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विवेक

प्रश्न—विवेक किस उपायसे बढ़ता है?

उत्तर—अगर मनुष्य विवेकका आदर करे अर्थात् विवेक-विरुद्ध कार्य न करे तो उसका विवेक गुरु आदिकी सहायताके बिना स्वत: बढ़ जाता है। अगर वह जान-बूझकर न करनेलायक काम करेगा तो विवेक नहीं बढ़ेगा। विवेक-विरुद्ध कार्य करनेसे विवेकका बढ़ना रुक जाता है॥ २९९॥

प्रश्न—विवेककी आवश्यकता कहाँतक है?

उत्तर—जड़ पदार्थोंके संयोगसे होनेवाले सुखके त्यागतक। तात्पर्य है कि विवेककी आवश्यकता जड़का आकर्षण (राग,आसक्ति) मिटानेमें है। इसलिये विवेकसे वैराग्य होता है। विवेकका आदर इतना होना चाहिये कि जड़ताका आकर्षण सर्वथा मिट जाय॥ ३००॥

प्रश्न—विचार और विवेकमें क्या अन्तर है?

उत्तर—विचारमें ऊहापोह होता है कि यह नित्य कैसे है, यह अनित्य कैसे है, आदि। परन्तु विवेकमें नित्य और अनित्य आदि दो वस्तुओंका विश्लेषण होता है। जबतक विवेक पुष्ट नहीं होता, तबतक उसके साथ विचार रहता है। विवेक पुष्ट होनेपर विचार नहीं रहता, प्रत्युत केवल विवेक रहता है॥ ३०१॥

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