कर्तव्य-कर्म
प्रश्न—कर्मका उपयोग कहाँ है?
उत्तर—संसारसे ऊँचा उठनेके लिये निष्कामभावसे दूसरोंके हितके लिये कर्म करनेकी आवश्यकता है; क्योंकि सकामभावसे अपने लिये कर्म करनेसे ही मनुष्य संसारमें फँसा है। अत: करनेका वेग और वर्तमान रागकी निवृत्तिके लिये कर्म करनेका उपयोग है—‘आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते’ (गीता ६।३)॥ १९॥
प्रश्न—कर्तव्यका पालन कठिन क्यों दीखता है?
उत्तर—कर्तव्य कहते ही उसे हैं, जिसे किया जा सके और जिसे करना चाहिये। जिसे नहीं कर सकते, वह कर्तव्य नहीं होता। अत: कर्तव्यका पालन सबसे सुगम है। अकर्तव्यकी आसक्तिके कारण ही कर्तव्य-पालन कठिन दीखता है॥ २०॥
प्रश्न—कर्तव्य-अकर्तव्यका ज्ञान न होनेमें क्या कारण है?
उत्तर—पक्षपात, विषमता, ममता, आसक्ति, अभिमान—इनके रहनेसे ही कर्तव्य-अकर्तव्यका स्पष्ट ज्ञान नहीं होता॥ २१॥
प्रश्न—निष्कामभावसे भोजन करें तो तृप्तिरूप फल होगा ही, फिर निष्कामभावसे किये कर्मका फल नहीं होता—यह बात कैसे?
उत्तर—निष्कामभावसे किये कर्म भुने हुए बीजके समान हो जाते हैं। भुने हुए बीज खेतीके काम तो नहीं आते, पर खानेके काम तो आते ही हैं। अत: निष्कामभावसे किये कर्मका फल तो होता है, पर वह बन्धनकारक नहीं होता। सकामभावसे किये कर्मका फल ही बन्धनकारक होता है—‘फले सक्तो निबध्यते’ (गीता ५।१२)॥ २२॥
प्रश्न—भक्तिमार्गमें कर्म दिव्य कैसे होते हैं?
उत्तर—भगवान्में ज्यादा तल्लीन होनेसे भक्तके कर्म दिव्य हो जाते हैं। मीराबाईका तो शरीर भी दिव्य होकर भगवान्के श्रीविग्रहमें लीन हो गया था॥ २३॥
प्रश्न—गीतामें भगवान्ने कहा है कि मेरा स्मरण कर और युद्ध अर्थात् कर्तव्य-कर्म भी कर—‘मामनुस्मर युध्य च’ (८।७)। यदि भगवान्का स्मरण करेंगे तो कर्तव्य-कर्म ठीक नहीं होगा और कर्तव्य-कर्ममें मन लगायेंगे तो भगवान्का स्मरण नहीं होगा; अत: दोनों एक साथ कैसे करें?
उत्तर—प्रत्येक कार्य मन लगाकर करना चाहिये, पर उद्देश्य भगवान्का होना चाहिये। प्रत्येक कार्यको भगवान्का ही कार्य मानकर करना चाहिये। गहने बनाते समय सुनारके भीतर ‘यह सोना है’—यह बात बैठी रहती है। इसी तरह सब कार्य करते समय साधकके भीतर ‘सब कुछ परमात्मा ही हैं’—यह बात बैठी रहनी चाहिये॥ २४॥
प्रश्न—क्रिया, कर्म, उपासना और विवेक—इन चारोंमें क्या फर्क है?
उत्तर—‘क्रिया’ फलजनक नहीं होती अर्थात् किसी परिस्थितिके साथ सम्बन्ध नहीं जोड़ती। ‘कर्म’ फलजनक होता है अर्थात् सुखदायी-दु:खदायी परिस्थितिके साथ सम्बन्ध जोड़ता है। ‘उपासना’ भगवान्के साथ सम्बन्ध जोड़ती है। ‘विवेक’ जड़तासे सम्बन्ध-विच्छेद करता है।
कर्म और उपासनामें जो क्रिया है, वह कल्याण नहीं करती। कर्ममें निष्कामभाव कल्याण करता है और उपासनामें भगवान्का सम्बन्ध कल्याण करता है॥ २५॥