मनुष्य-जीवनकी अमूल्यता
प्रवचन—दिनांक २४/५/४०, रात्रि, स्वर्गाश्रम
मनुष्यका जीवन बहुत मूल्यवान् है। एक क्षणका मूल्य लाख रुपये भी नहीं है। जो काम बहुत श्रेष्ठ समझें, उसी काममें समय बिताना चाहिये। जितना समय है उसको उच्चकोटिके काममें बिताना चाहिये। सबसे बढ़कर काम सारे दु:खोंका नाश होकर परमात्माकी प्राप्ति ही है। अत: उसी काममें सब समय बिताना चाहिये। हमारे मरनेपर हमारे दूसरे काम, सारी व्यवस्था दूसरे कर लेंगे, पर इस खास कामको कोई नहीं कर सकेगा। उत्तराधिकारी तो धन और मकानको सँभालेंगे। यह जितना बाकी रह जायगा, रह ही जायगा, इसलिये सबसे आवश्यक काम यही है, अन्यथा बहुत रोना पड़ेगा। नहीं करेंगे तो मूर्खता है। रोनेसे भी काम नहीं बनेगा, इसलिये जबतक शरीर ठीक है, तबतक इस कामको कर लेना चाहिये। एक क्षण बिना भगवत्-स्मरणके जाय तो पुत्रमरणके समान दु:ख करना चाहिये। पुत्र तो फिर पैदा हो जाता है, पर यह जन्म फिर नहीं मिलेगा। करोड़ों जन्मोंमें यह मौका मिलता है। ऐसे मौकेको पाकर जो खो देता है, वह महामूर्ख है, मूर्खोंका सरदार है।
आयुरूपी धनकी रक्षा करनी चाहिये। लोभी धनको प्राणोंके समान समझता है, उसी तरह इस समयको हमें भी प्राणोंके समान समझना चाहिये। एक मिनट भी निकम्मा नहीं बीते, उत्तरोत्तर उच्च श्रेणीका कार्य करे। कल जो साधन हुआ, आज उससे भी श्रेष्ठ करे। काम वह करे जो आजतक नहीं किया यानी परमात्माकी प्राप्ति जिस तरहसे भी हो करनी चाहिये। अपनी सारी शक्ति इसी काममें लगा देनी चाहिये। उत्तरोत्तर बढ़ता रहे तो शीघ्र भगवान् मिल सकते हैं।
लाख रुपया भी एक नामकी कीमतसे आँका नहीं जा सकता। एक नामकी कीमत लाख रुपयेसे भी बढ़कर है, इसलिये भगवान् की प्राप्तिके कामको छोड़कर व्यर्थ समय नहीं बिताना चाहिये।
हमको यह विचार करना चाहिये कि हम यहाँ किसलिये आये हैं और क्या कर रहे हैं। शराबीकी तरह मोहमें पड़कर समय नहीं बिताना चाहिये। कितनी बड़ी कमाई हमारे हाथसे हटकर जा रही है। परमात्माकी प्राप्ति सुलभ होकर भी हमारे हाथसे जा रही है। यह कितने दु:खकी बात है। त्रिलोकीका राज्य भी भगवान् के एक नामके सामने कुछ नहीं है। नाम सत्य है। ऐसी हालतमें लाख काम छोड़कर भजन करे और भजनके बदलेमें कुछ नहीं चाहे।
शरीर, धन आदिके लिये ईश्वरसे या महात्मासे याचना नहीं करनी चाहिये। स्वप्नका त्रिलोकीका राज्य जागनेपर बेचो तो लोग पागल बतायेंगे और कोई पाँच पैसा भी नहीं देगा। इसी प्रकार परमात्मा सत्य वस्तु है, संसार असत् वस्तु है। परमात्माके सामने स्वप्नकी तरह इसकी कोई कीमत नहीं है। इन सब बातोंको सोचकर अपना समय बहुत ऊँचे काममें बिताना चाहिये। सबसे उत्तम बात यह है कि भगवान् की प्राप्ति जीवित रहते ही जी-तोड़ परिश्रम करके कर लेनी चाहिये। एक क्षण भी व्यर्थ नहीं जाय, ऐसी चेष्टा रखनी चाहिये।
दु:खोंके संयोगका वियोग ही योग है। यह निश्चय कर्तव्य है और कटिबद्ध चित्तसे करना चाहिये। इसलिये एक क्षण भी इसे खाली न बैठने दे, खूब कसकर काम ले।
लौकिक हानि हो जाय तो कोई बात नहीं, पर यह हानि नहीं होनी चाहिये। जिनके निरन्तर भगवान् की स्मृति रहती है, उनके अन्त समयमें भगवान् की स्मृति होती है। अपनी जितनी शक्ति है, उतनी तो चेष्टा कर लेनी चाहिये। मरनेके बाद पता नहीं कैसी दशा होगी, इसलिये समय रहते अपना काम शीघ्र बना लेना चाहिये।