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भजनकी महत्ता

भाई साहेब! सप्रेम हरिस्मरण। आपका कृपापत्र मिला। मेरी समझसे तो आपके लिये इस समय ‘सब तज हरि भज’ ही सर्वोत्तम चीज है। वैसे तो सभीके लिये यही एक चीज अपनाने लायक है। मानव-जीवन मिला ही है भगवत्-भजनके लिये। भजनके बिना जीवन सर्वथा व्यर्थ है। इस कलिकालमें तो भजन ही एकमात्र साधन है और जो भगवद्भजन करता है, वही असलमें सर्वगुणसम्पन्न है—

एहिं कलिकाल न साधन दूजा।
जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा॥
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि।
संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि॥
जासु पतित पावन बड़ बाना।
गावहिं कबि श्रुति संत पुराना॥
ताहि भजहि मन तजि कुटिलाई।
राम भजें गति केहिं नहिं पाई॥
सोइ सर्बग्य गुनी सोइ ग्याता।
सोइ महि मंडित पंडित दाता॥
धर्म परायन सोइ कुल त्राता।
राम चरन जा कर मन राता॥
नीति निपुन सोइ परम सयाना।
श्रुति सिद्धांत नीक तेहिं जाना॥
सोइ कबि कोबिद सोइ रनधीरा।
जो छल छाड़ि भजइ रघुबीरा॥

गोस्वामीजीने उपर्युक्त वाक्योंमें यही बताया है। फिर, आप तो जीवनमें बहुत कुछ संसारका काम भी कर चुके। अब विनाशी धनकी चिन्ता छोड़कर अविनाशी परम धन भगवद्भजनको बटोरिये। सब कुछ छोड़कर इसीमें लग जाइये। तभी आपको सच्चा पुरुषार्थी समझा जायगा। कृपा बनाये रखें। मुझे भी आशीर्वाद दें; जिसमें मैं भी भजनमें लगूँ। शरीर अस्वस्थ रहता है, पता नहीं कब चला जाय। इसलिये अब तो मुझे भी केवल भजन ही करना चाहिये। विशेष भगवत्कृपा।

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