कंजूसीका परिणाम
एक गरीब ब्राह्मण था। उसको अपनी कन्याका विवाह करना था। उसने विचार किया कि कथा करनेसे कुछ पैसा आ जायगा तो काम चल जायगा। ऐसा विचार करके उसने भगवान् रामके एक मन्दिरमें बैठकर कथा आरम्भ कर दी। उसका भाव यह था कि कोई श्रोता आये, चाहे न आये, पर भगवान् तो मेरी कथा सुनेंगे ही!
पण्डितजीकी कथामें थोड़े-से श्रोता आने लगे। एक बहुत कंजूस सेठ था। एक दिन वह मन्दिरमें आया। जब वह मन्दिरकी परिक्रमा कर रहा था, तब उसको मन्दिरके भीतरसे कुछ आवाज आयी। ऐसा लगा कि कोई दो व्यक्ति आपसमें बात कर रहे हैं। सेठने कान लगाकर सुना। भगवान् राम हनुमान्जीसे कह रहे थे कि इस गरीब ब्राह्मणके लिये सौ रुपयोंका प्रबन्ध कर देना, जिससे कन्यादान ठीक हो जाय। हनुमान्जीने कहा कि ठीक है महाराज! इसके सौ रुपये पैदा हो जायँगे। सेठने यह सुना तो वे कथा समाप्तिके बाद पण्डितजीसे मिले और उनसे कहा कि महाराज! कथामें रुपये पैदा हो रहे हैं कि नहीं? पण्डितजी बोले कि श्रोतालोग बहुत कम आते हैं, रुपये कैसे पैदा हों? सेठने कहा कि मेरी एक शर्त है, कथामें जितना रुपया आये, वह मेरेको दे देना, मैं आपको पचास रुपये दे दूँगा। पण्डितजीने शर्त स्वीकार कर ली। उसने सोचा कि कथामें इतने रुपये तो आयेंगे नहीं, पर सेठजीसे पचास रुपये तो मिल ही जायँगे! पुराने जमानेमें पचास रुपये भी बहुत ज्यादा होते थे। इधर सेठकी नीयत यह थी कि हनुमान्जी भगवान्की आज्ञाका पालन करके इसको सौ रुपये जरूर दिलायेंगे। वे सौ रुपये मेरेको मिल जायँगे और पचास रुपये मैं दे दूँगा तो बाकी पचास रुपये मेरे पैदा हो जायँगे! जो लोभी आदमी होते हैं, वे सदा रुपयोंकी ही बात सोचते हैं। इसलिये भगवान् और हनुमान्जीकी बातें सुनकर भी सेठमें भगवान्के प्रति भक्ति उत्पन्न नहीं हुई, उलटे उसने लोभको ही पकड़ा!
कथाकी पूर्णाहुति होनेपर सेठ पण्डितजीके पास आया। उसको आशा थी कि आज सौ रुपये भेंटमें आये होंगे। पण्डितजीने कहा कि भाई, आज तो भेंट बहुत थोड़ी ही आयी! बस, पाँच-सात रुपये आये हैं। सेठ बेचारा क्या करे? उसने अपने वायदेके अनुसार पण्डितजीको पचास रुपये दे दिये। लेनेके बदले देने पड़ गये! सेठको हनुमान्जीपर बहुत गुस्सा आया कि उन्होंने पण्डितजीको सौ रुपये नहीं दिये और भगवान्के सामने झूठ बोला! वह मन्दिरमें गया और हनुमान्जीकी मूर्तिपर घूँसा मारा। घूँसा मारते ही सेठका हाथ मूर्तिसे चिपक गया! अब सेठने बहुत जोर लगाया, पर हाथ छूटा नहीं। जिसको हनुमान्जी पकड़ लें, वह कैसे छूट सकता है? सेठको फिर आवाज सुनायी दी। उसने ध्यानसे सुना। भगवान् हनुमान्जीसे पूछ रहे थे कि तुमने ब्राह्मणको सौ रुपये दिलाये कि नहीं? हनुमान्जीने कहा कि ‘महाराज! पचास रुपये तो दिला दिये हैं, बाकी पचास रुपयोंके लिये सेठको पकड़ रखा है! वह पचास रुपये देगा तो छोड़ देंगे।’ सेठने सुना तो विचार किया कि मन्दिरमें लोग आकर मेरेको देखेंगे तो बड़ी बेइज्जती होगी! वह चिल्लाकर बोला कि ‘हनुमान्जी महाराज! मेरेको छोड़ दो, मैं पचास रुपये दूँगा!’ हनुमान्जीने सेठका हाथ छोड़ दिया। सेठने जाकर पण्डितजीको पचास रुपये दे दिये।