धर्म
प्रश्न—धर्मका मूल क्या है?
उत्तर—स्वार्थका त्याग तथा दूसरोंका हित॥ ११७॥
प्रश्न—धर्मका प्रचार कैसे करें?
उत्तर—धर्मके अनुसार खुद चलें—इसके समान धर्मका प्रचार कोई नहीं है॥ ११८॥
प्रश्न—विजय धर्मकी ही होती है, पर आजकल कहीं-कहीं अधर्मकी विजय और धर्मकी हार होती हुई क्यों दीखती है?
उत्तर—जब मनुष्य सुखासक्तिके कारण असत् को महत्त्व देता है, तब हार होती है। वास्तवमें हार होती नहीं, पर दीखता ऐसा है कि हार हो गयी!॥ ११९॥