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भगवच्चिन्तनसे बेड़ा पार

सप्रेम हरिस्मरण। पत्र मिला, धन्यवाद। आप दु:खी हैं, आपको जगत‍्में अपमान मिल रहा है, आपके पास स्वस्थ तन नहीं है, धन नहीं और बुद्धि नहीं है; इसीलिये सुख नहीं है— ऐसी आपकी धारणा है।

यदि वस्तुत: आपकी ऐसी ही परिस्थिति है तो आपको प्रसन्न होना चाहिये। इसी अवस्थामें मनुष्य जगत‍्की ओरसे मोह-ममता हटाकर भगवान‍्की ओर बढ़ता है। भगवान् जिसपर बड़ी दया करते हैं, उसीके सामने ऐसी परिस्थिति लाकर रखते हैं। निश्चय ही भगवान् आपपर कृपादृष्टि डाल रहे हैं। आपको अपनी शरणमें लेनेको उत्सुक हैं। अब आपका काम है कि इस परिस्थितिसे लाभ उठायें। संसारके मनुष्य यहाँ दु:ख और अपमान पाकर भी इसीमें रचे-पचे रहते हैं। सौभाग्यकी बात है कि आपको जगत‍्के स्वरूपका वास्तविक अनुभव हुआ। अब आप यह निश्चय करें कि दीनबन्धु भगवान‍्के सिवा कोई भी अपना नहीं है। यह जगत् —यह शरीर अनित्य और दु:खरूप है—‘अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम्’—इसे पाकर भगवान‍्का भजन करो। भजन ही जीवनका सार है।

आप सुख, स्वास्थ्य, धन, मान या अपना उद्धार—जो कुछ भी चाहें, उसकी प्राप्तिका एकमात्र उपाय है भगवान‍्का भजन। भजन करनेमें कोई कठिनाई नहीं है। अपना तन, मन, धन—जो कुछ भी अपना कहा जानेवाला हो, सब कुछ मनसे भगवान‍्को अर्पण कर दें। आप भगवान‍्के हो जायँ। सोयें भगवान‍्के लिये, जागें भगवान‍्के लिये। सब कार्य, सारी चेष्टा भगवान‍्के लिये हो; भगवान् ही अपने लक्ष्य, अपने प्राणोंके आराध्य बन जायँ। ऐसी अवस्थामें जो सुख मिलेगा, उसकी कहीं तुलना नहीं है। आप घर न छोड़ें, काम न छोड़ें; केवल भगवान‍्से नाता जोड़ लें, उनके ही हो जायँ। सब कार्य करते हुए भगवान‍्का चिन्तन करें, भगवान‍्का चिन्तन करते हुए ही सब काम करें। बेड़ा पार है। शेष प्रभुकी कृपा।

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