प्रार्थना
प्रश्न—प्रार्थनामें खास बात क्या है?
उत्तर—अपनी निर्बलताका और भगवान्की सबलता (प्रभाव, सामर्थ्य)-का अनुभव करना ॥ १३७॥
प्रश्न—क्या प्रार्थना किये बिना भगवान् रक्षा नहीं करते?
उत्तर—रक्षा और पालन करनेकी शक्तिका नाम ही परमात्मा है। इसलिये वे तो बिना प्रार्थना किये भी सबकी रक्षा करते रहते हैं। परन्तु जैसे भगवान्की कृपा सबपर होती है, पर जो उस कृपाको स्वीकार करता है, उसपर वह कृपा ज्यादा फलीभूत होती है, ऐसे ही जो (द्रौपदी, गजराज आदिकी तरह) आर्तभावसे रक्षाके लिये प्रार्थना करता है, उसपर भगवत्कृपा ज्यादा फलीभूत होती है॥ १३८॥
प्रश्न—कभी-कभी प्रार्थना करनेपर भी भगवान् कष्टसे रक्षा नहीं करते, इसमें क्या कारण है?
उत्तर—आर्तभावमें कमी रहनेसे प्रार्थना सफल नहीं होती। इसलिये प्रार्थना आर्तभावसे और निर्बल होकर करनी चाहिये—‘निरबल ह्वै बलराम पुकारॺो आये आधे नाम’॥ १३९॥
प्रश्न—प्रार्थना करनेपर भी रक्षा न होनेपर कई मनुष्योंमें नास्तिकता आ जाती है, ऐसा क्यों?
उत्तर—भीतरमें पहलेसे नास्तिकता होती है, तभी आती है! नास्तिक वही बनता है, जो पहलेसे नास्तिक होता है। जो आस्तिक होता है, वह प्रतिकूल-से-प्रतिकूल परिस्थिति आनेपर भी आस्तिक ही रहता है, कभी नास्तिक नहीं होता। भगवान् कितनी ही विरुद्ध परिस्थिति भेजें तो भी भक्तमें नास्तिकता नहीं आती; क्योंकि वह प्रत्येक परिस्थितिमें भगवान्की कृपाको ही देखता है॥ १४०॥
प्रश्न—क्या दूसरेका दु:ख दूर करनेके लिये भगवान्से प्रार्थना कर सकते हैं?
उत्तर—कर सकते हैं। इसमें कोई दोष नहीं है। केवल एक दोष आता है कि क्या हम ज्यादा दयालु हैं? भगवान्में दया नहीं है क्या?॥ १४१॥