भगवत्प्राप्ति कठिन नहीं
प्रवचन—दिनांक १७। ५। १९४५, सायंकाल ६.३० बजे, गंगातट, स्वर्गाश्रम
परमात्माकी प्राप्तिको कठिन एवं कष्टसाध्य नहीं मानना चाहिये। यदि कहो कि सुगम है, फिर बहुत लोग क्यों नहीं प्राप्त कर लेते? बहुत-से आदमियोंको परमात्मा प्राप्त नहीं हुए, इसका मतलब यह नहीं है कि कठिन है। कोई कहे कि प्रयास बहुत किया, किन्तु परमात्मा नहीं मिले। बात यह है कि उन्होंने बहुत प्रयत्न नहीं किया। थोड़ेको ही अधिक मान लिया। श्रद्धा तथा विश्वास हो तो बिना प्रयास भी परमात्माकी प्राप्ति हो जाय, परन्तु यह श्रद्धा होनी कठिन है। साधनसे ही विश्वास होता है, अतएव साधन करना चाहिये। मैं तो न्यायकी बात बताता हूँ। किसी प्रकार भी श्रद्धा हो जाय।
अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।
साधुरेव स मन्तव्य: सम्यग्व्यवसितो हि स:॥
(गीता ९। ३०)
यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्यभावसे मेरा भक्त होकर मुझको भजता हैै तो वह साधु ही माननेयोग्य है; क्योंकि वह यथार्थ निश्चयवाला है। अर्थात् उसने भलीभाँति निश्चय कर लिया है कि परमेश्वरके भजनके समान अन्य कुछ भी नहीं है।
ईश्वरकी तथा महात्माकी कृपासे किसी प्रकार श्रद्धा हो जाय। पराभक्तिका अर्थ है परमात्माके स्वरूपका तत्त्वज्ञान, उसको मैं पराभक्ति मानता हूँ।
परमात्माकी प्राप्ति कठिन नहीं माने, इस विषयमें कभी हताश या निराश हो ही नहीं। जो निराश हो जाते हैं, उनके उत्साहके लिये यह कहना है कि भले ही उदास हो जायँ, यानी भगवान् नहीं मिले। अपने आचरणोंकी ओर देखकर उदासी लानेमें कोई हर्ज नहीं। साथ ही यह विश्वास रखे कि अभी नहीं मिले तो क्या हुआ, मिलेंगे अवश्य ही।
बड़ी सार बात है—बहुत चेष्टा की, इस जन्ममें नहीं मिलेंगे—यह बड़ी निकम्मी बात है। इस जन्ममें थोड़ा साधन करके निराश नहीं होना चाहिये। लाख वर्षका अन्धेरा एक क्षणमें चला जाता है। वैसे ही यह बात है कि अज्ञान अनादि होते हुए भी सान्त है। अज्ञानका स्वरूप यही है, यह मान लें। किसी प्रकारका अज्ञान हो, उस सबकी यही बात है, यह ठोस सिद्धान्त है। जैसे दिग्भ्रम सान्त होनेकी चीज है।
दूसरी बात परमात्माको प्राप्त पुरुषोंमें जो लक्षण हैं, उच्चकोटिके पुरुषोंमें, दैवी सम्पदावाले पुरुषोंमें जो लक्षण हैं, वे आपमें आ जाना कोई बड़ी बात नहीं। मनमें खूब उत्साह रखें। कठिन नहीं मानकर इनका सेवन करना चाहिये। हिम्मत बड़ी भारी चीज है। नेपोलियन बोनापार्ट फ्रांसमें एक साधारण आदमी था, परन्तु हिम्मतके कारण बहुत ही प्रसिद्ध राजा हो गया और आज भी वह प्रसिद्ध है। वह कहता था कि मेरे शब्दकोषमें असम्भव शब्द नहीं है। हिम्मतवाली चीज रखे, निर्भीकता बहुत मूल्यवान् है।
हम भगवान् की ओर चलते हैं तो भगवान् हमें अपनी ओर खींचते हैं। फिर काम सिद्ध क्यों नहीं हो रहा है? इसमें कारण है कि हम भगवान् को मानते नहीं, भूलसे ऐसा समझ रहे हैं, अतएव हर समय भगवद्भावकी जागृति करनी चाहिये।