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कीर्तन और कथासे महान् लाभ

प्रिय भैया! पत्र मिले बहुत दिन हो गये। तुम्हारे लिये मेरे दो अनुरोध हैं—

(१) प्रतिदिन किसी समय घरके सब लोग मिलकर कम-से-कम पंद्रह मिनट श्रीभगवान‍्के नामका कीर्तन किया करो और—

(२) प्रतिदिन प्रात:काल या रात्रिमें, जब भी फुरसतका समय हो, कम-से-कम एक घंटे भगवान‍्की कथा सुनो-सुनाया करो। कथाका प्रसंग भगवान‍्की सरस मधुर लीलाका हो अथवा सरल आत्मोन्नतिकारक सदाचार, विवेक, वैराग्य, भक्ति और भगवत् -स्वरूपके ज्ञानका बोध देनेवाला हो। श्रीमद्भागवत, महाभारतके चुने हुए प्रसंग, श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्भगवद‍्गीता, पुराणोंके चुने हुए कथानक, संत और भक्तचरित्र तथा महापुरुषोंकी जीवनियाँ—इसके लिये बहुत उपयोगी हैं। इस नित्यकी भगवच्चर्चामें कोई आडम्बर न हो। ऐसे ग्रन्थ या प्रसंग चुने हुए रहें और घरमें जो कोई भी पढ़कर अच्छी तरह सुना सकता हो, वही सुना दे तथा सब लोग आदर एवं भक्तिभावसे उन्हें मन लगाकर सुनें।

मेरी समझसे इन दो साधनोंसे तुम्हारे घरका वातावरण पवित्रतम हो सकता है। यों समझानेसे बात नहीं समझमें आती, पर वही बात जब कथाप्रसंगमें आ जाती है, तब उसका सहज ही ग्रहण हो सकता है।

ये दो ऐसे साधन हैं, जिनका घर-घरमें प्रवेश होना चाहिये। घरका वातावरण और घरके लोगोंका स्वभाव शुद्ध तथा भगवदभिमुखी करनेके लिये ये दोनों साधन बड़े ही प्रभावशाली हैं। करके देखो, और हो सके तो अपने मित्रोंमें भी इनका प्रचार करो। इनसे घर और देशका सुधार तो होगा ही। मनुष्य-जीवनके चरम उद्देश्य भगवत्प्राप्तिका पथ भी बहुत सहज हो जायगा।

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