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परम सेवा

(श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका)

  1. निवेदन

  2. परम सेवा

  3. यमराजके यहाँ चर्चा ही नहीं

  4. सुननेवाले, सुनानेवाले दोनोंका कल्याण

  5. दु:खका मूल है ममता

  6. भगवान् के ध्यानरूपी रस्सेको न छोडे़ं

  7. भगवान् की इच्छामें अपनी इच्छा मिला दें

  8. भगवान् और महापुरुषोंके प्रभावकी बातें

  9. अपने साधनका निरीक्षण करें

  10. जप करनेवालेके आनन्द और शान्ति स्वत: रहती है

  11. सारे तीर्थोंकी यात्रासे बढ़कर एक भगवन्नाम

  12. अगर काममें ले तो नयी है

  13. समयकी अमोलकता

  14. निष्कामभावसे भजन करें

  15. सर्वदा भगवत्स्मरणका उपाय

  16. भगवान् की गारन्टी

  17. बहुत-से जन्म तो हमारे हो चुके

  18. कब चेतोगे

  19. भगवान् के चिन्तनका महत्त्व

  20. संसारसे वैराग्य और भगवान् में प्रेम

  21. एक बार भगवान् को प्रणाम करनेका महत्त्व

  22. भगवान् स्वयं आकर ले जाते हैं

  23. भगवान् भक्तकी इच्छा पूर्ण करते हैं

  24. व्यवहारसे भजनमें बाधा न आवे

  25. भगवान् की प्राप्ति २४ घण्टेमें हो सकती है

  26. भगवान् के ध्यानके लिये प्रेरणा

  27. ध्यानावस्थामें प्रभुसे वार्तालाप

  28. अन्तकालके स्मरणका महत्त्व

  29. भगवान् को छोड़कर भोगोंको चाहना मूर्खता

  30. पद्मपुराणके अनुसार पुत्रका कर्तव्य

  31. नामजपसे विधाताके लेखका मिटना और भगवान् द्वारा रक्षा

  32. भगवान् प्रसन्न हों वह काम करें

  33. मरणासन्नको भगवन्नाम सुनाना अति महत्त्वपूर्ण

  34. मरणासन्न व्यक्तिको भगवन्नाम सुनानेसे मुक्ति

  35. भगवान् के ध्यानमें मृत्यु हो तो आनन्द-ही आनन्द है

  36. सबका कल्याण हो यह भाव रखे

  37. मृत्यु-समयके उपचार

  38. सत्सङ्गके अमृत-कण

  39. भगवान् का भजन करो

  40. भगवन्नाम सुनाना सर्वश्रेष्ठ कार्य

  41. भगवन्नामकी तुलना ही नहीं

  42. श्रीमद्भागवतमहापुराणमें भगवन्नाम-महिमा