Hindu text bookगीता गंगा
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रात कैसी बीती?

एक बाबाजी घूमते-फिरते एक शहरमें पहुँचे। रात हो गयी थी। सरदीके दिन थे। शहरका दरवाजा बन्द हो गया था। बाबाजीको ठण्ड लगी। गरम कपड़ा पासमें था नहीं। बाबाजीने सोनेके लिये जगह देखी। एक भड़भूँजेकी भट्ठी थी। बाबाजीने देखा कि यह जगह बढ़िया है। भट्ठीके भीतर थोड़ी-थोड़ी गरमाहट थी। बाबाजी उसके भीतर जाकर सो गये।

सुबह हुई। बाबाजीकी नींद खुली। बगलमें ही राजाका महल था। उधर राजाकी नींद खुली। राजाने अपने साथियोंसे पूछा—‘कहो भाई! रात कैसी बीती?’ इधर बाबाजी भट्ठीके भीतरसे बोले—‘कुछ तुम्हारे-जैसी, कुछ तुम्हारेसे अच्छी!’ राजाको अनजानी आवाज सुनकर थोड़ा आश्चर्य हुआ। राजाने फिर पूछा—‘रात कैसी बीती?’ बाबाजीने फिर कहा—‘कुछ तुम्हारे-जैसी, कुछ तुम्हारेसे अच्छी!’ राजाने अपने आदमियोंको भेजा कि जाकर देखो, ‘यह कौन बोल रहा है? उसको पकड़कर मेरे सामने लाओ।’ राजपुरुषोंने बाहर जाकर चारों ओर देखा, पर उनको कोई दिखायी नहीं दिया। जब पुन: बाबाजीने वही बात कही, तब राजपुरुषोंने देखा कि भट्ठीके भीतर एक बाबाजी बैठे हैं, वही बोल रहे हैं! उन्होंने बाबाजीसे कहा कि चलो, आपको राजाने बुलाया है। बाबाजीने कहा कि मैंने कौन-सा अपराध किया है, जिसके कारण राजाने मेरेको बुलाया है? राजपुरुषोंने कहा कि आपके किसी अपराधके कारण राजाने नहीं बुलाया है, वे तो आपसे मिलकर कुछ बात करना चाहते हैं। बाबाजी भट्ठीसे बाहर निकले। उनके मुखपर और शरीरपर जगह-जगह भट्ठीकी राख लगी हुई थी। कहीं-कहीं कालिख लगी हुई थी! वे उसी अवस्थामें राजपुरुषोंके साथ चल पड़े।

राजपुरुषोंने बाबाजीको राजाके सामने लाकर खड़ा कर दिया। राजाने बाबाजीको प्रणाम किया और पूछा कि मेरे प्रश्नका उत्तर आपने दिया था? बाबाजी बोले—‘मैंने प्रश्न सुना तो उत्तर दे दिया, मेरेको पता नहीं कि प्रश्न आपने किया था!’ राजाने कहा—‘मैंने पूछा कि रात कैसी बीती तो आपने उत्तर दिया कि कुछ तुम्हारे-जैसी, कुछ तुम्हारेसे अच्छी। अब आप बतायें कि रात मेरे-जैसी कैसी बीती? मैं तो महलमें सोया था और आप भट्ठीमें, फिर मेरे-जैसी कैसे हुई?’ बाबाजी बोले—‘जब मैं और आप सो गये, तब न तो मेरेको भट्ठी याद रही और न आपको महल याद रहा, तो हम दोनों बराबर हो गये न? आप नरम-नरम गद्दोंपर सोये, मैं नरम-नरम राखपर सोया!’ राजा बोला—‘और मेरेसे अच्छी कैसे हुई?’ बाबाजी बोले—‘नींद खुलते ही आपको अपनी और राज्यकी सैकड़ों चिन्ताएँ सताने लगीं, पर मेरेको कोई चिन्ता है ही नहीं! इसलिये मेरी रात आपसे भी अच्छी बीती!’

चाह गयी चिन्ता मिटी, मनुआँ बेपरवाह।
जिनको कछू न चाहिये, सो साहनके साह॥

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