जगत्की प्रीत
एक सन्तके पास एक व्यक्ति सत्संगके लिये आया करता था। उस व्यक्तिका विवाह हो गया तो उसका सत्संगमें आना कम हो गया। जब सन्तान हो गयी तो सत्संगमें आना बहुत कम हो गया। सन्तने उससे कहा कि तू कुछ दिनोंके लिये मेरे पास आ जा और सत्संग कर। वह बोला कि मेरी स्त्रीका मेरेसे बड़ा प्यार है, वह मेरे बिना रह नहीं सकती! मैं कैसे आऊँ? सन्त बोले कि यह तेरा वहम है, ऐसी बात है नहीं। वह व्यक्ति माना नहीं तो सन्तने कहा कि तेरेको मेरी बातपर विश्वास नहीं होता तो तू परीक्षा करके देख ले। वह व्यक्ति इसके लिये तैयार हो गया। सन्तने उसको प्राणायामके द्वारा श्वास रोकना सिखा दिया और सब बात समझा दी।
एक दिन सुबहके समय उस व्यक्तिने अपनी स्त्रीसे कहा कि आज खीर और लड्डू बनाओ। आज हम सब खीर और लड्डू खायेंगे। स्त्रीने बढ़िया खीर और लड्डू बना दिये। थोड़ी देरमें वह व्यक्ति बोला कि मेरे पेटमें पीड़ा हो रही है! स्त्रीने कहा कि आप लेट जाओ। वह पलंगपर लेट गया। थोड़ी देर लेटनेके बाद उसने प्राणायामके द्वारा अपने श्वास ऊपर चढ़ा लिये। स्त्रीने देखा कि पतिका तो शरीर शान्त हो गया! अब क्या करें! उसने विचार किया कि खीर और लड्डू बने पड़े हैं। लड्डू तो कई दिनतक रह जायँगे, पर खीर खराब हो जायगी। अगर मैं अभी रोना-चिल्लाना शुरू कर दूँगी तो पड़ोसी लोग इकट्ठे हो जायँगे। फिर खीर यों ही रह जायगी! उसने दरवाजा बन्द कर दिया और बच्चेको साथ लेकर जल्दी-जल्दी खीर खा ली। लड्डू डिब्बेमें बन्द करके रख दिये। फिर उसने दरवाजा खोल दिया और पतिके पास बैठकर रोने लगी। रोते हुए वह बोली—
साँईं स्वर्ग पधारॺा, कुछ मैनूँ वी आखो!
(पतिदेव स्वर्ग पधार गये, कुछ मेरेसे तो बोलो!)
इतनेमें वह व्यक्ति भी उठ बैठा और बोला—
खीर लबालब पा गयी, कुछ पिन्नी वी चक्खो!
(खीर तो लबालब पी ली, अब कुछ लड्डू भी चख लो!)