कलियुग
प्रश्न—भगवान्ने कलियुग क्यों बनाया?
उत्तर—भगवान्ने कलियुग इस उद्देश्यसे बनाया कि जीवका जल्दी कल्याण हो जाय! उसके द्वारा किये गये थोडे़ पुण्यकर्मका भी महान् फल हो जाय*! मनुष्यको भगवान्के इस उद्देश्यका सदुपयोग करना है, दुरुपयोग नहीं ॥ २६॥
* कलिजुग सम जुग आन नहिं जौं नर कर बिस्वास।
गाइ राम गुन गन बिमल भव तर बिनहिं प्रयास॥
(मानस, उत्तर० १०३ क)
यत्कृते दशभिर्वर्षैस्त्रेतायां हायनेन तत्।
द्वापरे तच्च मासेन ह्यहोरात्रेण तत्कलौ॥
(विष्णुपुराण ६।२।१५)
‘जो फल सत्ययुगमें दस वर्ष तपस्या, ब्रह्मचर्य, जप आदि करनेसे मिलता है, उसे मनुष्य त्रेतामें एक वर्ष, द्वापरमें एक मास और कलियुगमें केवल एक दिन-रातमें प्राप्त कर लेता है।’
प्रश्न—कलियुग कहाँतक अपना प्रभाव डालता है?
उत्तर—कलियुगका प्रभाव इतना ही है कि सत्ययुग आदिमें धर्मका पालन सुगमतासे होता है और कलियुगमें कठिनतासे होता है। कलियुगमें धर्मका पालन कठिनतासे होनेपर भी थोडे़ अनुष्ठानका अधिक पुण्य होता है॥ २७॥
प्रश्न—युगोंका ह्रास जिस क्रमसे होता है, उस क्रमसे उत्थान क्यों नहीं होता? कलियुगके बाद द्वापर न आकर सीधे सत्ययुग क्यों आता है?
उत्तर—प्रकृतिका कार्य स्वत: पतनकी ओर जाता है, पर उत्थान भगवत्कृपासे होता है; जैसे—किसी बातको स्वत: भूल जाते हैं, पर याद करना पड़ता है। अत: भगवान् ही कृपा करके कलियुगके बाद सत्ययुग लाते हैं॥ २८॥
प्रश्न—‘कलि कर एक पुनीत प्रतापा। मानस पुन्य होहिं नहिं पापा॥ ’ (मानस, उत्तर० १०३।४)—इसका तात्पर्य क्या है?
उत्तर—यह भगवान्ने कलियुगमें छूट दी है। मनमें पुण्य-कर्म करनेकी इच्छा हुई, पर किसी कारणसे कर नहीं सके तो भी उसका पुण्य लगेगा। किसी कारणसे मनमें पाप-कर्म करनेकी इच्छा हुई, पर कर सके नहीं और उसका पश्चात्ताप हुआ तो उसका पाप नहीं लगेगा। तात्पर्य है कि मनमें आनेसे पाप नहीं होता, प्रत्युत करनेसे पाप होता है।
जिसकी इच्छा (नीयत) पाप करनेकी है, उसको तो पाप लगेगा ही; क्योंकि इच्छा पापका मूल है, जिससे पाप पैदा होता है*। हाँ, पाप करनेकी नीयत न होनेपर भी किसी कारणसे, पुराने संस्कारोंसे, कलियुगके प्रभावसे मनमें पापकी वासना आ जाय तो उसका दोष नहीं लगेगा॥ २९॥
* काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भव:।
महाशनो महापाप्मा विद्धॺेनमिह वैरिणम्॥
(गीता ३।३७)
‘रजोगुणसे उत्पन्न यह काम अर्थात् कामना ही पापका कारण है। यह काम ही क्रोधमें परिणत होता है। यह बहुत खानेवाला और महापापी है। इस विषयमें तू इसको ही वैरी जान।’
प्रश्न—आजकल पाखण्डी साधुओंका अधिक प्रचार क्यों होता है?
उत्तर—इसमें कलियुग सहायता करता है। यदि पाखण्डी साधुओंका प्रचार नहीं होगा तो कलियुग कैसे कहलायेगा? वास्तवमें पाखण्डी साधुओंका प्रचार केवल भभका होता है, जो स्थायी नहीं होता। असली, त्यागी साधुका प्रचार स्थायी होता है। उसके द्वारा लोगोंका स्थायी और असली हित होता है। जिसके भीतर थोड़ी भी भोगवासना होती है, उसके द्वारा लोगोंका असली हित नहीं होता॥ ३०॥
प्रश्न—स्वर्णमें कलियुगका निवास बताया गया है; अत: स्त्रियोंको सोनेके गहने पहनने चाहिये या नहीं?
उत्तर—गहना पहननेमें दोष नहीं दीखता। स्वर्णको पवित्र माना गया है। स्वर्णके अभिमानमें कलियुगका निवास है॥ ३१॥