समाज-सुधार
प्रश्न—समाज-सुधारका उपाय क्या है?
उत्तर—अपने सुधारसे स्वत: समाज-सुधार होता है; क्योंकि व्यक्ति भी समाजका ही अंग है। व्यक्तिगत जीवन तो ठीक न हो, पर बातें बढ़िया कहें तो न अपना सुधार होगा, न समाजका। वेश्या यदि पातिव्रत्यका उपदेश दे तो वह कैसे लगेगा? अत: बातें बढ़िया नहीं, अपना जीवन बढ़िया होना चाहिये। समाज-सुधारकी चेष्टा न करके अपने सुधारकी चेष्टा करनी चाहिये। अपना सुधार होगा—स्वार्थ और अभिमानका त्याग करके दूसरेका हित करनेसे॥ ४१४॥
प्रश्न—सरकारके द्वारा अपराधीको मृत्युदण्ड देना उचित है या अनुचित?
उत्तर—मृत्युदण्ड देना उचित हैै। यह सर्वथा पाप-रहित करनेका दण्ड है। मृत्युदण्डसे पापी व्यक्तिकी शुद्धि होती है और लोगोंमें पाप न करनेकी वृत्ति होती है॥ ४१५॥
प्रश्न—‘दयाकी मृत्यु’ उचित है या अनुचित?
उत्तर—यह दया नहीं है, प्रत्युत बेसमझी है। डॉक्टरका कर्तव्य यही है कि वह रोगीको यथाशक्ति जीवित रखनेका प्रयत्न करे; क्योंकि कोई भी प्राणी मरना नहीं चाहता। जो रोगी वर्षोंसे बेहोश है,वह कभी होशमें भी आ सकता है। ऐसी घटना मेरी देखी हुई है॥ ४१६॥
प्रश्न—चारों वर्णों और आश्रमोंमें कौन-सा वर्ण और आश्रम श्रेष्ठ है?
उत्तर—वही वर्ण और आश्रम श्रेष्ठ है, जो अपने कर्तव्यका पालन करता है। जो अपने कर्तव्यका पालन नहीं करता, वह छोटा हो जाता है॥ ४१७॥
प्रश्न—समाजमें तरह-तरहके रीति-रिवाज प्रचलित हैं। उनमें कौन-सा ठीक है, कौन-सा बेठीक—इसका निर्णय कैसे करें?
उत्तर—जिसमें अपने स्वार्थका त्याग और दूसरेका हित हो, वही ठीक है॥ ४१८॥