानना चाहिये कि अपना कल्याण नहीं हुआ।

कोई कहे आपमें कल्याण करनेकी शक्ति है तो इस बातको स्वीकार न करे। कोई पूछे कि आप ईश्वरकी प्राप्ति करा सकते हैं क्या? तो कहे नहीं, मेरी सामर्थ्य नहीं है, ईश्वरकी कृपासे ही हो सकती है।

कोई पूछे कि परमात्माकी प्राप्तिका पात्र किस तरह होऊँ? उसे कहे कि परमात्माकी शरण हो जाओ। कैसे शरण होवें? उसे बता दे कि ऐसे-ऐसे शरण होना चाहिये। यह निमित्त बनना हुआ। अपनी शक्ति मानकर निमित्त मत बनो।

वह कहे हमें तो आपने ही परमात्माकी प्राप्ति करा दी। वह भले ही कहता रहे, उसपर ध्यान मत दो। उसकी बात सुनकर फूलो मत। एक आदमी गाली देता है और एक प्रशंसा करता है, दोनोंको मत सुनो।

नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण....

अगला लेख  > मृत्यु-समयके उपचार